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क्या वाकई भारत से आगे ही चीन की सेना या कहानी कुछ और है

पहले बात इतिहास की कर लेते हैं..भारत और चीन की ताकत के बीच जब तुलना की बात होती है तब चीन अक्सर 1962 की उस जंग की याद दिलाता है जब भारत को हार का मुंह देखना पड़ा था और कई हजार वर्ग किलोमीटर की जमीन चीन के कब्जे में चली गई थी

Updated on: 15 Jun 2023, 01:55 PM

New Delhi:

पिछले दिनों सिंगापुर में शाग्रीला डायलॉग सम्मिट में दुनिया भर के डिफेंस डेलीगेट्स इकट्ठे हुए.. इसी दौरन चीन की आर्मी के एक अधिकारी ने भारत की फौजी ताकत  पर सवालिया निशान लगाते हुए बयान दिया कि चीन को फौज से कोई खतरा नहीं है क्योंकि वो चीन की मिलिट्री पावर से काफी पीछे रह गई है.. उनके इस बयान के साथ ही इस बात की चर्चा चल पड़ी है कि क्या वाकई में भारत की मिलिट्री चीन से इतनी पिछड़ चुकी है कि चीन उसे अपने लिए कोई खतरा नहीं मानता है.. साल 2020 से लद्दाख सेक्टर में  भारत और चीन के बीच जारी तनाव के बाद दोनों देशों की फौजी ताकत की तुलना और ज्यादा मौजूं हो गई है. .

पहले बात इतिहास की कर लेते हैं..भारत और चीन की ताकत के बीच जब तुलना की बात होती है तब चीन अक्सर 1962 की उस जंग की याद दिलाता है जब भारत को हार का मुंह देखना पड़ा था और कई हजार वर्ग किलोमीटर की जमीन चीन के कब्जे में चली गई थी.

 लेकिन वो वक्त और था और ये वक्त और है..उस वक्त भारत अपनी आवाम का पेट भी विदेशों से मिले गेहूं से भरता था जबकि अब भारत दुनिया सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है..

खैर..1962 हार भारत के लिए एक झटका था और इससे उबरते हुए भारत ने अपनी फौजों को मजबूत बनाने का काम शुरू किया.1967 में भारत और चीन के बीच सिक्किम के नाथू ला और चो ला इलाके में भिड़ंत हुई . दोनों ही मौकों पर चीन को पीछे हटना पड़ा.

इसके 20 साल  बाद यानी 1987 में अरुणाचल प्रदेश में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं और इंडियन आर्मी ने ऑपरेशन फॉल्कन के तहत चीन को चौंकाते हुए अपनी पोजिशन मजबूत कर ली और चीनी सेना वापस लौट गई..


तो ऐसा नहीं है कि 1962 के बाद भारत चीन के आगे बैकफुट पर रहा हो..जब-जब जरूरत पड़ी है तब-तब इंडियन आर्मी ने चीन को कड़ी टक्कर दी है..

और अब बात करते हैं मौजूदा हालात की..चीन के लीडर्स जिस बात का दम भरते हैं वो है उसका डिफेंस बजट..


मौजूदा वक्त में चीन का रक्षा बजट 225 अरब डॉलर का है तो वहीं भारत का रक्षा बजट 54.2 अरब डॉलर का.

जाहिर है, चीन अपनी फौजों पर भारत से कहीं ज्यादा खर्च कर रहा है लेकिन चीन की इकॉनोमी भी भारत से कहीं ज्यादा बड़ी है और उसके इरादे भी दुनिया में खुद को सुपर पावर के तौर पर प्रोजेक्ट करने के हैं..
 लिहाज इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि चीन का ये डिफेंस बजट ,साउथ चाइना सी में उसके पड़ौसी देशों, ईस्ट चाइना सी में जापान और प्रशांत महासागर में अमेरिका के साथ होने वाले टकराव के मद्देनजर है जबकि भारत की एसी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है.

अगर दोनों देशों की फौजों के जखीरे में मौजूद बड़े हथियारों की तुलना करें तो ग्लोबर फायर पावर के मुताबिक


चीन के पास 3,166 एयरक्राफ्ट हैं जबकि भारत के पास 2,210 है.
चीन के पास 4.950 टैंक्स है तो वहीं भारत के पास 4,614 टैंक्स हैं.
चीन के पास 1,74,300 आर्मर्ड व्हीकल है जबकि भारत के पास 1,00.882 हैं.
दोनों ही देशों के पास दो -दो विमान वाहक पोत हैं.
चीन के पास 78 पंडुब्बियां है जबकि भारत के 18 हैं.

