नाती पोते के साथ खेलने की उम्र में जेल में बीत रहा बुढ़ापा
नाती पोते के साथ खेलने की उम्र में जेल में बीत रहा बुढ़ापा
लखनऊ:
बुढ़ापे में जब व्यक्ति अपने नाती पोतों के साथ खेलने की चाहत रखता है। ऐसे हालातों में उत्तर प्रदेश की जेलों में उम्र के अंतिम पड़ाव में चल रहे लोग जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से यूपी की 71 जेलों में 181 कैदी ऐसे हैं जिनकी उम्र 80 साल से ऊपर है। इनके अलावा दिव्यांग भी जेल की सलाखों के पीछे अपना समय काट रहे हैं।अभी पिछले महीने हुए विधान मंडल स्तर के दौरान उच्च सदन के एक सदस्य पुष्पराज जैन पम्पी ने मुख्यमंत्री से सवाल किया था कि प्रदेश की जेलों में कितने ऐसे कैदी हैं, जो देख नहीं सकते और दिव्यांग हैं। इसके लिखित जवाब में मुख्यमंत्री की तरफ से सदन को बताया गया कि प्रदेश की जेलों में न देख पाने वाले कुल 24 और दिव्यांग 185 कैदी निरुद्घ हैं। इसके अलावा एक सवाल में सदस्य ने पूछा था कि 80 साल से ज्यादा के कितने कैदी निरुद्घ हैं और जेलवार उनका विवरण क्या है। सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री की तरफ से 181 लोगों का आंकड़ा बताया गया। सरकार की तरफ से दिये गये आंकड़ों के अनुसार इस तरह के सबसे ज्यादा 26 कैदी केंद्रीय कारागार, फतेहगढ़ में बंद हैं। इसमें अगर फतेहगढ़ जिला कारागार के ऐसे बंदियों को भी जोड़ दिए जाये तो इनकी कुल संख्या होती है 29। इसके बाद सबसे ज्यादा 21 कैदी नैनी आगरा सेंट्रल जेल में, 18 आगरा सेंट्रल जेल में, 9 मैनपुरी जिला कारागार में, 8 बांदा डिस्ट्रिक्ट जेल में, 7 अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट जेल में और गाजियाबाद डिस्ट्रिक्ट जेल व गौतम बुद्घ नगर डिस्ट्रिक्ट जेल में 6-6 बंदी निरुद्घ हैं।
लखनऊ जिला कारागार और नारी बंदी निकेतन में भी चार-चार बंदी ऐसे हैं जो 80 साल की उम्र पार कर चुके हैं। सदस्य सवाल था कि क्या कैदियों को रिहा करने पर विचार किया जायेगा के जवाब में सरकार ने बताया है कि जेलों में बंद सिद्घदोष बंदियों की रिहाई के लिए यूपी प्रिसनर्स रिलीज ऑन प्रोवेशन एक्ट और अन्य धाराओं के तहत पात्र बंदियों की समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था है, लेकिन इन नियमों में सिद्घदोष बंदी द्वारा 14 साल की अपरिहार सजा भोगी जानी अनिवार्य है। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत क्षमादान देने, सजा घटाने उस सजा में अन्य प्रकार की कटौती किये जाने के लिए मृत्यु दंड के अतरिक्त दंड से दंडित सिद्घदोष बंदियों या उनके परिजनों द्वारा प्रस्तुत दयायचिकाओं के आधार पर समयपूर्व रिहाई की व्यवस्था है।
इस साल जुलाई में जारी के शासनादेश के अनुसार भी प्रदेश की जेलों में बंद सिद्घ दोष कैदियों की कतिपय शर्तो के आधीन समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था है। खास बात ये है कि यह स्थिति तब है जब प्रदेश की जेलें पहले से ही क्षमता से ज्यादा भरी हुई हैं। नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा 21़2 प्रतिशत कैदी 1,01,297 यूपी में बंद थे।
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