जज लोया मौत मामला: अमित शाह का जिक्र होने पर वकीलों के बीच तीखी बहस, जानें SC ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जज बीएच लोया की संदिग्ध हालात में मौत पर उठा विवाद 'गंभीर' है और अदालत इस पर गौर करेगी कि नवंबर, 2014 में हुई उनकी मौत किन परिस्थितियों में हुई।

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Jeevan Prakash
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जज लोया मौत मामला: अमित शाह का जिक्र होने पर वकीलों के बीच तीखी बहस, जानें SC ने क्या कहा

बीएच लोया और सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सीबीआई की विशेष अदालत के जज बीएच लोया की संदिग्ध हालात में मौत पर उठा विवाद 'गंभीर' है और अदालत इस पर गौर करेगी कि नवंबर, 2014 में हुई उनकी मौत किन परिस्थितियों में हुई।

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उनकी मौत से जुड़े कई मामले जो महाराष्ट्र की अलग-अलग अदालतों में चल रहे थे, वे शीर्ष न्यायालय में मंगा लिए गए हैं। जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति की गुजरात में फर्जी मुठभेड़ में कराई गई हत्या के मामले की सुनवाई कर रहे थे।

वर्ष 2005 और 2006 के इन मामलों के आरोपियों में से एक गुजरात के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह को अदालत में पेश होने के लिए कई बार समन दे चुके थे। लेकिन शाह पेश नहीं हो रहे थे।

अगली सुनवाई से एक रात पहले लोया अपने एक दोस्त की बेटी की शादी में शामिल होने नागपुर गए थे। वह एक रेस्ट हाउस में ठहरे थे, जहां उनकी संदिग्ध हालात में मौत हो गई। उनकी बहन के मुताबिक, 48 वर्षीय लोया की मौत की खबर और उनका सामान लेकर आरएसएस का एक कार्यकर्ता उनके घर गया था। उन्हें तभी शक हुआ। मगर वे चुप रहे, क्योंकि उनके परिवार को फोन पर धमकियां मिल रही थीं।

पीठ ने कहा, 'मामला गंभीर है। हम सभी सामग्री का परीक्षण कर रहे हैं। हमारी जमीर को यह कभी नहीं लगना चाहिए हमने सभी पहलुओं पर गौर नहीं किया।'

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पीठ ने लोया की मौत से जुड़े सभी मामलों व मौत की परिस्थिति जन्य कारणों को अदालत के समक्ष सभी पक्षों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

बांबे लॉयर्स एसोसिएशन की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे व हस्तक्षेपकर्ता के तौर पर इंदिरा जयसिंह ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश किए गए रिकार्ड पूरे नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने जिक्र किया कि उन्होंने कुछ कागजात आरटीआई के जरिए प्राप्त किए हैं।

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जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ सिंह ने दोनों पक्षों को अपने पास मौजूद दस्तावेजों को दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा, 'रिकॉर्ड को सीमित करने का कोई सवाल नहीं है। रिकॉर्ड का संकलन तैयार करें।'

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने मामले से जुड़े बंबई उच्च न्यायालय व इसकी नागपुर पीठ में लंबित दो याचिकाओं को भी खुद अपने पास मंगा लिया है।

सुनवाई के शुरू होने पर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे पर दवे ने आपत्ति जताई। दवे ने कहा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तरफ से पेश होने के बाद महाराष्ट्र सरकार की तरफ से साल्वे का पेश होना उचित नहीं है और उन्होंने संस्थान को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है और यहां पर हितों के लाभ का मामला है।

उन्होंने अदालत की सहायता के लिए एमाइकस क्यूरी की नियुक्ति की मांग की, लेकिन अदालत ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हम उन परिस्थितियों पर गौर कर रहे हैं जिसकी वजह से जस्टिस लोया की मौत हुई। हम इस पर टिप्पणी नहीं करेंगे कि कौन किसकी तरफ से पेश हो रहा है।'

दवे व साल्वे के बीच बहस में दवे ने कहा, पूरा संस्थान एक आदमी को बचाने की कोशिश में जुटा है-अमित शाह और सिर्फ अमित शाह, जिसका उन्होंने महान उत्कृष्ट राजनेता के तौर पर वर्णन किया है।

इस पर साल्वे ने आपत्ति जताते हुए कहा, 'अमित शाह, अमित शाह क्या कह रहे हैं। आप किसी पर उसकी अनुपस्थिति में दोष लगा रहे हैं। आप किसी पर आक्षेप नहीं लगा सकते। आप किसी पर टिप्पणी नहीं कर सकते, क्योंकि वह व्यक्ति प्रमुख राजनेता बन चुका है।'

प्रतिद्वंद्वी वकीलों के बीच बहस में जयसिंह ने साल्वे के बयान पर आपत्ति जताई कि वह जो भी कुछ याचिकाकर्ताओं व हस्तक्षेपकर्ता वकीलों से साझा करेंगे, उसकी गोपनीयता बरकरार रखी जाएगी और उसे मीडिया के साथ साझा नहीं किया जाएगा। इस पर जयसिंह ने कहा कि यह मीडिया के खिलाफ झूठ बोलने की अनुमति मांगने जैसा है।

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि 'वह यह नहीं कह रहे कि मीडिया से झूठ बोलें। वह सिर्फ कह रहे।' जयसिंह ने विरोध करते हुए कहा, 'इसका मतलब झूठ बोलना ही है।'

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 2 फरवरी मुकर्रर की है।

प्रधान जस्टिस दीपक मिश्रा ने पहले यह मामला अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली खंडपीठ को सौंपा था, जिसका चार वरिष्ठ जस्टिसों ने विरोध किया था। उनका कहना था कि चीफ जस्टिस ने इस मामले को रफा-दफा करवाने की नीयत से ऐसा किया है।

उन्होंने इस संबंध में दीपक मिश्रा को पत्र लिखा था। पत्र के जवाब का एक महीना इंतजार करने के बाद चारों जस्टिसों ने मीडिया का सहारा लिया, ताकि उनकी बात दबा न दी जाए। अब दीपक मिश्रा ने यह मामला खुद अपने हाथ में लिया है। उन्होंने महाराष्ट्र की अलग-अलग अदालतों में चल रहे इससे जुड़े मामलों को अपने पास स्थानांतरित करवा लिया है। अब जो भी फैसला होगा, यहीं होगा।

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Source : IANS

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