बड़े हथियारों के ये आंकड़े भले ही चीन के पक्ष में हों लेकिन  जंग महज हथियारों से ही नहीं जीती जाती है. और ऐसा  नहीं है कि चीन अपने सारे संसाधन भारत के खिलाफ ही झौंक देगा.  

युद्ध के वक्त भूगोल भी बड़ी भूमिका निभाता है और भारत-चीन के मामले में ये भारत के पक्ष में है.

भारत चीन के बीच अगर युद्ध होता है तो एयरफोर्स इसमें बड़ी भूमिका निभा सकती है.  भारत-चीन सीमा की भौगोलिक स्थिति भी इंडियन एयरफोर्स के हक में है. चीन के फाइटर जेट्स को तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरेंगे. लिहाजा चीनी विमान ना तो  ज्यादा विस्फोटक ले जा सकते हैं और ना ही उनमें  ज्यादा ईंधन भरा जा सकता है.

और चीन चीनी एयरफोर्स के पास अपने फाइटर जेट्स में हवा में ईंधन भरने की क्षमता भी काफी कम है. जबकि भारत के विमान कमोबेश निचले इलाकों से उड़ान भरेंगे और वो ज्यादा हथियार ले जा सकते हैं.

सुखाई30 एमकेआई फाइटर जेट के साथ ब्रह्मोस जैसी क्रूज मिसाइल को इंटीग्रेट करके भारत ने उसकी मारक क्षमता को भी काफी बढ़ा दिया है.

भारत की अग्नि मिसाइल को चीन के काफी भीतर तक घुसकर हमला करने में सक्षम है.


1962 की जंग तो बस जमीन पर लड़ी गई थी. लेकिन अब
भारत और चीन के बीच जंग होने के हालात में इंडियन नेवी चीन की सप्लाई लाइन को बंद करने का माद्दा रखती है.

दरअसल चीन अपनी जरूरत सामान खरीदने और अपने प्रो़डक्ट्स को बेचने के लिए हिंद माहासागर के सी रूट्स का इस्तेमाल करता है और भारत अपनी लोकेशन के चलते किसी भी वक्त चीन की इस सप्लाइ लाइन को ब्लॉक कर सकता है.
चीन के पास भले है एक बड़ी नेवी हो लेकिन अरब सागर औॅर हिंद महासागर में तो इंडियन नेवी का ही सिक्का चलता है.

हाल ही में इंडियन नेवी ने अपने दोनों एयरक्राफ्ट कैरियर INS  विक्रमादित्य और INS विक्रांत को अरब सागर में एक साथ उतार कर अपनी ताकत का मुजाहिरा किया था.

चीन अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल इसी रूट से आयात करता है ऐसे में इंडियन नेवी की नाकेबंदी उसके लिए घातक साबित हो सकती है.


साल 1962 की जंग के बाद चीन ने बस वियतनाम के खिलाफ ही एक जंग लड़ी है जिसमें उसकी हार हुई थी. लेकिन भारत तो पाकिस्तान के खिलाफ तीन-तीन जंग लड़ चुका है. यानी युद्ध के अनुभव में भारत आगे है.

चीन का ये दावा सही है वो अपनी जरूरत के सैनिक साजोसामान को खुद बना रहा है जबकि भारत के ज्यादातर हथियार विदेश से खरीदे गए हैं.
लेकिन चीन के ये हथियार और गोलाबारूद अभी तक अनटेस्टेड हैं. चाहें चीन के फाइटर जेट्स हों या उसकी सबमरीन्स या एयरक्राफ्ट कैरियर्स ..ये बड़े हथियार अभीतक किसी युद्ध में इस्तेमाल नहीं हुए हैं . लिहाजा जंग के वक्त ये कितने कारगर साबित होंगे इसपर भी सवालिया निशान है.
 

बहरहाल भारत और चीन के बीच नेचुरल सीमा यानी हिमालय पर्वत के इस ओर भारत ने अब अपने बॉर्डर इलाकों इन्फ्रास्ट्रक्चर को डेवलेप करने शुरू कर दिया है.यानी जरूरत के वक्त भारत सरहद पर अपने फौज का मूवमेंट तेजी से कर सकता है. गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत ने चीन के साथ लगी सीमा पर 50,000 सैनिकों की तैनाती की है जी पिछले तीन साल से बरकरार है.

रिपोर्ट- सुमित दुबे