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सालाना 70 बिलियन डॉलर भारत को देने वाले, 2.5 करोड़ प्रवासी भारतीयों की दिल की पुकार

विदेशों में रहने वाले ढाई करोड़ लोग भारत से जुड़ाव महसूस करते हैं। कई भारतीय ऐसे भी हैं जो भारत लौट कर देश और अपने गांवों के लिए कुछ करना चाहते हैं।

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pradeep tripathi
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सालाना 70 बिलियन डॉलर भारत को देने वाले, 2.5 करोड़ प्रवासी भारतीयों की दिल की पुकार
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14वें प्रवासी भारतीय दिवस की शुरुआत शनिवार से हो रही है। हर साल 7 से 9 जनवरी को आयोजित होने वाले प्रवासी भारतीय सम्मेलन में दुनिया के कोने-कोने से कई प्रवासी भारतीय शामिल होते हैं। इस सम्मेलन में देश की आर्थिक तरक्की समेत कई मुद्दों पर चर्चा की जाती है।

1915 में 9 जनवरी के दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से मुंबई पहुंचने और भारत लौटने की याद में समर्पित इस सम्मेलन का एकमात्र उद्देश्य है दुनिया में फैले प्रवासी भारतीयों को भारत से जोड़े रखना और उनके माध्यम से भारत में निवेश के मौके तलाशते रहना।

7 जनवरी, शनिवार से कर्नाटक की राजधानी बैंग्लुरु में शुरु हो रहे प्रवासी भारतीय सम्मेलन में मॉरीशस, मलेशिया, कतर सहित कई देशों से करीब 4000 से अधिक प्रतिनिधि मंडल (डेलीगेट्स) भारत आएंगे। 9 जनवरी को कार्यक्रम के समापन पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 1 लाख रुपये का प्रवासी भारतीय सम्मेलन अवॉर्ड भी प्रदान करेंगे।

3 दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन की शुरुआत 14 साल पहले एक ख़ास मकसद से शुरु हुई थी। सम्मेलन का मकसद विदेश में रह रहे प्रवासी भारतीयों का अपने देश से जुड़ाव बरकरार रखा जा सके और साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को और बेहतर बनाने में उनकी मदद भी ली जा सके।

लेकिन क्या भारत को इस मकसद में कुछ कामयाबी हासिल हुई है? या फिर भारत के आर्थिक विकास में प्रवासी भारतीयों का कितना योगदान रहा है? यह बड़े सवाल हैं।

सम्मेलन की शुरुआत के वक्त विदेशों से आए प्रवासी भारतीयों के साथ बातचीत के लिए दिल्ली में प्रवासी भारतीय भवन बनाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सम्मेलन की आधारशिला रखी।

इस सम्मेलन के ज़रिए सरकार की कोशिश, आज़ादी के बाद भारत से दूर गए और एक प्रकार कट चुके उन प्रवासी भारतीयों को वापस भारत से जोड़ने की थी। जिन्होंने गुलाम हिंदुस्तान के दौरान या उसके बाद देश छोड़ दिया या फिर उन्हें देश छोड़ना पड़ा। आज़ादी के संघर्ष के दौरान भी इन प्रवासी भारतीयों का योगदान अह्म था और उसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भी अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखा था कि भारतवासी देश के किसी भी कोने से बाहर गए हों या किसी भी जगह पर रह रहें हों ‘इंडिया स्टैंड टू दैम वन वे और एनेथर’

लेकिन सवाल यह था कि उन सारे लोगों को जो कि भारतीय मूल के हैं और देश की तरक्की में भागीदार बन सकते हैं कैसे एक मंच पर लाया जाए और भारत का वसुदेव कुंटुम्ब का जो नारा है उस पर अमल किया जाए। इन बातों को ध्यान में रखकर इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई और सरकार की ओर से कुछ ख़ास पहलें भी की गई।

सबसे पहली पहल तो यह थी कि भारत सरकार ने इसे महात्मा गांधी के प्रवासी दौर से निकल भारत लौटने से जोड़ा गया। और इसके लिए श्याम बेनेगल को आमंत्रित कर विदेश मंत्रालय ने महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका के निवास के ऊपर और भारत लौटने तक के सफर पर एक डॉक्यूमेंटरी बनाने को कहा।

दूसरा कदम था कि भारत के विभिन्न देशों में बसे भारतीयों को भारत से जोड़ने के लिए मंच प्रदान करना। भारत के लिए गर्व की बात यह थी कि जहां कहीं भी भारतीय देश छोड़ कर गए, किसी भी कार्य के लिए गए मसलन कुछ लोग मजदूर बनकर गए और कुछ लोग संघर्ष करने के लिए गए, लेकिन आज वो सभी विदेशों में अपनी मेहनत, लगन और इच्छाशक्ति के चलते अच्छी तरह से विस्थापित हो चुके हैं।

