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कई राज्‍यों में अल्‍पसंख्‍यक हो गए हिंदू, दिल्‍ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब

दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस याचिका पर केंद्र से शुक्रवार को जवाब मांगा जिसमें दावा किया गया है कि विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अन्य अल्पसंख्यक समूहों को मिले अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है.

Updated on: 28 Feb 2020, 02:56 PM

दिल्ली:

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने उस याचिका पर केंद्र से शुक्रवार को जवाब मांगा जिसमें दावा किया गया है कि विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अन्य अल्पसंख्यक समूहों को मिले अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है. मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने गृह, कानून और न्याय एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयों को नोटिस जारी करते हुए उनसे उस याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें कहा गया है कि केंद्र ‘‘अल्पसंख्यक’’ शब्द को परिभाषित करें तथा राज्य स्तर पर उनकी पहचान के लिए दिशा निर्देश बनाए.

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भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका में दावा किया गया है, ‘‘लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू वास्तव में अल्पसंख्यक हैं.’’ उपाध्याय ने कहा, ‘‘लेकिन उनके अल्पसंख्यक अधिकारों को गैरकानूनी और मनमाने तरीके से छीना जा रहा है क्योंकि न तो केंद्र और न ही संबंधित राज्य ने उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) कानून की धारा दो के तहत ‘‘अल्पसंख्यक’’ के रूप में अधिसूचित नहीं किया है. इसलिए हिंदुओं को अनुच्छेद 29-30 के तहत दिए उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.’’

उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि लक्षद्वीप (96.58 %) और कश्मीर (96 %)में मुसलमान बहुसंख्यक हैं तथा उनकी अच्छी-खासी आबादी लद्दाख (44%), असम (34.20%), पश्चिम बंगाल (27.5%), केरल (26.60%), उत्तर प्रदेश (19.30%) और बिहार (18%) में है. याचिका में कहा गया है, ‘‘लेकिन उन्हें ‘‘अल्पसंख्यक’’ का दर्जा हासिल है तथा यहूदी (0.2%) और बहाई धर्म (0.1%) के अनुयायी जो असल मायने में अल्पसंख्यक है, उन्हें अपना वैध हक नहीं मिल रहा है क्योंकि राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान नहीं की गई है.’’ इसमें दावा किया गया है कि ‘‘इसी तरह निस्संदेह ईसाई मिजोरम (87.16%), नगालैंड (88.10%), मेघालय (74.59%) में बहुसंख्यक हैं तथा अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी उनकी अच्छी-खासी आबादी है लेकिन उनसे अल्पसंख्यक की तरह व्यवहार किया जाता है.’’

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याचिका में कहा गया है, ‘‘इसी तरह पंजाब में सिख बहुसंख्यक है तथा दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा में भी उनकी अच्छी-खासी तादाद है लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है. बौद्धों की लद्दाख में बहुल आबादी है लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है.’’ उपाध्याय ने यह भी दलील दी कि असली अल्पसंख्यकों को अल्पसंख्यक अधिकार न देना और अल्पसंख्यक के फायदों को मनमाने ढंग से बहुसंख्यक को देना ‘‘धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव न करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन’’ है.