Bhopal Disaster के सबक और सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जानलेवा वायु प्रदूषण को कैसे कम करें
भोपाल त्रासदी के बाद दर्द अभी तक खत्म नहीं हो पाया है. त्रासदी से पीड़ित और प्रभावित लोगों के परिवारों में अभी तक पेंशन, केस के फैसले, पुनर्वास, राजनीतिक वायदों के पूरे होने वगैरह का लंबा इंतजार जारी है.
नई दिल्ली:
भोपाल गैस त्रासदी ( Bhopal gas tragedy ) की 37वीं बरसी पर देश में वायु प्रदूषण ( Air Pollution) की डरावनी हालत ने सरकार और लोगों की पेशानी पर बल ला दिया है. वहीं, कोविड-19 महामारी ( covid-19 pandemic) से मिल रही सबकों में इजाफा भी कर रहा है. भोपाल त्रासदी के बाद लगभग दो नई पीढ़ियां सामने आ चुकी हैं, लेकिन दर्द अभी तक खत्म नहीं हो पाया है. त्रासदी से सीधे पीड़ित और प्रभावित लोगों के परिवारों में अभी तक पेंशन, केस के फैसले, पुनर्वास, राजनीतिक वायदों के पूरे होने वगैरह का लंबा इंतजार बदस्तूर कायम है.
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 02-03 दिसंबर, 1984 की रात 12 बजे जेपी नगर के सामने बने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने में एक टैंक से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) लीक हो गई थी. इस त्रासदी में करीब आठ हजार लोगों की मौत हो गई थी. वहीं कई जानकारों का दावा को 25 हजार मौत का है. आंकड़ों के मुताबिक भोपाल त्रासदी से करीब 5 लाख लोग प्रभावित हुए थे. वहीं लाखों पशु-पक्षियों की जान पर भी बन आई थी. दुनिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी का दर्द खत्म होने वाला नहीं है.
भोपाल त्रासदी में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी जानलेवा साबित हुई थी. इसके बाद जल प्रदूषण का डरावना असर हुआ. इसके बरअक्श मौजूदा कोरोना काल में लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग वगैरह की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदूषणों के आंकड़ों में उतार कम और चढ़ाव ज्यादा दिख रहा है. इस साल नवंबर महीने की शुरुआत से ही वायु प्रदूषण का काला साया देश के बड़े हिस्से पर लगातार छाया हुआ है. यह जहरीली हवा हमें भोपाल गैस त्रासदी की तरह अचानक बड़ी संख्या में एक साथ न मारकर बीमारी, कमजोरी और धीमी मौत दे रही है.
वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई नाराजगी
राजधानी दिल्ली में बिगड़ती वायु की गुणवत्ता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर सख्त रुख दिखाया. केंद्र और दिल्ली सरकार को 24 घंटों के अंदर कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कोर्ट ने स्कूल खोले जाने पर दिल्ली सरकार को फटकार भी लगाई. कोर्ट ने सरकार से CNG बसों को लेकर भी सवाल किया. इससे पहले हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने नियमों के अनुपालन के लिए टास्क फोर्स गठित करने की बात कही थी.
दिल्ली के 17 वर्षीय छात्र आदित्य दुबे की तरफ से बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से एक और दिन का समय मांगा है. सीजेआई रमन्ना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा था कि निर्देशों के अुनपालन की निगरानी के लिए उन्हें ‘टास्क फोर्स’ बनानी पड़ सकती है.
तंबाकू के मुकाबले वायु प्रदूषण से ज्यादा फेफड़े का कैंसर
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया भर में फेफड़ों के एडेनोकार्सिनोमा (एलएडीसी) के मामलों में वृद्धि के लिए बढ़ते वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना है. यह भी निष्कर्ष सामने आया कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण अब तंबाकू से होने वाले फेफड़ों के कैंसर स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (एलएससीसी) कैंसर को पीछे छोड़ चुका है. धरती के वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की 0.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वृद्धि हुई, जिसे कालिख के रूप में भी जाना जाता है. इसके कारण दुनिया भर में एडेनोकार्सिनोमा (एलएडीसी) 12 फीसदी बढ़ चुकी है.
वायु प्रदूषण के मामले में भारत की हालत गंभीर
दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से कई शहर भारत में हैं. यह बेहद गंभीर स्थिति है कि हम लोग रोजाना इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं. घर से बेवजह बाहर नहीं निकलने या मास्क लगा रखने की हिदायत भी कितनी देर तक हमारी सुरक्षा करेगी अगर हम प्रदूषण का सही रोकथाम ही न करें. वायु प्रदूषण से बचाव के उपाय हैं. हर इंसान खुद के स्तर पर इन्हें अपनाना शुरू करे तो यह प्रदूषण कम किया जा सकता है.
ऐसे कम की जा सकती है देश में हवा की बिगड़ती हालत
1. सड़क पर कम गाड़िया होंगी तो प्रदूषण भी कम होगा. प्राइवेट कार की जगह सार्वजनिक वाहनों ( Public vehicles) का इस्तेमाल करें. कार पूलिंग करनी चाहिए. साइकिल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. साईकिल से पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता है और स्वास्थ्य भी ठीक रखने में मदद मिलती है.
2. दैनिक ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली पैदा करने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है और इसका धुआं हमारे वातावरण के लिए बेहद खतरनाक होता है. प्रदूषण से बचने के लिए सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए.
3. सूखी पत्तियों, पराली को जलाने के बदले खाद बनाकर इस्तेमाल करें. इससे आपके पेड़–पौधों को भी फायदा होगा और धुआं भी नहीं होगा.
4. केंद्र एवं राज्य सरकारों को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कड़े कानून बनाने चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इसका पालन करना चाहिए. ऑड–ईवन जैसी योजना के सकारात्मक असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
5. पटाखों या आतिशबाजी को लेकर भावुक होकर बहस में पड़ने की बजाय समझदारी से विचार करना चाहिए.
6. खुद के साथ और लोगों को भी जागरूक करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए.
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