साथ ही वो जिन देशों में रह रहे हैं उनकी तरक्की में भी योगदान दे रहे हैं इसके साथ ही वो भारत के विकास के लिए भी अपना योगदान देने को तत्पर हैं। आज़ाद भारत के लिए उनके दिल में इतनी जगह है कि वो कुछ न कुछ करना चाहते हैं। तो ऐसे में इन लोगों को देश से जोड़ने के लिए एक मंच प्रदान किया गया।

दुनिया में ढाई करोड़ प्रवासी भारतीय करीब 116 देशों में रहते हैं। और इनमें सबसे ज़्यादा तादाद खाड़ी के देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की है। यह तमाम प्रवासी भारतीय किसी न किसी रुप से भारत की अर्थव्यवस्था से भी जुड़े हैं और देश की तरक्की में मदद करते हैं। विदेशी पूंजी लाने और निवेश को बढ़ावा देने में इनका योगदान है। इन्हीं बातों को ध्यान रख कर एक अलग मंत्रालय भी बनाया गया है।

अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए बदलती नीतियों के बीच सरकार ने प्रवासी भारतीयों के लिए भी नीतियां बदलीं। भारत सरकार ने गौर किया कि वो देश जहां भारतीय रह रहे हैं उन देशों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाहन ठीक प्रकार कर रहे हैं। तब भी जबकि उन्हें वहां वो इज़्जत नहीं मिलती। अगर म्यांमार की बात करें जोकि पहले बर्मा कहलाता था वहां कई भारतीयों को जबरदस्ती भेजा गया था वहीं श्रीलंका में भी भारतीयों को स्टेटलेस बना दिया गया था। यह वो भारतीय थे जो कि टी स्टेट्स में काम किया करते थे। 100 साल से ज़्यादा समय से यह लोग वहां रह रहे थे। यहीं हाल यूगांडा समेत कई देशों में था।

पहले भारत कमज़ोर था तब यह प्रवासी भारतीय भी खुद को कमज़ोर महसूस करते थे लेकिन देश की अर्थव्यवस्था ने जब ज़ोर पकड़ी तब इन प्रवासी भारतीयों को भी एक मंच के ज़रिए जोड़ा गया तब स्थितियां बदलीं।

100 साल से ज़्यादा विदेश में बसे उन भारतीयों को जिन्हें या तो आज़ादी से ब्रिटिश अपने साथ चीनी के कारखानों में काम कराने के लिए मजदूर के तौर पर ले गए थे। कई भारतीय टी प्लांटेशन, रबर प्लांटेशन में मज़दूरी करने के लिए गए विदेश गए थे और कई भारतीय ऐसे भी है जो आज़ादी के बाद से विदेश जा रहे हैं पढ़ाई के लिए और अपने तेज़ दिमाग और उत्कर्षता के चलते वहीं स्थापित होने में सफल हो जाते हैं। ज़्यादातर भारतीय पश्चिमी देशों में जैसे अमेरिकी और यूनाइटेड किंगडम में बस गए हैं। यह सक्षम हैं और अपने देश के साथ ही दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।

सरकार चाहती है कि यह प्रवासी भारतीय किसी न किसी तौर पर भारत से जुड़े रहें चाहें वो सांस्कृतिक तौर पर हो या निजी तौर पर। इससे न सिर्फ उनकी इज़्जत बढ़ती है बल्कि वो अपनी जड़ भी पकड़ते हैं इससे भारत की भी इज़्जत दुनिया में बढ़ती है।

कई बार यह सवाल भी उठता है कि कहीं यह सम्मेलन सिर्फ एक रस्मअदायगी भर तो नहीं लेकिन जब इसके इतिहास में देखेंगे तो पता लगता है कि बेहद धीमी गति से शुरु हुए और बढ़े इस सम्मेलन ने अब अपनी जगह पकड़ ली है।

विदेशों में रहने वाले ढाई करोड़ लोग भारत से जुड़ाव महसूस करते हैं। कई भारतीय ऐसे भी हैं जो भारत लौट कर देश और अपने गांवों के लिए कुछ करना चाहते हैं।

जहां तक निवेश की बात है तो प्रवासी भारतीय सम्मेलन के अलावा देश के ज़्यादातर राज्य अपना एक आर्थिक फोरम का गठन भी करते हैं और निवेश के मौके तलाशे जाते हैं। लेकिन अगर बिना किसी सम्मेलन की बात किए बगैर देखा जाए तो वैसे भी प्रवासी भारतीय देश में हर साल करीब 70 बिलियन डॉलर का रेमिटेंस भेजते हैं जोकि दुनिया में सबसे ज़्यादा है।

जब दुनिया फाइनेंशियल क्राइसस के दौर से गुज़र रही थी उस समय भी देश में आने वाला रेमिटेंस बढ़ रहा था जिससे देश की अर्थव्यस्था को मज़बूती मिली थी। साल 1991 में जब देश की अर्थव्यवस्था बेहद नाज़ुक दौर में थी, तब हमारे पास फॉरेन रिज़र्व एक्सचेंज भी बहुत कम था ऐसे समय में भी देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने इन्वेस्ट इंडिया बॉन्ड के लिए 1 बिलियन डॉलर लिमिट जारी की थी, तब प्रवासी भारतीयों ने इसमें पूरा इन्वेस्ट किया था।

