Advertisment

Independence day 2018: जंग-ए-आज़ादी में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान भी कम नहीं

स्वतंत्रता क्या है ? आजादी के क्या मायने हैं? इन दो सवालों के जवाब अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकते हैं लेकन हर कोई यह बात मानेगा कि आजादी अमूल्य होती है।

author-image
sankalp thakur
एडिट
New Update
Independence day 2018: जंग-ए-आज़ादी में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान भी कम नहीं

स्वतंत्रता दिवस 2018 (फाइल फोटो)

Advertisment

स्वतंत्रता क्या है ? आजादी के क्या मायने हैं? इन दो सवालों के जवाब अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकते हैं लेकन हर कोई यह बात मानेगा कि आजादी अमूल्य होती है। स्वतंत्रता यानी किसी वय्क्ति के पास अपने तरीके से जीने और अपने फैसले लेने का हक होना।

मानस में संत कवि तुलसीदास ने कहा है-पराधीन सपनेहु सुख नाही, करि विचार देखो मन माही, इसका अर्थ है स्वप्न तक में पराधीनता के लिए अस्वीकार्य स्वर है।

15 अगस्त 1947 में हमारे देश भारत को ब्रितानियां हुकूमत से आजादी मिली। इस दिन के बाद भारत के लोग स्वतंत्र हो गए, लेकिन यह आजादी आसानी से नहीं मिली। इसे पाने के लिए न जाने कितने भारत मां के सपूतो ने प्राण न्यौछावर कर दिए, कितनों ने फांसी के फंदे को चूम लिया तो न जाने कितने अग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के आगे डटकर खड़े रहे और भारत मां के लिए हंसते हंसते कुर्बान हो गए।

भारत के आजादी में कई चीजों का महत्वपूर्ण योगदान रहा ऐसी ही एक चीज थी पत्र-पत्रिकाएं। आजादी से पूर्व कई ऐसी पत्र-पत्रिकाएं थी जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों ने अग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखा और देश के नागरिकों में आजादी पाने का, उसके लिए संघर्ष करने का जज्बा जगाया। आइए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

भारत के पत्रकार मूलतः जनता का प्रतिनिधि मानकर पत्रकारिता के क्षेत्र में आए थे। पं, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू एवं डॉ राजेंद्र प्रसाद आदि सभी पत्रकारिता से संबद्ध रहे।

भारतीय आजादी की लड़ाई में सक्रीय रही कांग्रेस में जब विचार के आधार पर नरम दल और गरम दल बने तो दोनो ही तरह के विचार अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। गरम दल के विचार 'भारतमित्र', अभ्युदय', 'प्रताप', 'नृसिंह', केशरी के माध्यम से लोगो तक पहुंचे तो नरम दल वाले 'बिहार बंधु', 'नागरीनिरंद', 'मतवाला', 'हिमालय' एवं 'जागरण' में लिखते रहे।

लाला लाजपत राय और उनके सहयोगियों ने सीएफ एंड्रयूज के राष्ट्रवादी सुझाव राष्ट्रवादी दैनिक पत्र ‘द पंजाबी’ का 1904 में शुरू किया।‘द पंजाबी’ ने अपने प्रथम संस्करण से ही आभास करा दिया कि उसका उद्देश्य महज एक दैनिक पत्र बनना नहीं बल्कि ब्रिटिश हुकूमत से भारतमाता की मुक्ति के लिए देश के जनमानस को जाग्रत करना और राजनीतिक चेतना पैदा करना है।

इस दैनिक पत्र ने रूस की जार सरकार के विरुद्ध जापान की सफलता की ओर देश का ध्यान आकर्षित किया। इसके अलावा बंगाल में गर्वनर कर्जन द्वारा प्रेसीडेंसी को दो भागों में विभाजित करने पर खुलकर छापा और देशवासियों को जाग्रत किया।

इस दैनिक अखवार के अलावा लाजपत राय ने ‘यंग इंडिया’, ‘यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका’, ‘ए हिंदूज इन्प्रेशंस एंड स्टडी’, ‘इंगलैंड डैट टू इंडिया’, ‘पॉलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडिया’ जैसे ग्रंथों के माध्यम से जनता को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया।

लाला लाजपत राय के अलावा बाल गंगाधर तिलक ने मराठी भाषा में ‘केसरी’ और अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ नामक पत्रों का प्रकाशन शुरू किया। इस पत्र-पत्रिकाओं का लक्ष्य देश और सामाज के मुद्दों को आम नागरिकों तक पहुंचाना था जिससे कि वह जान सके देश और समाज में क्या-क्या बुराई है।

