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केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
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केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर पूर्वोत्तर में हो रहे भारी विरोध प्रदर्शन के बीच गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि बिल के पारित होने के बाद किसी भी विदेशी को राज्य सरकार की सहमति के बाद ही नागरिकता मंजूर की जाएगी. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अशोक प्रसाद ने कहा कि भारतीय नागरिकता के लिए सभी आवेदन की जांच उपायुक्त या जिलाधिकारी के द्वारा होगी जो बाकी कामों को पूरा करने के बाद इसे राज्य सरकार को सौंपेंगे. बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 लोकसभा से पारित हो चुका है.
उन्होंने कहा, 'राज्य सरकार को भी अपनी एजेंसियों के जरिये जांच करने का अधिकार है. उसके बाद ही किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता मंजूर की जा सकती है. बिना राज्य सरकार की सिफारिश पर किसी को भी भारतीय नागरिकता नहीं दी जाएगी.'
लगातार हो रहा है विधेयक का विरोध
असम, मणिपुर, मेघालय और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ कई महीनों से एक बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) की अगुआई में 70 अन्य संगठन ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं. 7 जनवरी को बिल के विरोध में राज्य भर में 'काला दिवस' मनाया गया था.
इनका कहना है कि यह विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो. असम में इस बिल का विरोध करने वाले प्रोफेसर हीरेन गोहैन, आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई और पत्रकार मंजीत महंता के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया गया है.
राजनीतिक पार्टियों का भी विरोध
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां भी लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.
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असम में बीजेपी की सहयोगी एजीपी (असम गण परिषद) इसी मुद्दे पर राज्य में समर्थन वापस ले लिया था और सरकार से बाहर हो गई थी. वहीं अब बिहार में बीजेपी की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी राज्यसभा में इस विधेयक का विरोध करने की बात कही है.
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
लोकसभा में पारित हो चुका यह विधेयक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत पलायन कर आए हैं, या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है.
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नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.
राजनाथ सिंह ने दी थी सफाई
पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा की खबरों पर टिप्पणी करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में कहा था कि विधेयक के बारे में 'गलतफहमी' फैलाई जा रही है. राजनाथ ने कहा था कि विधेयक असम या पूर्वोत्तर के राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा.
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उन्होंने कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के 6 अल्पसंख्यक समूहों के पात्र प्रवासियों के भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की बाधाओं को दूर करने के लिए लाया गया है.
Source : News Nation Bureau