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एक सैनिटरी पैड के बदले एक पौधा, जमशेदपुर का पैडमैन पांच साल से चला रहा यह अभियान

एक सैनिटरी पैड के बदले एक पौधा, जमशेदपुर का पैडमैन पांच साल से चला रहा यह अभियान

Updated on: 22 May 2022, 10:00 AM

जमशेदपुर:

जमशेदपुर के 32 वर्षीय तरुण कुमार जब अपनी बाइक से निकलते हैं तो पीछे की सीट पर सैनिटरी नैपकिन से भरा एक बड़ा कार्टून या बैग बंधा होता है। वह गांवों में महिलाओं और स्कूली बच्चियों के बीच जाते हैं। उन्हें माहवारी स्वच्छता के बारे में बताते हैं और उनके बीच सैनिटरी पैड बांटते हैं। यह उनके लिए किसी एक रोज की नहीं, रोजर्मे की बात है।

सबसे खास बात यह कि वह महिलाओं और किशोरियों से एक पैड के इस्तेमाल के एवज में उन्हें एक पौधा लगाने की शपथ दिलाते हैं। पिछले पांच-छह साल से यह सिलसिला लगातार चल रहा है। झारखंड के कोल्हान इलाके में पैडमैन के नाम से मशहूर तरुण कुमार यह अभियान किसी सरकारी या डोनर एजेंसी के सहयोग के बगैर क्राउडफंडिंग मॉडल पर चला रहे हैं।

तरुण ने आईएएनएस के साथ इस अभियान की पूरी कहानी साझा की। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने वर्ष 2009 में यूनिसेफ के लिए काम करना शुरू किया। 2017 तक इस संस्था के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के लिए काम करते हुए उन्हें झारखंड के प्राय: सभी इलाकों में सुदूर गांवों में जाकर लोगों से संवाद का मौका मिला। खास तौर पर बाल अधिकार से जुड़े मसलों पर काम करते हुए वह ग्रामीण क्षेत्र के कई स्कूलों में जाते थे।

एक बार जब वह जमशेदपुर के ग्रामीण इलाके में एक स्कूल की बच्चियों से संवाद कर रहे थे, तब एक छात्रा असहज होकर कमरे से बाहर चली गयी। बाद में पता चला कि माहवारी से जुड़ी समस्या की वजह से वह परेशान थी। स्कूल में ऐसा कोई इंतजाम नहीं था, जिससे वह अपनी परेशानी हल कर पाती। इस वाकिए के बाद तरुण ने महसूस किया कि यह ऐसा मसला है, जिसे लेकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं और किशोरियां बेहद असहज हैं। वह गंभीर से गंभीर स्थिति में भी चुप रह जाती हैं और अपनी समस्या किसी से शेयर नहीं करतीं। तरुण ने उसी समय तय किया कि ग्रामीण महिलाओं-किशोरियों के बीच माहवारी को लेकर कायम टैबू को तोड़ने और उन्हें जागरूक करने के लिए चुप्पी तोड़ो अभियान चलायेंगे।

उन्होंने नौकरी छोड़ दी और तभी से यह सिलसिला लगातार चला आ रहा है। तरुण अपनी निजी आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिए अनुवाद और लेखन करते हैं। इसके अलावा वह स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए प्रोजेक्ट तैयार करने से लेकर ट्रेनर और रिसोर्स पर्सन के तौर भी काम करते हैं।

2017 में ही तरुण ने निश्चय फाउंडेशन नामक एक संस्था बनायी। शुरुआती दौर में काफी परेशानियां हुईं, लेकिन कई लोग स्वैच्छिक तौर पर इस अभियान के साथ जुड़े। पूर्वी सिंहभूम जिले के सभी 11 प्रखंडों में वह और उनके साथी बाइक या अपने साधनों से गांव-गांव जाते हैं। महिलाओं और स्कूली छात्राओं से संवाद के साथ वह उनके बीच नि:शुल्क सैनिटरी पैड बांटते हैं।

जमशेदपुर, पोटका, घाटशिला, धालभूमगढ़, मुसाबनी, डुमरिया, गुड़ाबांधा, बहरागोड़ा, चाकुलिया, बोड़ाम, पटमदा प्रखंड के लगभग 100 स्कूलों में उन्होंने पैड बैंक बनवाया है। प्रत्येक पैड बैंक में 100 सैनिटरी पैड्स रखे गए हैं। जरूरत के वक्त छात्राओं और महिलाओं को यह बगैर किसी शुल्क के उपलब्ध हो जाता है।

2018 में तरुण की संस्था ने क्राउडफंडिंग के जरिए 5163 सैनिटरी पैड एक साथ इकट्ठा कर उन्हें महिलाओं और किशारियों के बीच बांटा। इस अभियान के लिए तरुण का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज किया गया। कोविड लॉकडाउन के दौरान जब दुकानें बंद थीं, तब ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को सैनिटरी पैड्स मिल पाना आसान नहीं था। तरुण और उनके साथियों ने अपना मूवमेंट पास बनवाया। फिर क्राउड फंडिंग अभियान चलाकर लगभग 9 हजार पैड्स खरीदे और उन्हें महिलाओं-किशोरियों के बीच जाकर बांटा।

कोविड काल के दौरान चले इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नोटिस में लिया गया। पिछले साल नई दिल्ली में आयोजित कोविड-19 इएनजीओ अवार्डस के दौरान इस अभियान को हेल्थ एंड वेलनेस कैटेगरी में दक्षिण एशिया के 10 प्रमुख अभियानों में चुना गया। तरुण बताते हैं कि इन अवार्डस के लिए दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों से 430 एंट्रीज आई थीं। इनके बीच हमारे अभियान को पहचान मिली तो हमारा हौसला और बढ़ा।

तरुण के मुताबिक पिछले पांच सालों में उन्होंने चुप्पी तोड़ो अभियान के तहत लगभग 75-80 हजार किशोरियों और महिलाओं से संवाद किया है। उन्हें स्वच्छता और स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी दी है। उन्हें माहवारी के मुद्दे पर झिझक तोड़ने की शपथ दिलायी है। किशोरियां अब उन्हें पैडमैन भैया कहकर बुलाती हैं। इस पूरे अभियान के दौरान स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भी उनकी भरपूर मदद की है।

तरुण का दावा है कि इस अभियान में एक पैड के बदले एक पौधा के संकल्प का असर है कि पूर्वी सिंहभूम में चार सालों में महिलाओं-किशोरियों ने मिलकर 20 हजार से भी ज्यादा पौधे लगाए हैं।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.