अयोध्या मसले के 'सुप्रीम फैसले' पर अरशद मदनी को 'एहतेराम' तो, लेकिन कुछ 'खलिश' भी बरकरार

अगर सुप्रीम कोर्ट यह कहता कि मस्जिद नहीं मंदिर था. उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. तब भी समझ आता और मसला खत्म हो जाता. हालांकि यह साबित नहीं हुआ कि वहां मस्जिद नहीं थी .

अगर सुप्रीम कोर्ट यह कहता कि मस्जिद नहीं मंदिर था. उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. तब भी समझ आता और मसला खत्म हो जाता. हालांकि यह साबित नहीं हुआ कि वहां मस्जिद नहीं थी .

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Nihar Saxena
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Maulana arshad madni

जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी.( Photo Credit : (फाइल फोटो))

जमियत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष और अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकार अरशद मदनी ने अयोध्या मसले पर फ़ैसला आने से पहले कहा था कि अयोध्या में जमीन के मालिकाना हक को लेकर सर्वोच्च अदालत जो भी फैसला देगी वह उन्हें स्वीकार होगा. यह अलग बात है कि फैसला आने के लगभग पांच दिन बाद उन्हें 'खलिश' सी हुई है. उन्होंने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा कि वह फ़ैसले का एहतेराम तो करते हैं, लेकिन फ़ैसला उनकी समझ से बाहर है. उनका कहना था कि जिन लोगों ने मस्जिद तोड़ी थी, उन्ही के हक़ में फ़ैसला सुना दिया गया. यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद तोड़ने के लिए भी उन्हें ही अपराधी भी माना है.

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कहा-सवाल हक का है
उन्होंने कहा कि अब कौन सा दरवाज़ा बचा है, जिसे खटखटाएं. वकीलों को भी हमने बुलाया है. बात ज़मीन की नहीं, बात उस जगह पर ही मस्जिद होने की है. सवाल हक़ का है, जिसकी वह चीज़ थी उसे वह दें. गरीब की जगह क्यों दे रहे हैं. यह ज़मीन जो दी गई है, वह हमें सही नहीं लगती. वहां मस्जिद ही थी और उसी का हक़ था. नौ दिन के बाद हम फिर से बैठेंगे और विचार करेंगे. ये हमारी अना का मसला नहीं है. हम जो भी कहेंगे सोच-समझ कर कहेंगे. हम वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद ही आगे का रास्ते तय करेंगे.

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500 एकड़ जमीन भी मंजूर नहीं
उन्होंने आगे कहा, अगर सुप्रीम कोर्ट यह कहता कि मस्जिद नहीं मंदिर था. उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. तब भी समझ आता और मसला खत्म हो जाता. हालांकि यह साबित नहीं हुआ कि वहां मस्जिद नहीं थी. दिल्ली में बहुत सी मस्जिद हैं, जहां नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं है, लेकिन वह हमारी इबादत की जगह हैं. मुल्क हमारा है. मामला देश का है तो यही सुलझेगा, इंटरनेशनल कोर्ट में नहीं. ज़मीन नहीं चाहिए हमें. वह उन्होंने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी है. हम उनसे भी कहेंगे की वह जमीन वापस कर दें. हमें 5 एकड़ क्या, 500 एकड़ ज़मीन देंगे तब भी हम नही लेंगे.

HIGHLIGHTS

  • जमीयत उलेमा हिंद ने फैसले पर एहतेराम जताया, लेकिन 'खलिश' की बात भी कही.
  • कहा-बात ज़मीन की नहीं, उस जगह पर ही मस्जिद होने की है. सवाल हक़ का है.
  • सुन्नी वक्फ बोर्ड से भी कहेंगे कि वह दी गई जमीन को वापस कर दें.
Supreme Court Jamiat Ulema E Hind Maulana Arshad Madni Ayodhya Issue
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