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डोकलाम पर चीन को भारत की खरी-खरी, पहले जैसी स्थिति बनाए रखे पड़ोसी

भारत और चीन को ज्यादा बातचीत करने और एक-दूसरे के प्रति सुस्पष्ट होने की जरूरत है। दोनों देश एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं।

Updated on: 27 Jan 2018, 05:39 AM

बीजिंग:

चीन में भारत के राजदूत गौतम बंबावले ने कहा कि डोकलाम में सैन्य गतिरोध चीन-भारत के संबंधों के लिए 'क्षणिक बाधा' थी लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों में यथास्थिति बनाए रखना दोनों देशों के लिए जरूरी है।

सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स को दिए साक्षात्कार में नवनियुक्त राजदूत ने द्विपक्षीय संबंधों के कई आयामों पर चर्चा की और कहा कि बीजिंग को नई दिल्ली की चिंताओं, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के प्रति 'संवेदनशीलहोने की जरूरत है।'

बंबावले ने कहा कि डोकलाम विवाद के बाद, भारत और चीन को ज्यादा बातचीत करने और एक-दूसरे के प्रति सुस्पष्ट होने की जरूरत है। दोनों देश एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं।

राजदूत ने अखबार से कहा, 'मैं डोकलाम गतिरोध को काफी लंबी अवधि के परिप्रेक्ष्य में देखता हूं। जब आप भी ऐसा करेंगे, तो डोकलाम गतिरोध आपको बड़े ऐतिहासिक संबंध में एक छोटी घटना लगेगी।'

उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि आप इस मुद्दे को जरूरत से कहीं अधिक बढ़ाकर देख रहे हैं। भारत के लोग, चीन और हमारे नेता हमारे संबंधों में ऐसी क्षणिक बाधा से बाहर निकलने के लिए पर्याप्त अनुभवी और बुद्धिमान हैं।'

चीन और भारत की सेनाएं डोकलाम में पिछले साल एक दूसरे के आमने-सामने आ गई थीं, जिससे वहां गतिरोध उत्पन्न हो गया था।

भारतीय सेना ने डोकलाम के डोका ला में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की ओर से सड़क निर्माण को रोक दिया था। इस इलाके पर भूटान भी दावा करता है। इसके बाद यहां दो माह तक दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध पैदा हो गया था। यह गतिरोध अगस्त में तब समाप्त हुआ था जब दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया था।

कुछ न्यूज रिपोर्ट के अनुसार हालांकि चीन ने डोका ला के समीप क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है, जोकि देश के अन्य हिस्से को जोड़ने वाले पूर्वोत्तर राज्य के मुख्यमार्ग से काफी नजदीक है।

राजदूत ने कहा, 'मेरा मानना है कि डोकलाम विवाद के बाद, भारत और चीन को एक-दूसरे से ज्यादा बात करने की जरूरत है और पहले की तुलना में एक-दूसरे के साथ अधिक संपर्क स्थापित करने की जरूरत है।'

बंबावले ने कहा, 'दोनों देशों को एक-दूसरे से बातचीत करना और अतीत के बारे में बातचीत नहीं करना महत्वपूर्ण है।'

राजदूत ने कहा, 'हमें एक दूसरे की चिंताओं पर निश्चित ही संवेदनशील होना चाहिए। भारत-चीन सीमा क्षेत्र में भी, खासकर कुछ संवेदनशील मुद्दों पर, यह महत्वपूर्ण है कि यथास्थिति नहीं बदली जाए। हमें इस बारे में स्पष्ट होने की जरूरत है।'

उन्होंने सीपीईसी पर भारत की चिताओं की ओर इशारा करते हुए कहा, 'सीपीईसी भारत के दावे वाले क्षेत्र से होकर गुजरता है और इससे हमारी क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन होता है। यह हमारे लिए बड़ी समस्या है।'

बंबावले ने कहा, 'हमें इसके बारे में बात करने की जरूरत है, न कि इससे दूर भागने की। मेरा विश्वास है, जितना हम एक-दूसरे से बात करेंगे, समस्या सुलझाने में हमें उतनी ही आसानी होगी।'

उन्होंने दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापार घाटे पर भी जोर दिया। बंबावले ने कहा, 'ऐसे कुछ मुद्दे हैं, जिसपर हम भारत में ध्यान देते हैं। इनमे से सबसे ज्यादा चीन के साथ बड़ा और बढ़ता व्यापार घाटा है।'

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उन्होंने कहा, 'वर्ष 2017 में,भारत का व्यापार घाटा 55 अरब डॉलर था। भारत, चीन को छोड़कर पूरी दुनिया में फर्मास्युटिकल और आईटी उत्पाद बेचता है। ऐसा क्यों? हम बीते बीस सालों से अपने फर्मास्युटिकल और आईटी उत्पाद के लिए चीनी बाजार खोलने का आग्रह कर रहे हैं। इससे हम क्या निष्कर्ष निकालें? हमें ऐसे मुद्दों पर खुलकर बात करना चाहिए और इसे सुलझाने के लिए कदम बढ़ाने चाहिए।'

उन्होंने कहा कि भारत और चीन में बहुत कुछ सामान्य है और दोनों देशों के बीच सामान्य लक्ष्य भी है।

उन्होंने कहा, 'भारत और चीन कई वैश्विक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सामान्य राय रखते हैं। इसके सबसे बड़ा उदाहरण जलवायु परिवर्तन है। हम अतीत में इस विषय पर काम करते रहे हैं और नए अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में यह काफी महत्वपूर्ण है कि हम साथ काम करना जारी रखे।'

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