कांवरियों के लिए कपड़े और झोला सिलते हैं गोरखपुर के सैकड़ों मुस्लिम परिवार

गोरखपुर और बस्‍ती मंडल के आठ जिलों के शिवभक्तो को गेरुये रंग में रंगने वाले हाथ इन दिनों बेहद व्‍यस्‍त हैं.

गोरखपुर और बस्‍ती मंडल के आठ जिलों के शिवभक्तो को गेरुये रंग में रंगने वाले हाथ इन दिनों बेहद व्‍यस्‍त हैं.

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Mohit Sharma
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muslim sew clothes for kanwariyas( Photo Credit : File Pic)

सावन के महीने में बाबाधाम के लिये गेरुआ रंग में रंगे कांवरिये जब एक साथ निकलते हैं तो हर जगह मौसम शिवमय हो जाता है. गोरखपुर और बस्‍ती मंडल के आठ जिलों के शिवभक्तो को गेरुये रंग में रंगने वाले हाथ इन दिनों बेहद व्‍यस्‍त हैं. सावन के एक महीने पहले से ही कांवरियों के लिये कपड़े और झोले तैयार होने शुरू हो जाते हैं. गोरखपुर के पिपरापुर, रसूलपुर, जफर कालोनी और इलाहीबाग के कई दर्जन परिवारों का हर सदस्य इसके लिये रात दिन एक कर रहा है. इन इलाकों में कांवरियों के लिए ड्रेस और झोला तैयार करने वाले सभी मुस्लिम परिवारों के हैं जहां पिछले कई सालों से इनके घरों में ईद और बकरीद की खुशियां भी इन्‍ही गेरूये कपडों को सिलने से आती है.

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गोरखपुर के इन मुस्लिम मुहल्लों में इस समय अधिकतर घरों में बाबाधाम जाने वाले श्रध्‍दालुओं के लिये कपडे, झोले और दूसरे सामान बनाये जा रहे हैं. झोले छापने, काटने, सिलने का काम इस मुहल्‍ले में होता है. यह काम यहां के हर दूसरे घर में होता है और अधिकतर काम यहां पर महिलाये ही करती हैं. हर साल यह काम सावन से पहले ही शुरू कर दिया जाता है. 

पिछले कई सालों से सावन के आसपास ही बकरीद का त्‍यौहार पड़ रहा है और इन घरों में ईद-बकरीद की खुशियां इन्‍ही गेरूये कपडों को सिलने के बाद आये रूपयों से आती है. लगभग दो से तीन महीनों तक इनका काम चलता है और डिमांड अधिक होने से यह कांवरियों के लिये कपड़े झोले बनाने वाले मुस्लिम भी काफी खुश रहते हैं. यहां से सिले कपड़े और झोले सिर्फ गोरखपुर ही नही बल्कि आसपास के दूसरे जिलों और बिहार भी भेजे जाते हैं. इनका मानना है कि घर पर ही सभी सदस्य इस काम को करते हैं ऐसे में इनकी अच्‍छी आमदनी हो जाती है. हालांकि पिछले 2 साल इनके लिए काफी भारी गुजरे और कोविड की वजह से बाबा धाम जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बेहद कम हो गई थी जिसकी वजह से इनका काम पूरी तरह से बंद हो गया था, लेकिन इस बार इस स्थिति सामान्य होने के बाद से एक बार फिर गेरुवे ड्रेस और झोलों की डिमांड बढ़ने लगी है.

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बाबाधाम जाने वाले भक्‍तों के लिये विशेष छूट

पहले इस इलाके में हथकरघा का काम होता था पर मशीनों के आ जाने से करघा छूटा तो सिलाई मशीन का सहारा मिला. इस काम को करने वाले कारीगरों को इस बात की खुशी होती है इनके सिले कपडे और झोले लेकर लोग अपनी मुरादों को पूरा करने के लिये बाबधाम जाते हैं और इनके लिये यही इनका सबसे बडा मेहनताना होता है. इनका मानना है कि जाति धर्म के नाम पर नेता लोग राजनीति करते हैं लेकिन इनके लिये यह शिवभक्‍तों के झोले कपडे ही रोटी रोटी का जरिया होते हैं. इनके द्वारा सिले गये कपड़ों का काफी डिमांड होने से अब सैकडो घरों में कपड़ों की कटाई और सिलाई का सिलसिला शुरू हो गया है. 

यहां पर बाबाधाम जाने वाले भक्‍तों के लिये विशेष छूट दी जाती है और नाममात्र का मुनाफा लेकर ही यह सभी कपडे और झोले बनाते हैं. इनका मानना है कि धर्म चाहे जो भी हो पर सभी अपने अपने तरीके से उपरवाले को याद करते हैं और यह अगर शिवभक्‍तों के लिये कुछ कर पाते हैं तो इनके लिये यह बेहद पवित्र काम है और इससे दोनो धर्मों के लोगों को एक साथ जुडने का मौका मिलता है.

 

 

HIGHLIGHTS

  • हर साल यह काम सावन से पहले ही शुरू कर दिया जाता है
  • सैकड़ों घरों में कपड़ों की कटाई और सिलाई का सिलसिला शुरू हो गया है.
  • सावन के आसपास ही बकरीद का त्‍यौहार पड़ रहा है 
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