महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की संज्ञा देने वाले सुभाष चंद्र बोस क्यों करते थे उनका विरोध, जानें
पहली बार राष्ट्रपिता को महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की संज्ञा देने वाले सुभाषचंद्र बोस उनके विचारों से सहमत नही थे. ये बात जितनी अटपटी है उतनी ही इसमें सच्चाई भी है.
नई दिल्ली:
पहली बार राष्ट्रपिता को महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की संज्ञा देने वाले सुभाषचंद्र बोस उनके विचारों से सहमत नही थे. ये बात जितनी अटपटी है उतनी ही इसमें सच्चाई भी है. यही वजह है कि कुछ साल कांग्रेस से जुड़े रहने के बाद अपना एक अलग दल बना लिया था. हालांकि इस बात में भी कोई दो राय नहीं वैचारिक मतभेद होने के बावजूद दोनों के दिलों में एक दूसरे के प्रति काफी सम्मान था. सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी से 20 जुलाई 1921 में मिले थे और उनसे काफी प्रभावित हुए थे. उनसे मिलने के बाद ही वह स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए. हालांकि धीरे-धीरे उनके विचार, महात्मा गांधी के विचारों से अलग होने लगे.
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क्यों था मतभेद?
दरअसल महात्मा गांधी और कांग्रेस चाहती थी कि भारत को अहिंसा के पथ पर चरणबद्ध तरीके से स्वतंत्रता मिले लेकिन सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि इस तरह देश को कभी आजादी नहीं मिल सकती. अगर देश को आजाद कराना है तो अंग्रेजों से सीधे मुकाबला करना होगा.- 1938 में बोस कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने और राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया. गांधी जी लगातार बोस का विरोध कर रहे थे. लेकिन अगले साल फिर 1939 में बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. लेकिन महात्मा गांधी के विरोध को देखते हुए बोस ने खुद ही इस्तीफा दे दिया.
बोस इसके बाद योजना बनाने में जुटे थे लेकिन इसी बीच दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया. बोस को लगा कि अगर ब्रिटेन के दुश्मनों से मिल जाया जाए तो अंग्रेजी हुकूमत को हरा कर आजादी मिल सकती है. हालांकि उनके विचारों पर अंग्रेजी हुकूमत को शक था और इसी कारण उन्हें कोलकाता में नजरबंद कर दिया गया. लेकिन बोस वेश बदलने में माहिर थे. कुछ ही दिनों में वह अपने घर से भाग निकले और वहां से जर्मनी पहुंच गए. वहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात भी की.
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आजाद हिंद फौज की स्थापना
आजाद हिंद फौज की स्थापना 1942 में साउथ ईस्ट एशिया में हुई थी. INA की शुरुआत रास बिहारी बोस और मोहन सिंह ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान की थी. जब बोस जर्मनी में रह रहे थे तो उसी दौरान जापान में रह रहे आजाद हिंद फौज के संस्थापाक रास बिहारी बोस ने उन्हें आमंत्रिक किया और 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में नेताजी को आजाद हिंद फौज की कमान सौंपी. आजाद हिंद फौज में 85000 सैनिक शामिल थे और उसका नेतृत्व लक्ष्मी स्वामीनाथन कर रही थीं.
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