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समलैंगिक वैवाहिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता की याचिका पर केंद्र सरकार को हाईकोर्ट का नोटिस

समलैंगिक वैवाहिक सम्बन्धों को हिंदू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत क़ानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली नई याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है.

Updated on: 06 Jul 2021, 11:42 AM

नई दिल्ली:

समलैंगिक वैवाहिक सम्बन्धों को हिंदू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत क़ानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली नई याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट इस बारे में पहले से लंबित याचिकाओं के साथ 27 अगस्त को इस पर सुनवाई करेगा. इससे पहले केंद्र सरकार इन याचिकाओं में रखी मांग का विरोध कर चुकी है. दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल जवाब में सरकार का कहना था कि देश के क़ानून और सामाजिक मान्यताओं के लिहाज़ से समलैंगिको के बीच वैवाहिक सम्बन्धों को मान्यता नहीं जा सकती. भारतीय क़ानून और पारिवारिक मान्यतायें सिर्फ एक पुरुष और एक महिला की शादी को मान्यता देती है. 

दिल्ली हाई कोर्ट समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करेगा. मामले की आखिरी सुनवाई 24 मई को हुई थी, जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उस समय मौजूदा कोविड -19 स्थिति के कारण अस्थायी रोक की मांग की थी. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने की अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर हैं. दलीलों में उन्होंने ये भी कहा है कि एलजीबीटी समुदाय को शादी करने का विकल्प देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण है और ये उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाता है.

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केंद्र ने दिया ये तर्क 
केंद्र इस मामले का ये कहते हुए विरोध कर रहा है कि याचिकाएं टिकाऊ, अस्थिर और गलत हैं और साथ ही उन्हें खारिज करने की मांग की है. केंद्र ने तर्क दिया है कि विवाह अनिवार्य रूप से दो व्यक्तियों का एक सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त संघ है जो या तो असंबद्ध व्यक्तिगत कानूनों या संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों द्वारा शासित होता है.

याचिकाओं के जवाब में दिल्ली हाई कोर्ट को पहले बताया था कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह की संस्था की स्वीकृति को न तो मान्यता प्राप्त है और न ही किसी भी असंबद्ध व्यक्तिगत कानूनों या किसी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में स्वीकार किया जाता है. वहीं याचिकाकर्ता हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के तहत मान्यता की मांग कर रहे हैं.