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उज्बेकिस्तान के शिलालेख में जयपुर के पूर्व महाराजा जयसिंह को बताया मुगलों का नौकर, विरोध शुरू

मुगल शासकों को लेकर हिंदुस्तान में अक्सर बहस होती है, लेकिन अब उजबेकिस्तान के समरकंद में एक शिलालेख ने नया विवाद खड़ा कर दिया है.

Updated on: 18 Sep 2022, 12:02 AM

जयपुर:

मुगल शासकों को लेकर हिंदुस्तान में अक्सर बहस होती है, लेकिन अब उजबेकिस्तान के समरकंद में एक शिलालेख ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. समरकंद की वेधशाला में लगे शिलालेख में जयपुर के पूर्व महाराजा और हिंदुस्तान में तीन सौर वेधशालाएं बनाने वाले सवाई जयसिंह को मुगलों का नौकर बताया गया है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी और पूर्व सांसद के कविता ने विदेश मंत्री जयसिंह को पत्र लिखकर कहा है कि कि ये भारत का अपमान है. उन्होंने मांग की है कि उज्बेकिस्तान के सामने विदेश मंत्रालय ये मुद्दा उठाए और संशोधन की मांग करे. वहीं, इतिहासकारों ने इस पर विरोध जताते हुए कहा है कि उज़्बेकिस्तान भारत में मुगल शासन का गलत इतिहास बता रहा है.

जयपुर का जंतर मंतर, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से सैलानी आते हैं. जंतर-मंतर एक सौर वेधशाला है. ज्योतिषीय गणना में अब भी इस वेधशाला की अहम भूमिका है. सैलानियों के साथ ज्योतिषी भी आते हैं. जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह ने 1734 ईसवी में जयपुर के साथ बनारस और दिल्ली में भी ऐसी वेधशालाएं बनाई थी, जिन्हें जंतर मंतर के नाम से जानता हैं. वेधशालाएं बनाने वाले पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह को लेकर हिंदुस्तान में नया बवाल खड़ा हो गया. विवाद की वजह बना समरकंद. जहां से मुगल शासक बाबर और उनके वंशज आए थे. समरकंद का एक शिलालेख वायरल हो रहा है. तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव की बेटी व पूर्व सांसद के कविता ने इस शिलालेख को ट्वीट कर लिखा कि इसमें जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह को मुगल शासक बाबर के वंशजों का नौकर बताया गया है. कविता ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पत्र लिखकर इस शिलालेख पर कड़ी आपत्ति जताई है. इसके साथ ही उन्होंने मांग की है कि उजबेकिस्तान के सामने ये मुद्दा उठाया जाए और संशोधन की मांग करे. इस मामले में बीजेपी ने भी आपत्ति दर्ज कराई है. 

सिर्फ जयसिंह को महल का नौकर ही नहीं बताया. समरकंद की वेधशाला में लगे इस शिलालेख में भी ये दावा किया कि हिंदुस्तान में जयपुर, बनारस व दिल्ली में सौर वेधशालाएं मुगल शासक मुहम्मद शाह के निर्देश पर जयसिंह ने बनवाई. ये भी दावा किया गया है कि इन वेधशालाओं के लिए उपकरण समरकंद की वेधशाला से उपलब्ध कराए गए थे. हालांकि, इतिहासकारों ने भी इस दावे को खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि जयसिंह खुद खगोल विज्ञान के जानकार थे. वे मुगलों के नौकर नहीं, जयपुर रियासत के महाराजा थे.

गौरतलब है कि मुगल शासक बाबर समरकंद से भागकर हिंदुस्तान आया था. उसके बाद भारत में मुगल शासन की शुरुआत हुई थी. राजस्थान की राजपूत रियासतों में से कुछ जैसे मेवाड़ के साथ मुगल सल्तनत की जंग चलती रही. लेकिन, मुगल शासकों ने जयपुर रियासत के साथ दोस्ताना संबंध बनाए थे. जयपुर रियासत मुगलों के अधीन नहीं थी. मुगल दरबार में जयपुर के पूर्व महाराजा जयसिंह से लेकर मानसिंह का विशेष सम्मान था. रियासत काल में जयसिंह सिर्फ खगोल विज्ञान की वजह से ही नहीं, कूटनीति और बुद्धि कौशल की वजह से भी मुगल शासकों के सवाई जयसिंह के साथ अच्छे संबंध थे.