Independence Day 2020: भारत-पाकिस्तान बंटवारा, जानें क्या था 55 करोड़ का मामला
भारत ने शुरू में पाकिस्तान को 20 करोड़ पहली किस्त के तौर पर दिए थे और बाकी 55 करोड़ रोक कर रखे थे, लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ये मंजूर नहीं था.
नई दिल्ली:
15 अगस्त 1947 (15 August) को भारत अंग्रेजों के गुलामी से आजाद हुआ था. स्वतंत्रता के पहले ही भारत का विभाजन (Partition) हो गया था और उसी समय एक नया देश पाकिस्तान (Pakistan) का जन्म भी हुआ था. 14 अगस्त 1947 को ही पाकिस्तान भी अपने अस्तित्व में आ गया था. भारत के विभाजन के साथ ही कई सवाल भी एक साथ उठ खड़े हुए थे. आज तक इन सवालों के जवाब स्पष्ट रुप से किसी को नहीं मिल पाए हैं. माना जाता है कि भारत ने विभाजन के बाद पाकिस्तान को अपना अस्तित्व बनाने के लिए 75 करोड़ दिए थे. हालांकि ये तथ्य आज भी विवादित है.
पाकिस्तान को पहली किश्त में मिले 20 करोड़
कुछ तथ्यों की मानें तो भारत ने शुरू में पाकिस्तान को 20 करोड़ पहली किस्त के तौर पर दिए थे और बाकी 55 करोड़ रोक कर रखे थे, लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ये मंजूर नहीं था और वे पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के पक्ष में थे. कहा जाता है कि यही वो कारण था कि महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी. खैर, जो भी कारण रहा हो आज भी किसी को भी उस दौर की घटना के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है. आज भी इस पर हर किसी की राय अलग अलग होती है.
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कश्मीर पर हमले के बाद रोकी राशि
पाकिस्तान को जो राशि दी जाने वाली थी वह 55 करोड़ नहीं बल्कि 75 करोड़ थी. पहली किस्त के रूप में उन्हें 20 करोड़ रुपये दिए गए थे, लेकिन तभी पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के ऊपर हमला कर दिया. इसकी कड़ी प्रतिक्रिया स्वरूप भारत सरकार ने बाकी बचे 55 करोड़ देने पर रोक लगा दी और कहा कि पहले कश्मीर समस्या को हल कर लो ताकि आगे दी जाने वाली राशि का इस्तेमाल सेना पर और भारत के विरुद्ध ना हो सके. यहां गांधी जी इस निर्णय के खिलाफ थे. उनका मानना था कि ऐसा करने से दोनों देशों के बीच रिश्ते और खराब होंगे और अभी-अभी आजाद हुए दोनों देशों के बीच के रिश्तों की शुरुआत अच्छी नहीं होगी. उन्होंने सरकार से तत्काल पाकिस्तान को बची हुई राशि देने को कहा था.
इस तरह हुआ संपत्तियों का बंटवारा
कहा जाता है कि पाकिस्तान को जहां अचल संपत्ति का 17.5 फीसदी हिस्सा मिला था वहीं भारत का शेयर इसमें 82.5 फीसदी रहा था. इसमें मुद्रा, सिक्के, पोस्टल और रेवेन्यू स्टैंप्स, गोल्ड रिजर्व और आरबीआई के एसेट्स शामिल थे. चल संपत्ति की बात की जाए तो यहां भी 80-20 के अनुपात में विभाजन किया गया. जहां भारत को चल संपत्ति का 80 फीसदी भाग मिला, वहीं पाकिस्तान के हिस्से में 20 फीसदी आया. इन संपत्ति आइटम्स में सरकारी टेबल, कुर्सियां, स्टेशनरी, यहां तक कि लाइटबल्ब, इंकपॉट्स और ब्लॉटिंग पेपर भी शामिल थे. यहां तक कि आपको जानकर हैरानी होगी कि सरकारी पुस्तकालयों में उपलब्ध पुस्तकों को भी दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया. रेलवे और सड़क वाहन की संपत्तियों को दोनों देशों के रेलवे और सड़कों के हिसाब से बांटा गया.
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पगड़ी, लाठी, डिक्शनरी तक सब बंटे
अब अगर मूल सवाल पर नजर डाला जाए कि अगर पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपये दिए जाने थे तो भारत का शेयर आखिर क्या था. आपको बता दें कि भारत के हिस्से में उस दौरान 470 करोड़ आए थे. फ्रीडम ऑफ मिडनाइट पुस्तक में विभाजन के नियमों को विस्तार से बताया गया है. लाहौर एसपी ने उस दौरान दोनों देशों के बीच बराबर हिस्सों में सबकुछ बांटा चाहे वह पगड़ी, लाठी हो या राइफल हो. अंत में जो बचा वह था पुलिस बैंड. इसमें पाकिस्तान को बांसुरी दी गई, भारत को ड्रम, पाकिस्तान को ट्रंपेट तो भारत को क्रिंबल्स. पंजाब सरकार के इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिया में उपलब्ध डिक्शनरी को भी दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया.
शाही गाड़ियां और सींग
शराब कंपनियों को भारत में ही रखा गया. चूंकि एक इस्लामिक देश होने के नाते पाकिस्तान के लिए शराब हराम माना जा रहा था. हालांकि पाकिस्तान के इसके लिए मुआवजा राशि दे दी गई थी. इन सबसे अलावा भारत में एक ही सरकारी प्रेस था जो मुद्रा छापने का काम करते थे इसलिए भारत ने इसे देने से मना कर दिया इसलिए पाकिस्तान ने अपने यहां रबर स्टांप का इस्तेमाल शुरू कर दिया. भारत के वायसराय के पास दो शाही गाड़ियां थीं. एक सोने जड़ित थे तो दूसरा सिल्वर जड़ित थे. जब इसके विभाजन की बारी आई तो लॉर्ड माउंटबेटन ने टॉस करने का मन बनाया जिसमें भारत के हिस्से में गोल्ड जड़ित शाही गाड़ी आई. जब सब कुछ का विभाजन हो गया तो अंत में एक चीज बची वो थी कीमती सींग जिसका अंग्रेजों के द्वारा औपचारिक तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. इसे तोड़ कर बांटना इसे बर्बाद करने जैसा था इसलिए एडीसी (माउंटबेटन्स) ने इसे अपने साथ यादगार के तौर पर ले जाने का फैसला किया.
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