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विदेश मंत्री एस जयशंकर (फाइल फोटो)
विदेश मंत्री के रूप में पद संभालने के बाद एस जयशंकर ने अपने पहले ही ट्वीट में कहा था- पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के तय किए मानकों को आगे ले जाना और उनके रास्ते पर चलना गर्व की बात होगी. बता दें कि सुषमा स्वराज के स्थान पर पूर्व आईएफएस अधिकारी एस जयशंकर को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी.
My first tweet.
Thank you all for the best wishes!
Honoured to be given this responsibility.
Proud to follow on the footsteps of @SushmaSwaraj ji— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) June 1, 2019
विदेश मंत्री बनने के बाद एस जयशंकर ने ट्वीट किया, 'मेरा पहला ट्वीट- शुभकामना संदेशों के लिए आप सभी का शुक्रिया! महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने के बाद से गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं. सुषमा स्वराज जी के पदचिह्नों पर चलना बहुत गर्व से भरा हुआ अहसास है.'
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जयशंकर देश के मशहूर ब्यूरोक्रेट भी रह चुके हैं. विदेश मामलों की उनकी गहरी समझ को देखते हुए पूर्व पीएम मनमोहन सिंह भी उन्हें विदेश सचिव की जिम्मेदारी देना चाहते थे, लेकिन दे नहीं पाए थे. मोदी सरकार में उन्हें विदेश सचिव बनाया गया था और जब दूसरी बार पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो उन्हें विदेश मंत्री की जिम्मेदारी दे दी गई.
वाजपेयी की सरकार गिरी थी, तब सुषमा ने दिया था ओजस्वी भाषण
सुषमा स्वराज ने लंबे राजनीतिक जीवन में कई यादगार और ओजमयी भाषण दिए, जिनकी लोग अकसर चर्चा करते रहते हैं. 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जब गिरी थी, तब सुषमा स्वराज ने ओजस्वी भाषण से विरोधियों को चित्त कर दिया था. 11.06.1996 को सुषमा स्वराज के उस भाषण को आज भी याद किया जाता है. उस भाषण के कुछ अंश पढ़िए:
“मैं यहां विश्वासमत का समर्थन करने के लिए खड़ी हुई हूं. अध्यक्ष जी, ये इतिहास में पहली बार नहीं हुआ है, जब राज्य का सही अधिकारी राज्याधिकार से वंचित कर दिया गया हो. त्रेतायुग में यही घटना राम के साथ घटी थी. राजतिलक करते-करते उन्हें वनवास दे दिया गया था. द्वापर में यही घटना धर्मराज युद्धिष्ठिर के साथ घटी थी, जब धुर्त शकुनी की दुष्ट चालों ने राज्य के अधिकारी को राज्य से बाहर कर दिया था.
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अध्यक्ष जी, जब एक मंथरा और एक शकुनी, राम और युद्धिष्ठिर जैसे महापुरुषों को सत्ता से बाहर कर सकते हैं तो हमारे खिलाफ तो कितनी मंथराएं और कितने शकुनी सक्रिय हैं. हम राज्य में बने कैसे रह सकते थे? अध्यक्ष जी, शायद रामराज और स्वराज की नियति यही है कि वो एक बड़े झटके के बाद मिलता है और इसीलिए मैं पूरे विश्वास से कहना चाहती हूं कि जिस दिन 28 तारीख को दोपहर मेरे आदरणीय नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सदन में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा की थी, उस दिन हिन्दुस्तान में रामराज की भूमिका तैयार हो गई थी. हिंदुस्तान में उस दिन स्वराज की नीव पड़ गई थी.
Source : News Nation Bureau