तो क्या अब खत्म होने वाली है भारत-रूस की ऑयल डील !

बिजनेस लाइन की खबर के मुताबिक,ये एक ऐसा मसला है जिसने भारत-रूस की ऑयल डील को फंसा दिया है.क्योंकि अब इन दोनों देशों के बीच पेमेंट को लेकर सहमति बनना मुश्किल  हो जाएगा. 

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Mohit Saxena
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India-Russia oil deal

India-Russia oil deal( Photo Credit : social media)

यूक्रेन की जंग शुरू होने के बाद से दुनिया भर में जिस डील ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी वो थी भारत और रूस के बीच की ऑयल डील. कई दशकों पुरानी दोस्ती वाले भारत-रूस की ये डील अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों की नजरों में पिछले एक साल से कांटे की तरह खटकती रही लेकिन भारत इस डील से पीछे नहीं हटा और उसने रिकॉर्ड तोड़ मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीदा. लेकिन भारत और रूस के बीच दोनों ही देशों के लिए फायदे का सौदा बनी ये ऑयल डील अब मुश्किल में हैं क्योंकि इसमें अमेरिका और उसके G7 के साथी देशों ने एक तगड़ा पेंच फंसा दिया है. पहले बात अमेरिका की.

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दरअसल जी7 देशों ने कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल फिक्स कर दी है. यानी अब इससे ज्यादा कीमत पर ये तेल डॉलर के भुगतान के जरिए नहीं खरीदा जा सकता और अगर कोई कंपनी ऐसा करती है तो उस पर इन ताकतवर देशों की पाबंदियाें. लागू हो जाएंगी.

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बिजनेस लाइन की खबर के मुताबिक,ये एक ऐसा मसला है जिसने भारत-रूस की ऑयल डील को फंसा दिया है.क्योंकि अब इन दोनों देशों के बीच पेमेंट को लेकर सहमति बनना मुश्किल  हो जाएगा. दरअसल यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिकी पाबंदियों की काट निकालने के लिए रूस ने भारत को सस्ती दरों  पर कच्चा तेल बेचने का ऑफर दिया था. उस वक्त तक भारत रूस से अपनी जरूरत का महज 2 फीसदी तेल ही आयात करता था. रूस के ऑफर को भारत ने हाथों हाथ लिया और धीरे धीरे भारत में रूस के कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ती चली गई.

इस तेल के पेमेंट के लिए भारत-रूस के बीच रुपया रूबल समझौते भी हुआ. लेकिन जैसे जैसे भारत ने रूस से ज्यादा तेल खरीदना शुरू किया तो योे समझौता बेअसर होने लगा क्योंकि दोनों देशों के बीतच व्यापार का संतुलन रूस की ओर झुक गया. रूस के पास भारतीय रुपए का भंडार इकट्ठा हो गया जो उसके किसी काम का नहीं था क्योंकि वो भारत के अपनी जरूरत का ज्यादा सामान नहीं खरीद रहा था.

साल 2022-23 में भारत ने रूस से 49.35 बिलियन डॉलर का आयात किया जबकि भारत का निर्यात बस 3.14 बिलियन डॉलर का ही रहा. अब तक भारत रूस से जो तेल खरीद रहा था वो 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत वाले कच्चा तेल था लेकिन चीन से इस तेल की डिमांड बढ़ने के बाद अब इसकी सप्लाई कम हो गई है, रूस अब भारत की बजाय चीन को  कम कीमत वाले कच्चे तेल की सप्लाई ज्यदा कर रहा है.  लिहाजा भारत को इससे ज्यादा कीमत वाला तेल खरीदना होगा लेकिन इसका भुगतान अगर डॉलर या यूरो में किया गया तो भारतीय कंपनियों और बैंको के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी.

रूसी तेल के भुगतान का एक ऑप्शन चीनी मुद्रा युआन हो सकता है लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं है जबकि भारत ने रूस को रुपए में भुगतान करके उस रुपए का गवर्मेंट सिक्योरिटी और बॉड्स में निवेश करने का विकल्प दिया था लेकिन रूस उस,में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है. दरअसल रूस पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से युद्ध से जूझ रहा है और उसके रक्षा खर्चों में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है.लिहाजा वो अपने तेल की ब्रिक्री से मिली रकम को निवेश में नहीं लगाना चाहता. खबरों के मुताबिक भारत सरकार के कई मंत्रालय इन हालात पर नजर बनाए हुए हैं.

रिपोर्टः (Sumit Kumar Dubey)

 

HIGHLIGHTS

  • रिकॉर्ड तोड़ मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीदा
  • G7 के साथी देशों ने एक तगड़ा पेंच फंसा दिया है
  • भारतीय कंपनियों और बैंको के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी
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