'केसरी' में लिखे कई लेखों की वजह सेृ बाल गंगाधर तिलक और उनके सहयोगियों पर मुकदमा भी चला। अंगेरजी सरकार ने उन्हें जेल में भी डाल दिया। लाल-बाल-बाल की तिकड़ी के तीसरे नायक व क्रांतिकारी विचारों के जनक विपिन चंद्र पाल ने अपनी धारदार पत्रकारिता के जरिए स्वतंत्रता आंदोलन में जोश भर दिया। उन्होंने अपने गरम विचारों से स्वदेशी आंदोलन में प्राण फूंका और अपने पत्रों के माध्यम से ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज तथा औद्योगिक तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल इत्यादि हथियारों से ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी।

उन्होंने 1880 में ‘परिदर्शक’, 1882 में ‘बंगाल पब्लिक ओपिनियन’, 1887 में ‘लाहौर ट्रिब्यून’, 1892 में ‘द न्यू इंडिया’ 1906-07 में ‘वंदेमातरम्, 1908-11 में ‘स्वराज’, 1913 में आदि पत्र-पत्रिकाओं के जरिए आजादी की लड़ाई में जान फूंकी।

इसक बाद 1913 में ‘प्रताप’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन कर ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दिए। ‘प्रताप’ में प्रकाशित नानक सिंह की ‘सौदा ए वतन’ कविता से नाराज होकर अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाकर ‘प्रताप’ का प्रकाशन बंद करवा दिया। यह अखबार फिर शुरू हुआ और अंग्रेजी हुकूमक की मुखालफत करता रहा।

आजादी से पूर्व पत्र-पत्रिकाएं न सिर्फ राष्ट्रभक्ति का संचार लोगों में कर रही थी बल्कि समाज में व्यापु्त कुरीतियों को लेकर भी लोगों को जागरुक कर रही थी।

18वीं शताब्दी में बहु-विवाह, बाल-विवाह, जाति प्रथा और पर्दा-प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों राजाराम मोहन राय ने करारा प्रहार किया। उन्होंने ‘संवाद कौमुदी’ और ‘मिरातुल अखबार’ के जरिए भारतीय जनमानस को जाग्रत किया।

गांधी जी और पत्रकारिता

पत्रकारिता को लेकर गांधी का मानना था कि पत्रकारिता की बुनियाद सत्यवादिता के मूल चरित्र में निहित होती है। पत्रकारिता के प्रति गांधी की निष्ठा और विश्वास का ही परिणाम रहा कि सन 1903 में गांधी द्वारा अफ्रीका में इन्डियन ओपिनियन का प्रकाशन शुरू हो सका। यह गांधी की सत्यनिष्ठ और निर्भीक पत्रकारिता का असर ही तो था कि अफ्रीका जैसे देश में रंगभेद जैसी विषम परिस्थितियों के बावजूद पाँच अलग-अलग भारतीय भाषाओं में इस अखबार का प्रकाशन होता रहा।

इसके बाद भारत आने के पश्चात गुलामी की परिस्थितियों से रूबरू गांधी ने सत्य,अहिंसा के समानान्तर पत्रकारिता एवं लेखन को भी अपना हथियार बनाया। गांधी ने स्व-संपादन में यंग इंडिया का प्रकाशन शुरू किया जो लोगों द्वारा बेहद पसंद किया गया। बाद में इसी का गुजराती संस्करण भी नवजीवन के नाम से शुरू किया गया। इन समाचाप पत्रो में लिखे लेखों ने अग्रेजी सरकार को खासा परेशान किया और लोगों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित भी।

और पढ़ें: जब हाथ में गीता लिए फांसी के फंदे को लगाया था गले, जानिए वीर खुदीराम बोस की कहानी

भारत देश आजाद होने के बाद प्रेस को भी आजादी दी गई तथा आम व्यक्ति को संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकारों के साथ अपनी बात कहने जन जन तक पहुंचाने के लिए प्रेस की आजादी में छूट दी गई। प्रेस की आजादी के साथ समाचार पत्रों के पंजीयन में छूट मिलने के कारण देश के अंदर सैकड़ों समाचार पत्रों को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन हुआ तथा आकाषवाणी रेडियों के माध्यम से देश की जनता को जाग्रत किया गया।

Source : News Nation Bureau

independence-day Independence Day 2018 Indian Freedom Movement
Advertisment
Advertisment
Advertisment