दिल्ली भोगल इलाके में जमालुद्दीन अल-अफगानी नामक एक अफगान स्कूल है। इस समय यहां कक्षा 1 से 12 तक के 500 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। हालांकि, तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के साथ ही स्कूल के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल छाने लगे हैं। यह स्कूल वित्तीय सहायता के लिए अभी तक अफगान सरकार पर निर्भर था।
प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर ए.एम. शाह के मुताबिक, मौजूदा स्थिति में ऐसी आशंका है कि युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के प्रभाव से स्कूल बंद हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो इससे भारत में रह रहे अफगान बच्चे शिक्षा अच्छे के अवसर से वंचित हो जाएंगे।
स्थानीय निवासी और पेशे से शिक्षक रहे 70 वर्षीय डी.डी. दत्त ने स्कूल की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि यहां छात्रों की पढ़ाई किसी भी स्थिति में बंद नहीं होनी चाहिए। खासतौर पर ऐसे मौके पर, जबकि इन छात्रों का मुल्क एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है।
दत्त की ही तरह कई अन्य शिक्षक व शिक्षाविद भी मानते हैं कि संकट की इस घड़ी में यह अफगान स्कूल बंद नहीं होना चाहिए। शिक्षाविद एन.एल. खान के मुताबिक स्कूल को बचाने व यहां शिक्षा को जारी रखने के लिए सरकारों को आगे आना चाहिए, क्योंकि यह केवल एक स्कूल नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अफगानिस्तान की एक संस्था है।
जामिया विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हुसैन ने कहा कि अफगान बच्चों की शिक्षा के लिए यह स्कूल बेहद आवश्यक है। कट्टरपंथी तालिबान गाने स्थान के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लेने के बाद स्कूल का भविष्य अधर में है, क्योंकि तालिबान पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
हालांकि इस बीच दिल्ली में मौजूद इस अफगानी स्कूल के प्रशासन ने दृढ़ता के साथ स्कूल को जारी रखने का निर्णय लिया है। स्कूल प्रशासन के मुताबिक, स्कूल में पढ़ाई जारी रहेगी। भले ही स्कूल प्रशासन को वित्तीय संकट का सामना करना पड़े। फिलहाल दिल्ली के अन्य स्कूलों की भांति ही अभी कोरोना महामारी के मद्देनजर स्कूल में फिजिकल कक्षाएं शुरू नहीं हुई हैं, जिसके कारण छात्र व शिक्षक स्कूल नहीं आ रहे हैं। यहां केवल अभी ऑनलाइन माध्यम से ही पढ़ाई चल रही है।
स्कूल प्रशासन की उम्मीद अभी पूरी तरह धूमिल नहीं हुई है। इस अफगानी स्कूल को अभी भी उम्मीद है कि अफगानिस्तान में बनने वाली नई सरकार दिल्ली स्थित इस स्कूल का ध्यान रखेगी।
यह स्कूल 1994 में स्थापित किया गया था और एक गैर सरकारी संगठन, महिला फेडरेशन फॉर वर्क से संबंधित था। बाद में 2000 के दशक की शुरुआत में, एनजीओ ने स्कूल को बंद कर दिया। कुछ दिन तक यह स्कूल चंदे की राशि से भी चलाया गया हालांकि इसके बाद अफगान सरकार ने इसे समर्थन दिया। तब से स्कूल की इमारत का किराया, शिक्षकों के लिए वेतन और यहां तक कि किताबों का भी ध्यान अफगान सरकार द्वारा रखा गया।
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Source : IANS