नक्शा प्रकरण में भारत के पक्ष में बोलने वाली सांसद सरिता पर गिरीं पार्टी की गाज
इस संविधान संशोधन को लाने के पीछे ओली सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए सरिता गिरी ने कहा था कि बिना भारत से एक बार भी बात किए और बिना सबूत प्रमाण के इस तरह से नक्शा जारी करने से भारत के साथ हमारा संबंध बिगड़ेगा.
नई दिल्ली:
नेपाल के द्वारा भारत की भूमि को समेटते हुए जो नक्शा प्रकाशित किया गया था उसका संसद में खुलेआम विरोध करने वाली और भारतीय हितों के पक्ष में बोलने वाली सांसद सरिता गिरी को आज पार्टी की साधारण सदस्यता से भी बर्खास्त कर दिया गया है. साथ ही उन्हें सांसद पद से भी हटाने का फैसला किया गया है. नेपाल की संसद में जब सरकार के द्वारा लिपुलेक, लिम्पियाधुरा और कालापानी के विवादित क्षेत्र को समेटते हुए नया नक्शा को लेकर संविधान संशोधन का प्रस्ताव आया था उस समय सरिता गिरी एक मात्र सांसद थी जिन्होंने सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए थे.
संसद में बोलते हुए सरिता गिरी ने कहा था कि ये सब चीन के इशारे पर भारत से संबंध बिगाड़ने की साजिश के तरह लाया गया था. इस संविधान संशोधन को लाने के पीछे ओली सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए सरिता गिरी ने कहा था कि बिना भारत से एक बार भी बात किए और बिना सबूत प्रमाण के इस तरह से नक्शा जारी करने से भारत के साथ हमारा संबंध बिगड़ेगा.
सरकार के संशोधन प्रस्ताव को खारिज करने की मांग करते हुए सरिता गिरी ने इस बारे में संसद में सबूत पेश करने को कहा था. साथ ही उनकी मांग थी कि सरकार 1816 की संधि का जिक्र कर रही है उसका उल्लेख भी किया जाए, लेकिन सरिता गिरी के द्वारा किया जा रहा यह विरोध उनके पार्टी को नागवार गुजरी. पार्टी ने पहले तो उनसे स्पष्टीकरण पूछा. फिर आज उन्हें पार्टी की साधारण सदस्यता से बर्खास्त करते हुए सांसद पद से हटाने का भी निर्णय कर लिया है.
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चीन के दबाब में लिया गया फैसला
चीन के इशारे पर नेपाल सरकार द्वारा लाए गए नक्शा प्रकरण का विरोध करने वाली एकमात्र सांसद सरिता गिरी की बर्खास्तगी के पीछे भी चीन का ही दबाब है. कहने के लिए तो जनता समाजवादी पार्टी को भारत का नजदीकी माना जाता है लेकिन इस पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव और वरिष्ठ नेता डा बाबुराम भट्टराई दोनों ही चिनियाँ दूतावास के काफी करीबी माने जाते हैं.
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चीन के दबाब में पहले भी एक सांसद हो चुके हैं निलंबित
मधेशी पार्टी को तो भारत का करीबी पार्टी कहा जाता है लेकिन इस पार्टी पर और इसके नेता पर चीन का दबदबा किस हद तक होता है इसका एक उदाहरण है एक सांसद का निलंबन. इसी पार्टी के एक सांसद को पार्टी ने चीन के दबाब में ६ महीने के लिए सिर्फ इसलिए निलंबित कर दिया गया था कि वो दलाई लामा के कार्यक्रम में सहभागी हुए थे. जैसे ही यह खबर लगी चिनियाँ राजदूत होऊ यांकी सक्रिय हो गई और पार्टी दफ्तर में बैठक सांसद के निलंबन का निर्णय करवाया था. सांसद प्रदीप यादव को पार्टी से निलंबित करवाने के लिए चीन के राजदूत ने उपेन्द्र यादव और डा बाबुराम भट्टराई पर लगातार दबाब बनाया और जब तक पार्टी ने उन्हें निलंबित नहीं कर दिया तब तक उनको चैन से नहीं बैठने दिया गया.
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क्या भारत की पकड़ हो रही है समाप्त?
नेपाल के मधेशी दलों को भारत का हितैषी, भारत के पक्षधर और भारत के समर्थन में बात करने वाली पार्टी के रूप में देखा जाता था. भारत के सहयोग से ही दो अलग अलग दल के रूप में रहे मधेशी पार्टी का विलय कराकर एक बड़ी पार्टी बनाई गई और उपेन्द्र यादव को अध्यक्ष तथा पूर्व प्रधानमन्त्री डा बाबुराम भट्टराई को वरिष्ठ नेता की जिम्मेवारी दी गई. लेकिन उसी पार्टी ने गठन होने के तुरन्त बाद पहले नक्शा प्रकरण पर भारत का समर्थन नहीं करके चीन के इशारे नेपाल सरकार ने जो नक्शा जारी किया तो इस पार्टी ने उसका विरोध करने के बजाय उसका समर्थन किया. और आज एक सांसद ने जब भारत का पक्ष लेते हुए अपनी बात कही तो उसको पार्टी और सांसद पद दोनों से हाथ धोना पड़ा. ऐसे में सवाल उठाता है कि क्या नेपाल की राजनीति पर भारत की पकड़ अब ख़त्म हो गई है? क्या नेपाल में भारत अब इस हैसियत में भी नहीं है कि अपने पक्षधर सांसदों की रक्षा भी कर सके?
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