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अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक फैसले में अमित शाह और डोभाल का बड़ा योगदान, जानिए कब क्या हुआ

लोकसभा चुनाव 2019 के बाद भारी बहुमत से सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी सबसे पहले ऑर्टिकल 370 को हटाने के काम को अंजाम देना चाहती थी.

Updated on: 08 Aug 2019, 05:14 PM

highlights

  • लोकसभा 2019 से पहले तय हो चुका था प्लान
  • शाह के हाथ में थी मिशन जम्मू कश्मीर की कमान 
  • एनएसए डोभाल ने किए थे कश्मीर के सीक्रेट दौरे

नई दिल्‍ली:

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का प्लान सत्ता के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले ही हो चुका था. जून 2019 के दूसरे सप्ताह में इस मुद्दे पर काम शुरू हो चुका था. लोकसभा चुनाव 2019 के बाद भारी बहुमत से सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी सबसे पहले ऑर्टिकल 370 को हटाने के काम को अंजाम देना चाहती थी. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जून के दूसरे सप्ताह में कश्मीर दौरे पर गए. इस दौरान गृह मंत्री ने सीनियर नौकरशाहों और सेना के बड़े अधिकारियों से लंबी बातचीत की. अमित शाह ने इस दौरे पर जम्मू-कश्मीर के जमीनी हालात का जायजा लिया और दिल्ली वापस लौट आए.

एनएसए अजित डोभाल ने भी श्रीनगर का दौरा किया
अमित शाह के कश्मीर दौरे के बाद वहां के सरकारी अधिकारियों को दिल्ली फरमान आया और ब्यूरोक्रेसी ग्राउंड वर्क में जुट गई. केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के सुरक्षाबलों और अधिकारियों के साथ मिलकर बैठक की इस बैठक में ये आकलन किया गया कि अगर इस फैसले को लागू करने के बाद कुछ अनहोनी होती है तो उससे कैसे निपटा जाएगा. आपको बता दें इस दौरान 26 जुलाई को जब केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर जब करगिल युद्ध (विजय दिवस) की 20वीं सालगिरह मनाने में व्यस्त थे, तभी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 23 और 24 जुलाई को श्रीनगर का सीक्रेट दौरा किया. इस ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए अजित डोभाल तब तक एयर फोर्स, एनटीआरओ आर्मी, आईबी, रॉ, अर्द्धसैनिक बलों और राज्य की ब्यूरोक्रेसी के साथ केंद्र सरकार के प्लान को लेकर अपना सामंजस्य बना चुके थे.

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ड्रोन के LIVE फुटेज से हो रही थी निगरानी
केंद्र सरकार की इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए पाकिस्तान की ओर से सतर्क रहना बेहद जरूरी था. अजित डोभाल ने ड्रोन, सर्विलांस और टोही विमानों की मदद से बॉर्डर, LoC, PoK पर लगातार निगरानी करवाई. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के आतंकी संगठनों और अलगाववादी नेताओं की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए 20 ड्रोन के लाइव फुटेज की मदद ली गई. ये ड्रोन LoC और अमरनाथ यात्रा पर रूट की निगरानी कर रहे थे. एयर फोर्स को बिना कारण बताए कहा गया कि वो देश के अलग-अलग ठिकानों से अर्द्धसैनिक बलों के मूवमेंट के लिए 10 सी-17 और 6 सी-130J विमानों को मुहैया कराए. पिछले सप्ताह अमित शाह ने आर्मी चीफ और एयर फोर्स से सीधे बात की और उन्हें सेनाओं को तैनात करने का आदेश दिया. इसके साथ ही उन्हें ट्रांसपोर्ट सुविधा को तैयार रखने को कहा गया.

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घाटी में 45 हजार जवान तैनात किए गए
केंद्र सरकार के इस बड़े ऑपरेशन से पहले घाटी में लगभग 45 हजार जवान तैनात किए गए. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान एनएसए अजित डोभाल और उनकी टीम ने पूरी गोपनीयता बनाए रखी. मीडिया और लोगों को इस दौरान जो एक मात्र जानकारी मिली वो ये थी कि कश्मीर में सुरक्षाबलों की भारी संख्या में तैनाती हो रही है. इस दौरान इजरायली ड्रोन्स को भी पीर पंजाल रेंज में भेजा ताकि जरूरत पड़ने पर भीड़ को काबू करने में इसका इस्तेमाल किया जा सके.

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अमरनाथ की यात्रा रोकने का पहले ही लिया गया था फैसला
जम्मू-कश्मीर में NSA की मीटिंग के दौरान ही यह तय हो गया था कि इस मिशन को पूरा करने के लिए अमरनाथ की यात्रा को बीच में ही रोकने का फैसला लिया गया. इसी बैठक में अजित डोभाल ने सुझाव भी दिया कि जम्मू-कश्मीर में आए सभी सैलानियों को बाहर निकलने को कहा जाए. इस बैठक में बैकअप के लिए अर्द्धसैनिक बलों की 100 और कंपनियों को वहां भेजने का फैसला लिया गया. इसका इस्तेमाल बैक-अप के रूप में करने पर सहमति बनी. आर्मी चीफ हर उस स्थान पर गए और सुरक्षा इंतजामों का जायजा लिया जहां इस योजना को लागू करने के बाद सुरक्षा संबंधी चिंता पैदा हो सकती थी.

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मिशन की कमान थी अमित शाह के हाथ
केंद्र सरकार के इस पूरे मिशन की कमान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के हाथों में थी. 4 अगस्त की रात को मुख्य सचिव ने जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह को कई सतर्कतापूर्वक कदम उठाने को कहा, जिसमें कश्मीरी नेताओं को नजरबंद करना, लैंडलाइन टेलिफोन व्यवस्था को ठप करना, मोबाइल सेवाओं को बंद करना, पूरे इलाके में धारा 144 लागू करना और कर्फ्यू लागू करने के लिए ड्रिल करना शामिल था. वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक कोर टीम के साथ इस फैसले से जुड़े सभी कानूनी पहलुओं की समीक्षा पहले ही कर ली थी.

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