लेकिन प्रवासी भारतीय भारत आएं और निवेश करें उसके लिहाज़ से देश में निवेश का माहौल बनाना बेहद ज़रुरी है। जब तक निवेश के लिए नियमों में ढील या छूट नहीं दी जाएगी तब तक प्रवासी भारतीय सम्मेलन और प्रधानमंत्री का सपना मेक इन इंडिया को बहुत बल नहीं मिलेगा।

इसीलिए ग्रीनफील्ड निवेश और लैंड एक्वीजिशन समेत कई मुद्दों पर गंभीरता से सोचना होगा। क्योंकि इन समस्याओं के चलते प्रवासी भारतीय ही नहीं देश के कारोबारियों को भी निवेश करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और निवेश की गति धीमी पड़ती है।

इसके अलावा एक बड़ी चुनौती यह है कि लगातार प्रवासी भारतीय देश से वोटिंग अधिकार की मांग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने उनकी इस मांग पर गौर करने के आश्वासन देने के अलावा अभी तक कुछ और नहीं किया। माना जाता है करीब 1 करोड़ प्रवासी भारतीय वोट के अधिकारी है लेकिन विदेशों में रहने के कारण वो वोट नहीं कर पाते। ऐसे में उनकी मांग है कि दूसरे देशों की तरह भारत भी कोई कदम उठाए जिससे उन देशों के दूतावासों में जाकर प्रवासी भारतीय वोट कर सकें।

लेकिन इस राह में भी कई कांटे हैं। एक तो यह मांग कितनी प्रबल है इसे देखना होगा दूसरा यह कि दूतावास तक आकर वोट करना उन लोगों के लिए भी कितना व्यवहारिक होगा यह भी देखना होगा। क्योंकि इसके लिए एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जो भारत के साथ ही प्रवासी भारतीयों के लिए भी व्यवहारिक हो जिसके तह्त वो अपने आसपास ही वोट कर सकें।

ख़ास बात यह रही की प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों से PIO/OSI कार्ड से जुड़ा किया अपना वादा पूरा कर दिया। PIO कार्ड पहले 15 साल के लिए था जिसे अब OSI कार्ड की तरह ताउम्र के लिए कर दिया गया। साथ ही PIO कार्ड में पुलिस में जाकर रिपोर्ट देनी होती थी उस व्यवस्था को सरल बनाया गया।

इसके अलावा, प्रवासी भारतीय सम्मेलन पर एक आरोप जो लगता है वो यह है कि इस सम्मेलन में पश्चिमी देशों के प्रवासी भारतीयों को ज़्यादा तवज्जो दी जाती है और खाड़ी देशों के प्रवासी भारतीयों को उतना महत्व नहीं मिलता जबकि सबसे ज़्यादा रेमिटेंस जो देश में आता है उनमें बड़ा भाग खाड़ी देशों के प्रवासी भारतीयों की ओर से आता है।

इसकी बड़ी वजह एक तो यह है कि खाड़ी देशों की ओर जाने वाले ज़्यादातर भारतीयों के परिवार यहीं देश में ही होते हैं और दूसरे यह लोग मेहनतकश या ज्यादतर मज़दूर होते हैं। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था को बल मिलने में इनके द्वारा भेजा गया रेमिटेंस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बावजूद इसके खाड़ी देशों के प्रवासी भारतीयों की उतनी चर्चा नहीं होती न ही उनकी समस्याओं पर बात होती है और न उनकी आवाज़ सुनी नहीं जाती है।

हालांकि अब स्थितियां बदल रही हैं। सरकार खाड़ी देशों की ओर पलायन कर चुके इन कम पढ़े-लिखे, कम जानकारी वाले और कम समझदार मज़दूर प्रवासी भारतीयों को उनके अधिकारों के बारे में सजग करने के लिए सरकार कदम उठा रही है। इन मजदूर प्रवासी भारतीयों का जिस प्रकार शोषण होता है, मालिक दुर्व्यवहार करते हैं इनका पासपोर्ट जब्त कर रख लेते हैं। इन सारे मामलों को देखते हुए हाल ही में प्रवासी भारतीय मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं। उनके लिए जागरुक अभियान चलाया गया है ताकि उन्हें एजेंटों के जाल से बचाया जा सके और उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दी जा सके।

इन सारी चुनौतियों के बावजूद अब तक सरकार के प्रवासी भारतीय सम्मेलन को न सिर्फ वैश्विक स्तर पर प्रशंसा मिली है बल्कि यह दुनिया के ढाई करोड़ प्रवासी भारतीयों को देश से जोड़ने में कामयाब रहा है। इस सम्मेलन की सफलता से न सिर्फ सरकार को उन्नति हासिल होगी बल्कि प्रवासी भारतीयों को भी दुनिया में अलग सम्मान और एक नई पहचान मिलेगी। जिसका फायदा दोनों तरफ से भारत को ही होगा।

Source : Shivani Bansal

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