जम्मू कश्मीर में करीब 3 साल पुराना पीडीपी-बीजेपी गठबंधन आखिरकार टूट गया। सूबे में अब राज्यपाल शासन लागू है।
बीते करीब 40 साल में 8वीं बार! वैसे राजनीतिक विश्लेषक शुरूआत से ही इस गठबंधन को बेमेल बता रहे थे। एक झंडा— एक विधान का नारा देने वाली बीजेपी दो झंडों के बीच सरकार चलाती रही। विचारधारा से परे सिर्फ सरकार में बने रहना मानों दोनों दलों की प्राथमिकता थी। तभी तो सरकार का साझा एंजेडा तय करने के लिए कमेटी का एलान तो हुआ, लेकिन जानकार बताते हैं कि कमेटी ने कभी काम ही नहीं किया।
वैसे इस दरम्यान ढेरों घटनाक्रम भी घटे। मसलन, पीएम मोदी ने सूबे के कई दौरे किए। हजारों करोड़ के पैकेज का एलान किया। वार्ताकार नियुक्त हुए। ऑपरेशन ऑल आउट चला तो पत्थरबाजों के मुकदमें भी वापिस हुए। लेकिन घाटी के हालात नहीं सुधर सके।
आतंक के लिहाज से साल 2018 काफी बुरा रहा। शायद यही वजह है कि अब केन्द्र और राज्य के मानों हर फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। बीजेपी के मुताबिक सूबे की सरकार आतंक पर लगाम लगाने में नाकाम रही। विपक्ष पूछ रहा है कि सरकार में बैठे बीजेपी के मंत्री तब क्या कर रहे थे?
कांग्रेस का आरोप है कि इस गठबंधन ने राज्य को तबाह कर बदहाल करके छोड़ दिया, लेकिन सर्जिकल स्टाइक पर सवाल कांग्रेस के थे और पत्थरबाजों के मुकदमें की सलाह सर्वदलीय बैठक में भी दी गई थी। तो क्या विपक्ष भी सिर्फ सियासत कर रहा है?
सत्ता से बेदखल होकर महबूबा मुफ्ती कह रही हैं कि सूबे में ‘बाहुबल वाली सुरक्षा नीति’ नहीं चलेगी तो क्या ऑपरेशन ऑल आउट का राजनीतिक विरोध होगा? क्या वाकई मोदी सरकार की कश्मीर नीति फेल साबित हुई है? इस सवाल की वजह कई हैं। जब नोटबंदी से आतंक की कमर टूट चुकी थी तो गठबंधन तोड़ने की नौबत क्यों आई?
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— News State (@NewsStateHindi) July 2, 2018
तीन साल सत्ता में रहने के बाद क्या बीजेपी अब फिर से कश्मीरी पंडितों के मुद्दे को याद करेगी? अनुच्छेद 370 का अब क्या होगा? घाटी के विकास का क्या होगा? वार्ताकार की पहल का क्या होगा? कश्मीर में आतंक का क्या होगा?
वैसे रमजान के दौरान हुआ सीजफायर अब खत्म हो चुका है। फिर से शुरू हुए ऑपरेशन ऑल आउट को कामयाबी भी मिल रही है। ऐसे में अब आगे की रणनीति क्या होगी?
इसी मुद्दे पर आज देखिए देश के सबसे पसंदीदा डिबेट शो में से एक 'इंडिया बोले', आज शाम 6 बजे, न्यूज़ नेशन टीवी पर।
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Source : News Nation Bureau