अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: 'महिला विकास' सिर्फ भाषणों तक सीमित!

'न्यू इंडिया' के सपने को पूरा करने के लिए देश की आधी आबादी के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लिहाज से कई मोर्चों पर काफी कुछ किया जाना अभी बाकी है

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Aditi Singh
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: 'महिला विकास' सिर्फ भाषणों तक सीमित!

रेडियो पर अपनी हालिया 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया। आज यानि 8 मार्च को होने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देश भर में कार्यक्रम आयोजित करने का भरोसा दिलाया। माना कि 'न्यू इंडिया' का सपना तभी पूरा हो सकेगा जबकि सामाजिक और आर्थिक लिहाज से महिलाओं की बराबर की भागीदारी हो।

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इससे पहले भी अपनी 'मन की बात' में प्रधानमंत्री मोदी महिलाओं की उभरती ताकत का जिक्र करते रहे हैं। वैसे मोदी सरकार दावा कर सकती है कि छोटे—मझोले कारोबार के लिए चलाई जा रही मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले 10 लाख रूपए तक के कर्ज में महिलाओं को तरजीह दी गई है। 75 फीसदी तक कर्ज महिलाओं को ही मिला है। गैस कनेक्शन की उज्ज्वला योजना से भी महिलाओं के हालात सुधरे हैं।

इसमें कोई शक भी नहीं है, लेकिन 'न्यू इंडिया' के सपने को पूरा करने के लिए देश की आधी आबादी के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लिहाज से कई मोर्चों पर काफी कुछ किया जाना अभी बाकी है, जिसके चलते प्रधानमंत्री के दावे बेमानी से लगते हैं। खासकर आज जबकि देश और दुनिया महिला दिवस पर जश्न मना रहा है, ये समझना जरूरी है कि देश में आधी आबादी आखिर कहां खड़ी है?

राजनीति में हाशिए पर महिला
मौजूदा दौर में भाजपा देश के 21 राज्यों में सत्ता में है, लेकिन उन राज्यों की विधानसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी आज भी 33 फीसदी के दशकों पुराने वादे से बेहद कम है। सिर्फ विधानसभा ही नहीं देश की सबसे बड़ी संस्था यानि संसद में भी महिलाओं की भागीदारी आबादी के मुकाबले बेहद कम है। 545 सांसदों वाली लोक सभा में महिला सांसदों हिस्सेदारी सिर्फ 65 है। मोदी सरकार तमाम हो—हल्ले के बीच जीएसटी बिल को तो कानून बनवा लेती है, लेकिन दशकों से लटका महिला आरक्षण बिल मानों किसी को याद तक नहीं! वैसे महिलाओं की अनदेखी का ये मामला सिर्फ भाजपा तक सीमित नहीं है। कांग्रेस समेत बाकी दल भी इस मामले में बराबर के दोषी हैं।

बढ़ते अपराध, घटती हिस्सेदारी
साल 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,29,243 मामले दर्ज हुए, जो अगले साल 2016 में करीब 10 हजार बढ़कर 3,38,954 हो गए। आंकड़ें बताते हैं कि मोदी के तमाम दावों के बीच महिलाओं के खिलाफ देश में हर दिन करीब 928 अपराध हुए। ये वो हैं, जो दर्ज हुए। दरअसल आज भी महिलाओं पर होने वाले ज्यादातर अत्याचार दर्ज ही नहीं होते। अफसोसजनक बात ये कि संवेदनशील ढंग से इन अपराधों से निपटने के लिए पुलिस थानों में महिला पुलिस ही मौजूद नहीं है। आधी आबादी की बात सुनने के लिए पुलिस में सिर्फ 7.28 फीसदी महिलाएं हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में तो महिलाओं की हिस्सेदारी महज़ 3.81 फीसदी है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय साल 2009, 2012 और 2016 में पुलिस बल में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 33 फीसदी करने की सलाह देता रहा, ​लेकिन हर किसी ने अनसुना कर दिया। इस मोर्चे पर भाजपा ही नहीं कांग्रेस और बाकी दल भी बराबर के दोषी हैं। वैसे महिलाओं की कम हिस्सेदारी सिर्फ राज्य पुलिसबल तक ही सीमित नहीं है। कल ही सरकार ने संसद में बताया कि जनवरी 2018 तक भारतीय सेना में सिर्फ 1548 महिला अफसर हैं। ये दुनिया की सबसे बड़ी सेना में आधी आबादी की हिस्सेदारी की निराश करती तस्वीर है।

जमीन से महरूम आधी आबादी
मसलन खेती—किसानी में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत करने वाली महिलाओं की जमीन के मालिकाना हक मामले में हिस्सेदारी बेहद कम है। सबसे ज्यादा कृषि उत्पादक सूबे पंजाब में केवल 0.8 फीसदी महिलाओं के नाम जमीन हक है। उत्तर प्रदेश में 6.1 फीसदी, राजस्थान में 7.1 फीसदी जबकि मध्य प्रदेश में 8.6 फीसदी जमीन ही आधी आबादी के नाम है। हांलाकिं उत्तर के मुकाबले दक्षिण और पूर्वोत्तर हिस्सों में हालात बेहतर हैं।

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​तकनीक में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
हालांकिं विज्ञान, इंजीनियरिंग और तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी ताकत का लोहा जरूर मनवाया है। देश के 2 लाख 83 हजार वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीकी जानकारों में 39389 महिलाएं हैं, करीब 14 फीसदी। यकीनन हिस्सेदारी यहां भी बेहद कम है, लेकिन सुरक्षा बल जितनी नहीं!

ऐसे में उम्मीद कम ही है कि इस साल भी हालात सुधारने की ईमानदार कोशिश हो सकेगी, जिस पर काम करना वक्त की सख्त जरूरत है। जाहिर है सोच बदलने से लेकर बेहतर नीतियां बनाने तक पर ईमानदारी से काम करना होगा और पहल सिर्फ सरकारों को नहीं बल्कि समाज को और खुद को भी करनी होगी।

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Source : Anurag Dixit

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