भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देश के हर हिस्से से आजादी की अलख जगी थी, लेकिन किन्ही कारणों से उत्तर पूर्व भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास में वो पहचान नहीं मिली जिसके वो हकदार थे। अब इन स्वतंत्रता सेनानियों के विषय में जानकारी देने के प्रयास जारी है। और इसमें शैक्षणिक जगत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है । यह बात शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह ने जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय (जेएनयू) में कही।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए तृतीय गवर्नर आचार्य पुरस्कार आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम में शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह, नागालैंड के पूर्व राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य, जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय के कुलपति प्रो.एम.जगदेश कुमार और जेएनयू में उत्तर पूर्व भारत अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार राव शामिल रहे ।
नागालैंड के पूर्व राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य के प्रयासों से प्रारंभ किये गए, इस पुरस्कार में विश्वविद्यालय में भारत के उत्तर-पूर्व भाग से समबद्ध विषय पर शोध करने वाले पांच विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाता है । उत्तर पूर्व के स्वतंत्रता सेनानियों और विशिष्ट व्यक्तियों की स्मृति में प्रति वर्ष दिए जान वाले वर्ष 2020 के पुरस्कार के लिए, तेजस्विता दुआराह को शम्भुधन फोंग्लो, कृष्णा हजारिका को बाबू जगजीवन रॉय, राजेंद्र कुमार जोशी को जननेता हिजाम इराबोत, अजंता दास को देयिंग र्एींग और देवप्रिया सरकार को पद्मसंभव पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
उत्तर पूर्व भारत विशेष अध्ययन केंद्र के समवर्ती आचार्य (कोन्कोरेंट फैकल्टी) भगत ओइनाम ने इस वर्ष के आयोजन को आजादी के अमृत महोत्सव की पृष्ठभूमि में आयोजित किये जाने, और भारत के इस क्षेत्र द्वारा भारत के स्व के लिए किये गए बलिदान को दिए जानेवाले राष्ट्रीय सम्मान के रूप में लिए जाने पर विशेष बल दिया ।
पद्मनाभ आचार्य ने 1828 से ही भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में, प्रत्येक स्तर पर इस क्षेत्र द्वारा किये गए योगदान का स्मरण करते हुए, इन बलिदानियों का स्मरण किया । उन्होंने इस बात पर क्षोभ व्यक्त किया कि इस क्षेत्र के स्वाधीनता संग्राम में, महत्वपूर्ण योगदान दिए जाने के पयर्ंत भी, इस क्षेत्र के सेनानियों और घटनाक्रमों को, षडयंत्र स्वरुप पाठ्यक्रमों में स्थान नहीं मिल पाया है । शिक्षा और विदेश राज्यमंत्री ने, इस अवसर पर नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभारी के रूप में भारत के गौरव और स्वतंत्रता आन्दोलन में, समग्र रूप से हर क्षेत्र और वर्ग की भूमिका को चिन्हित किये जाने के लिए, शैक्षणिक जगत का विशेष रूप से आह्ववान किया ।
उन्होंने आशा व्यक्त की, कि जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय द्वारा, भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों पर अध्ययन और शोध किये जाने पर, इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी, जिससे वे गत 75 वर्षों से वंचित रहे । उन्होंने इस क्षेत्र के अनजाने सेनानियों को राष्ट्रीय परि²श्य पर लाने, और निर्धनता तथा संकीर्णता से मुक्त होते हुए, इस क्षेत्र के सतत और समग्र विकास पर विशेष बल दिया । इस उपलक्ष्य में उन्होंने मणिपुर के राजा भाग्यचन्द्र द्वारा प्रतिपादित सृजनात्मकता के विचार को, देश भर में फैलाने पर जोर दिया । हाल ही में अंडमान में माउंट मणिपुर और यूनेस्को द्वारा मणिपुर के नट संकीर्तन को अक्षुण्ण सांस्कृतिक धरोहर की सूची में सम्मिलित किये जाने को, भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र को मिल रही अन्तर्राष्ट्रीय पहचान पर हर्ष व्यक्त किया ।
इस अवसर पर जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर जगदेश कुमार ने बताया कि इस क्षेत्र को महžव देते हुए, विश्वविद्यालय परिसर के एक मुख्य मार्ग का नामकरण, मणिपुर और नागालैंड की विख्यात स्वत्रंता सेनानी रानी गाइदिन्ल्यू के नाम पर किया गया है । उन्होंने बताया की आगामी सत्र में एक नया छात्रावास बराक छात्रावास, छात्रों को आबंटन के लिए सुलभ हो जायेगा । उन्होंने आशा व्यक्त की, कि आनेवाले समय में यह विशेष अध्ययन केंद्र, अपनी बहुआयामी गतिविधियों को और अधिक विस्तार देते हुए, इस क्षेत्र की जैव-विविधता और परंपरागत ज्ञान-विज्ञान के विविध पहलुओं को, शैक्षिक पटल पर लाएगा।
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Source : IANS