जेएनयू की कार्यकारी परिषद ने आतंकवाद संबंधित पाठ्यक्रम को दी मंजूरी
जेएनयू की कार्यकारी परिषद ने आतंकवाद संबंधित पाठ्यक्रम को दी मंजूरी
दिल्ली:
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में आतंकवाद पर पाठ्यक्रम में तैयार किया गया है। यह पाठ्यक्रम भारतीय परिप्रेक्ष्य में तैयार किया गया है। जेएनयू की अकादमिक काउंसिल ने पाठ्यक्रम को मंजूरी दे दी है। गुरुवार को हुई जेएनयू कार्यकारी परिषद की बैठक में भी इस पाठ्यक्रम को मंजूरी मिल गई है। कार्यकारी परिषद की स्वीकृति मिलने के बाद यह पाठ्यक्रम छात्रों के कोर्स का हिस्सा बन गया है।कार्यकारी परिषद की गुरुवार शाम हुई बैठक में यज्ञ प्रस्ताव पास किया गया। अगामी सत्र से यह पाठ्यक्रम छात्रों की पढ़ाई में शामिल हो जाएगा।
जेएनयू की अकादमिक काउंसिल एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। बैठक में यह तय किया गया कि हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
जेएनयू प्रशासन के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्र आंतकवाद के इस नए अध्याय की पढ़ाई करेंगे।
इसी में नया पाठ्यक्रम काउंटर टेररिज्म, एसिमेट्रिक कनफ्लिक्ट एंड स्ट्रैटेजिक फार कारपोरेशन एमांग मेजर पावर शामिल किया गया है।
इस पाठ्यक्रम के जरिए छात्रों को आतंकवाद से निपटने के तरीकों और तकनीकी भूमिका की जानकारी दी जाएगी। जेएनयू के कई शिक्षकों समेत कुछ लोगों ने इस पाठ्यक्रम पर आपत्ति जताई है।
भाकपा के सांसद बिनाय विश्वम ने इसपर अपना विरोध दर्ज किया है। उन्होंने विरोध जताते हुए इस सिलसिले में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को पत्र भी लिखा है। बिनाय विश्वम ने शिक्षा मंत्री को भेजे अपने पत्र में कहा है कि उच्च शिक्षा को सांप्रदायिक एवं वैश्विक राजनीतिक का हिस्सा नहीं बनाया जाए। उन्होंने कहा कि जेएनयू द्वारा स्वीकृत किए गए पाठ्यक्रम में उपलब्ध कराई जा रही जानकारियां पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं।
हालांकि जेएनयू के कुलपति एम जगदेश कुमार ने इस मामले पर बयान जारी कर कहा कि काउंटर टेरोरिज्म विषय में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों को आतंकवाद से कैसे निपटा जा सकता है और इसमें विज्ञान और तकनीक की क्या भूमिका होगी ये पढ़ाया जाएगा। इस पाठ्यक्रम को विश्वभर में हो रही आतंकवादी गतिविधियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, ताकि उन्हें भारत हैंडल कर सके।
इस पाठ्यक्रम में कट्टरपंथी और धार्मिक आतंकवाद नेटवर्क है। जिसे छात्र पढ़ेंगे। पाठ्यक्रम में यह बताया जाएगा कि आतंकवाद के खिलाफ सरकारी एजेंसियों की क्या भूमिका है।
जेएनयू का कहना है कि विश्वविद्यालय में किसी धर्म विशेष के बारे में नहीं पढ़ाया जा रहा। यह पूरी तरह भारत के परिप्रेक्ष्य में डिजाइन किया गया पाठ्यक्रम है। सीमापार प्रायोजित आतंकवाद से भारत लंबे समय से पीड़ित रहा है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने कुल तीन नए पाठ्यक्रमों को मंजूरी दी है। इन पाठ्यक्रमों को जेएनयू की एकेडमिक काउंसिल से भी मंजूरी मिल चुकी है। जिन पाठ्यक्रमों को मंजूरी दी गई है उनमें प्रमुख शक्तियों के बीच काउंटर टेररिज्म, एसमेट्रिक कॉन्फ्लिक्ट्स एवं सहयोग के लिए रणनीतियां 21वीं सदी में भारत का उभरता वैश्विक ²ष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी का महत्व शामिल हैं।
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