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Press Club of India( Photo Credit : social media)
प्रेस क्लब आफ इंडिया में हिन्दी पत्रकारिता दिवस के मौके पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने मत को सामने रखा. हिंदी पत्रकारिता के सामने अंग्रेजी भाषा चुनौती के रूप में उभरी है. वहीं दूसरी ओर राजनीति और पूंजी भी बड़े दबाव का कारण है. ऐसे में हिंदी पत्रकारिता की राह को सुगम बनाने के लिए चिंता जाहिर की गई. प्रोफेसर अभय कुमार दुबे ने कहा कि प्रसार संख्या और दर्शक संख्या की बड़ी संख्या के बावजूद अंग्रेजी के सामने अपने ही देश में आज भी हिंदी को वह हैसियत नहीं मिली है जो मिलनी चाहिए. दूसरी बात यह है कि पत्रकारिता ने अपने को सरकारी प्रचार का माध्यम बना लिया है.
देशबंधु के संपादक और प्रेस कॉसिल के सदस्य जयशंकर गुप्त ने कहा कि पत्रकारों ने सवाल पूछना बंद कर दिया है. वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर रामशरण जोशी ने कहा कि पचास साल पहले भी इसी प्रेस क्लब में यह बहस हो रही थी कि सरकार के लिए प्रतिबद्ध प्रेस होनी चाहिए या नहीं. तब तमाम बड़े संपादकों ने यहां इसका प्रतिरोध किया था. बिना बहस और प्रतिरोध के ही प्रेस प्रतिबद्ध हो गया है. यह सब पूंजी का खेल है. सरकार ने प्रेस आयोग की सिफारिशों को चुनिंदा तरह से लागू किया और अब तो वह इस बारे में ध्यान ही नहीं देती क्योंकि उसकी कमान तो कारपोरेट के हाथ में है.
Source : News Nation Bureau