जानिये भारत में कैसे की जाती है रेल की पटरियों की देखभाल

नियमों के मुताबिक रेलवे ट्रैक की हर कुछ समय के बाद जांच होनी चाहिए। इसमें तकनीक सहित परंपरागत तरीकों की मदद ली जाती है।

नियमों के मुताबिक रेलवे ट्रैक की हर कुछ समय के बाद जांच होनी चाहिए। इसमें तकनीक सहित परंपरागत तरीकों की मदद ली जाती है।

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vineet kumar
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जानिये भारत में कैसे की जाती है रेल की पटरियों की देखभाल

रेल पटरियों पर क्यों होता है फ्रैक्चर (File Photo)

इंदौर पटना एक्सप्रेस हादसे की वजह अभी साफ नहीं हो सकी है। वैसे भी, जांच के बाद ही यह बात साफ हो पाएगी कि दुर्घटना की असल वजह क्या थी।

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हालांकि, शुरुआती तौर पर यही कहा जा रहा है कि ऐसा रेलवे ट्रैक में फ्रैक्चर के कारण हुआ। आईए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है रेलवे ट्रैक में फ्रैक्चर का कारण? कैसे दुनिया के तीसरे सबसे बड़े रेल नेटवर्क की पटरियों पर नजर रखी जाती है...

कैसे रखी जाती है ट्रैक पर नजर

भारत जैसे देश में जहां मौसम एक जैसा नहीं होता, वहां रेलवे ट्रैक पर फ्रैक्चर के कई कारण हो सकते हैं। बेहद गर्मी या ठंड से ट्रैक पर असर पड़ता है। इसके अलावा समय के साथ पुराने पड़ चुके ट्रैक्स पर अत्यधिक लोड भी पटरियों में फ्रैक्चर का अहम कारण हो सकता है।

खासकर क्षमता से अत्यधिक सामान ढोने वाली माल गाड़ियों के आवाजाही से ट्रैक पर असर पड़ता है।

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नियमों के मुताबिक रेलवे ट्रैक की हर कुछ समय के बाद जांच होनी चाहिए। सबसे खास नजर मेन लाइन पर होती है, जैसे- दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-चेन्नई या कोलकाता-मुंबई जैसे ट्रैक्स पर। इन लाइनों पर अल्ट्रासोनिक वॉल डिटेक्शन के जरिए ट्रैक में फ्रैक्चर की पहचान की जाती है। यह बहुत हद तक सटीक जानकारी देता है और ट्रेन गुजरने से पहले इसकी जानकारी सीधे कंट्रोल रूम तक पहुंच जाती है।

इसके अलावा दूसरे परंपरागत तरीके हैं, जैसे पेट्रोलमेन के जरिए या फिर ड्राइवर की शिकायत पर। इन रूटों पर तकनीक का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता और इसलिए दूसरे रूटों पर महीनें-दो महीनों में पटरियों की जांच होती है। लेकिन कई बार यह जांच ज्यादा समय के अंतराल पर भी होती है।

मसलन, पटरियों की जांच एक से दो महीनों के बीच होनी है लेकिन कभी-कभी ये तीन महीने या उससे ऊपर भी खिंच जाता है। फिर, मामला ज्यादा खतरनाक हो सकता है।

पटरियों में जांच और सुरक्षा से जुड़े दूसरे कार्यों में देरी की एक वजह कर्मचारियों की भारी कमी है। इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे को लेकर भी यही सवाल उठ रहे हैं कि इन ट्रैक्स की आखिरी जांच कब हुई थी।

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ट्रेन के ड्राइवर ने अपनी रिपोर्ट में लर्चिंग को वजह बताया है। इसका मतलब यह हुआ कि ड्राइवर को ट्रैक के नीच गड्ढा जैसा महसूस हुआ। अब यह मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात भी सामने आ रही है कि कई ड्राइवर पिछले कुछ दिनों से इस रूट पर लर्चिंग महसूस कर रहे थे।

HIGHLIGHTS

  • दुनिया के तीसरे बड़े रेल नेटवर्क पर नजर रखना आसान नहीं
  • तकनीक से ज्यादा परंपरागत तरीकों के जरिए रखी जाती है नजर

Source : News Nation Bureau

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