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हिन्दुत्व की लैबोरेट्री, अब गवर्नेंस की प्रयोगशाला?

हिन्दुस्तान की सियासत में ऐसा प्रयोग कभी नहीं देखा गया. हिन्दुत्व की प्रयोगशाला गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले गवर्नेंस का नया फॉर्मूला सामने आया है.

Updated on: 17 Sep 2021, 03:48 PM

नई दिल्ली:

हिन्दुस्तान की सियासत में ऐसा प्रयोग कभी नहीं देखा गया. हिन्दुत्व की प्रयोगशाला गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले गवर्नेंस का नया फॉर्मूला सामने आया है. परफॉर्म ऑर पेरिश, या तो प्रदर्शन करो नहीं तो कुर्सी छोड़ दो. गवर्नेंस का ये नया फॉर्मूला राज्य के सीएम को भी रियायत नहीं देता. गुजरात में बीजेपी ने सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं बदला, बल्कि पूरी की पूरी सरकार ही बदल डाली. ये फैसला ना केवल चौंकाने वाला है, बल्कि असाधारण भी. चुनावी साल में कोई भी राजनीतिक पार्टी इस तरह की रिस्क भी ले सकती है. ये बात किसी की भी समझ में परे हो सकती है. तो सवाल ये है कि आखिर 4 साल के बाद गुजरात में ऐसा क्या हुआ, जो इस तरह का बदलाव करने की जरूरत आ पड़ी.

पीएम मोदी चौंकाने वाले फैसले के लिए जाने जाते हैं और गुजरात में सरकार का विस्तार भी इसी बदलाव का एक क्रम है. गुजरात की सरकार में बदलाव का पहला संदेश जो नजर आता है. उसमें ये बात निकलकर सामने आती है कि पार्टी राज्यों में गुटबाजी को बर्दाश्त नहीं करेगी. दूसरा संदेश ये भी है कि पार्टी युवा चेहरों को आगे बढ़ाकर बदलाव के संकेत देना चाह रही है. गुजरात की धरती बीजेपी की प्रयोगशाला हमेशा से रही है और इस बार भी पूरी सरकार का बदलाव एक प्रयोग का हिस्सा है. भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल में 24 विधायकों को शपथ दिलाई गई है. जिन चेहरों को मंत्री बनाया गया है, उनमें से ज्यादातर को लोग पहचानते भी नहीं हैं. गुजरात की नई टीम का मकसद जातिगत समीकरण को साधने के लिए भी रखा गया है.

सबसे पहले गुजरात सरकार के मंत्रिमंडल का जातिगत समीकरण को देखना जरूरी है. भूपेंद्र पटेल की टीम में पाटीदार समाज के 6 मंत्री, ओबीसी समुदाय के 6 मंत्री, आदिवासी समाज से 4 मंत्री, एससी समुदाय से 2, ब्राह्मण कम्युनिटी से 2, क्षत्रिय समाज से 2 और जैन समाज से 1 विधायक को मंत्री बनाया गया है. यानी एक तरफ जहां जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश हुई है तो वहीं सबका साथ सबका विकास भी इस बदलाव का संकेत है.

मंत्रिमंडल में बदलाव की वजह

पहली वजह- पार्टी में गुटबाजी खत्म करके जनता के बीच साफ-सुथरी छवि से जाना है. 

दूसरी वजह- युवा और नए चेहरों पर भरोसा, जिससे संदेश जाए, बीजेपी में सबको मौका मिलता है.

तीसरी वजह- नो रिपीट फॉर्मूला को एक बार फिर से अमल में लाकर दिखाना... बीजेपी जो कहती है वो करती है.

चौथी वजह- 4 साल में पैदा हुई एंटी इनकंबेसी का मुकाबला करने के लिए नए चेहरों के साथ जनता के बीच जाएंगे.

पांचवीं वजह- विजय रुपाणी शासन से पैदा हुई नाराजगी को खत्म करने की कवायद.

साफ है कि दो दशक से ज्यादा वक्त गुजरात में सत्ता में काबिज बीजेपी साफ-सुथरी छवि के साथ मतदाताओं के बीच जाना चाहती है. चुनाव में भाजपा ने राज्य विधानसभा की 182 सीटों में से 99 सीटें जीतीं थीं. जबकि कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं. ये अंतर ज्यादा नहीं है, इसलिए बीजेपी ने इस बार 150 सीट का लक्ष्य रखा है. और जिम्मेदारी भूपेंद्र पटेल के कंधों पर है. पटेल ने पहला दांव खेल दिया है. इसका फायदा कितना होता है, ये तो पता नहीं लेकिन इतना जरूर है. बीजेपी में एक बड़ा खेमा नाराज हो गया है, जिसने लंबे वक्त तक गुजरात में बीजेपी को सत्ता में रहने में मदद की थी. मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने गृह राज्य गुजरात में बहुत बड़ा दांव खेला है. अगर ये फॉर्मूला हिट हुआ तो ये तय है कि इसकी गूंज दूसरे बीजेपी शासित राज्यों में भी सुनाई देगी, लेकिन गवर्नेंस के इस नए प्रयोग संदेश तो साफ है किसी भी सीएम या मंत्री कुर्सी महफूज नहीं है. अगर सत्ता में बने रहना है तो परफॉर्मेंस करना होगा.