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तालिबान की चीन के साथ बढ़ रही नजदीकियां, अफगानिस्तान में उभरते नए समीकरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में अफगानिस्तान के नए संसद भवन का उद्घाटन किया था. यह संसद भवन भारत ने 9 करोड़ डॉलर यानी आज की तारीख में करीब 660 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से बनवाया था.

Updated on: 30 Aug 2021, 12:52 PM

highlights

  • अफगानिस्तान में भारत ने कर रखा है भारी भरकम निवेश
  • तालिबानी युग आने से भारत के सामने सुरक्षा को लेकर चुनौती
  • चीन और तालिबान का बढ़ रहा साथ, मिलने लगा फायदा

नई दिल्ली :

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबानी युग की शुरुआत हो गई है. दुनिया के कई मुल्क तालिबानियों के इतनी तेजी से बढ़ने को लेकर हैरान है. भारत भी उनमें से एक है. भारत ने अफगानिस्तान में भारी-भरकम निवेश कर रखा है. उसने वहां पर कई परियोजनाएं शुरू कीं. लेकिन अब तालिबान के हाथ सत्ता की चाबी आने से उन निवेशों पर ताला लगता तो दिखाई दे रही रहा साथ ही सुरक्षा में भी सेंध लगने का खतरा मंडराने लगा है. भारत ने अफगानिस्तान में निवेश इसलिए किया था ताकि वहां शांति बनी रहे. क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबानियों को रोकना भारत का लक्ष्य था. तालिबानियों को पाकिस्तान का साथ मिला हुआ था. अगर तालिबान अफगानिस्तान में मजबूत होते तो पाकिस्तान उनके जरिए कश्मीर समेत देश में अशांति फैला सकता था. लेकिन अब जब तालिबान के वहां आ जाने से यह विचार करने की बात है कि बीते दो दशकों में किए इस निवेश से भारत को क्या मिला? जबकि चीन मामूली निवेश करके भी वहां बड़ा फायदा पा रहा है. तालिबान से चीन की नजदीकियां बढ़ने लगी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में अफगानिस्तान के नए संसद भवन का उद्घाटन किया था. यह संसद भवन भारत ने 9 करोड़ डॉलर यानी आज की तारीख में करीब 660 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से बनवाया था. आज उस संसद भवन में तालिबान का हुकूम चलेगा. 

भारत ने अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर का कर रखा निवेश

1920 में अफगान के किंग अमनुल्ला जहां रहा करते थे उस स्थान का भी मरम्मत भारत ने कराया था. 19वीं सदी में बने स्टोर पैलेस की मरम्मत कराके उसका उद्घाटन पीएम मोदी ने ही किया था. 2016 में पीएम मोदी ने अफगानिस्तान के सलमा डैम का उद्घाटन किया. इतना ही नहीं कई परियोजनाओं में भारत ने निवेश किया. मिली जानकारी के मुताबिक भारत ने अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर का निवेश किया है. 

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भारत का रुख 'वेट एंड वॉच' वाला 

अफगानिस्तान को आर्थिक मदद करने में भी भारत अपने हाथ खोल रखा था. मोदी सरकार की 'नेबरहुड फर्स्ट' पॉलिसी की तहत अफगानिस्तान को मदद की जा रही थी. ताकि शांति और द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत रखे जा सके. इससे दोनों देशों को फायदा होगा. लेकिन अब यह पॉलिसी अफगानिस्तान में फेल होता दिख रहा है. भारत ने नेपाल और भूटान में भी इसी पॉलिसी के तहत अरबों रुपए निवेश कर रखे हैं. अफगानिस्तान को लेकर भारत का रुख 'वेट एंड वॉच' वाला होगा.

निवेश पर पड़ सकता है असर 

अफगानिस्तान में चीन, रूस और पाकिस्तान लगातार तालिबानी के संपर्क में हैं और वहां अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हुए है. लेकिन भारत वेट एंड वॉच की नीति पर चल रहा है. अगर कोई ठोस निर्णय भारत नहीं लेता है तो अफगानिस्तान में उसकी स्थिति मजबूत हो जाएगी. ईरान में चाहबार पोर्ट प्रोजेक्ट पर भी असर पड़ सकता है.यह पोर्ट अफगानिस्तान से होता हुआ भारत आ रहा था. पाकिस्तान जाए बिना चाहबार पोर्ट मध्य एशिया को जोड़ सकता है. इतना ही नहीं 11 अरब डॉलर का हाजीगक माइन प्रोजेक्ट पर भी असर पड़ सकता है. 

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चीन को मिलने लगा फायदा 

बात अगर चीन की करें तो मामूली निवेश के बावजूद चीन की वहां स्थिति मजबूत हो रही है. चीन को माइनिंग प्रोजेक्ट्स मिल गया है. इसकी चर्चा हर तरफ हो रही है. पाकिस्तान की भी स्थिति अफगानिस्तान में मजबूत हो रही है. ये तमाम चीजें भारत के लिए चुनौती बन सकती है.