राष्ट्रपति चुनाव 2017: 1969 में जब इंदिरा ने किया था कांग्रेस के उम्मीदवार का विरोध
देश में इस साल जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। इलेक्शन कमीशन की ओर से इन चुनावों की तारीख तय कर दी गई है। 17 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं जिनका रिजल्ट 20 जुलाई को आएगा।
नई दिल्ली:
देश में इस साल जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। इलेक्शन कमीशन की ओर से इन चुनावों की तारीख तय कर दी गई है। 17 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं जिनका रिजल्ट 20 जुलाई को आएगा। इन चुनावों को लेकर भी एनडीए सरकार और सभी विपक्षी पार्टियों में ठनी हुई है, ऐसे में लगता है कि इस बार के चुनाव भी 1969 के चुनावों की तरह दिलचस्प होने वाले हैं।
आगामी राष्ट्रपति चुनावों को लेकर राजनीतिक गलियारों में जो गहमा गहमी चल रही है उसने 1969 की याद दिला रही है। देश में जब प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी काबिज थी उस दौरान राष्ट्रपति चुनाव ने पूरे संसद में हंगामा कर दिया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांग्रेस सिंडिकेट के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी का विरोध करके सबको चौंका दिया था। बता दें कि सिंडिकेट ने ही इसके पहले इंदिरा गांधी को 'गूंगी गुड़िया' कहना शुरू किया था। इसके बाद ही उन्हें भारत की सबसे शक्तिशाली महिला प्रधानमंत्री का दर्जा दिया गया था।
इंदिरा ने कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरी को समर्थन दिया था और उन्होंने सभी से अपील भी की थी कि 'अंतरात्मा की आवाज पर ही जनप्रतिनिधि वोट करें।'
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इस राष्ट्रपति चुनाव में जैसे ही यह मोड़ आया सभी चौंक गए और पूरे देश में इस बात की चर्चा होने लगी। कांग्रेस पार्टी पर इन दिनों सिंडिकेट हावी था। इसमें अध्यक्ष के कामराज, नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई, एस निजलिंगप्पा और एस के पाटिल शामिल थे।
जब इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री चुना गया था तब इस सिंडिकेट की मंशा यही थी कि इंदिरा सिंडिकेट के मुताबिक ही सरकार चलाएंगी। लेकिन, उन्हें अपने बल पर फैसला लेने का मौका मिला 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में।
गौरतलब है कि सिंडिकेट ने बिना इंदिरा गांधी के नीलम संजीवा रेड्डी का नाम राष्ट्रपति चुनावों के लिए घोषित कर दिया। लेकिन इंदिरा ने इसे एक चुनौती की तरह लिया। इंदिरा ने राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन की मौत के बाद कार्यवाहक के तौर पर पद संभाल रहे उपराष्ट्रपति वीवी गिरी से बात की। वे तैयार हो गए।
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बस फिर क्या था इंदिरा गांधी ने सभी सांसदों से अपील की कि वे अपनी अंतरात्मा की बात सुने और वोट करें। इस आव्हान के बाद से ही राजनीति चर्चाओं में इंदिरा के फैसले को ताकतवर नेता करार दिया गया। सिंडिकेट के खिलाफ जाकर इंदिरा के इस फैसले से सभी चौंक गए थे।
पहली प्राथमिकता के हिसाब से जब वोट गिने गए तो किसी को भी बहुमत नहीं मिला। वीवी गिरी को 4,01,515 वोट्स मिले जो कि बहुमत के हिसाब से कम थे। इनमें 16,654 वोट्स कम रह गए थे। इसके बाद जब दूसरी प्राथमिकता के हिसाब से वोटों की गिनती हुई तो वीवी गिरी को 4,20,077 वोट्स मिले। वहीं संजीव रेड्डी को कुल वोट की संख्या 4,05,427 तक ही पहुंच सकी।
इस चुनावों में 14,650 वोटों से वीवी गिरी विजयी घोषित हुए। बता दें कि वीवी गिरि एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और उन्होंने श्रमिकों के लिए बहुत काम किया है। इन चुनावों के बाद कांग्रेस बिखर कर टूट गई।
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इन राष्ट्रपति चुनावों के बाद यह तय हो गया था कि राष्ट्रपति के दफ्तर का रास्ता प्रधानमंत्री के ऑफिस से होकर जाता है। देश में फिर से राष्ट्रपति चुनावों की गहमागहमी शुरू हो गई है।
फिलहाल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवानी में एनडीए सरकार इन चुनावों को अपनी साख से जोड़कर देख रही है वहीं विपक्षी दल भी एकजुट होकर अपनी ताकत आजमाते दिख रहे हैं। ऐसे में इस बार के राष्ट्रपति चुनाव बहुत ही रोचक हो सकते हैं।
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