जयशंकर ने कच्चातिवु पर इस पार्टी के CM को घेरा, छोटा द्वीप कहकर दी गई थी श्रीलंका को भारतीय जमीन
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को तमिलनाडु की डीएमके पार्टी पर जमकर हमला किया. उनका दावा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्रियों ने उस समय द्वीप को लेकर लापरवाही वाला रवैया अपनाया था.
नई दिल्ली:
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को तमिलनाडु की डीएमके पार्टी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देने के मामले में दावा किया है कि इंदिरा गांधी ने जब पांच दशक पहले श्रीलंका को भारत का यह द्वीप सौंपा था, तब डीएमके ने इसका समर्थन किया था. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विदेश मंत्री ने कहा कि वोटिंग से पहले तमिलनाडु के वोटरों को इस मामले की पूरी सच्चाई पता होनी चाहिए. एस. जयशंकर के अनुसार, उन्हें यह लगता है कि सबसे अहम है कि यहां के लोगों को सच्चाई पता होनी चाहिए. यह किस तरह से हुआ है? ऐसा इसलिए हुआ है कि जब केंद्र सरकार इस मामले पर बातचीत कर रही थी, तो वे सही में तत्कालीन राज्य सरकार से चर्चा कर रहे थी, उस समय राज्य सरकार डीएमके की थी. इस मामले को पूरी तरह से गुप्त रखा गया था.
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DMK कच्चातिवु पर बातचीत का थी हिस्सा
विदेश मंत्री जयशंकर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दस्तावेजों को देखने से यह पता चलता है कि डीएमके इन वार्ताओ में एक पक्षीय थी. उन्होंने कहा कि 1973 के बाद से तत्कालीन केंद्र सरकार और विदेश मंत्रालय ने इस केस पर व्यक्तिगत रूप से तमिलनाडु सरकार और तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के खास चर्चा की थी. द्रमुक तब ये ठीक मान रहा था. वह इस पर पूरी तरह से सहमत था. मगर उसने सार्वजनिक रूप से इसका समर्थन नहीं किया. उसकी केंद्र सरकार से गुजारिश थी वह सार्वजनिक रूप से इस बारे में कुछ नहीं कहने वाली है, मगर वास्तव में वह आपके साथ है.
यह मामला अचानक से नहीं सामने आया: जयशंकर
एक अप्रैल को देश के विदेश मंत्री एय जयशंकर का दावा था कि कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने कच्चातिवु द्वीप को लेकर उदासीनता दिखाई थी. उन्हें इसकी परवाह नहीं की. इसके विपरीत कानूनी विचारों के बावजूद उन्होंने भारतीय मछुआरों के अधिकारों पर ध्यान नहीं दिया. उस समय जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने इसे एक छोटा द्वीप और चट्टान करार दिया था. समुद्री सीमा समझौते के तहत 1974 में श्रीलंका को दिए कच्चातिवु को छोटा द्वीप और छोटी चट्टान बताया था. उन्होंने कहा था कि यह मामला अचानक से नहीं सामने आया है. ये हमेशा से एक जीवित मामला था. विदेश मंत्री ने कहा कि उस समय के विदेश सचिव और तमिलनाडु के तत्कालीन सीएम और द्रमुक के दिवंगत मुखिया करुणानिधि को दोनों देशों के बीच चर्चा की पूरी जानकारी रिकॉर्ड में मौजूद हैं.
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