हमारा था विवादित परिसर का अंदरूनी हिस्सा : निर्मोही अखाड़ा
मध्यस्थता के जरिए विवाद का कोई हल निकालने का प्रयास असफल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लिया है. यह सुनवाई हफ्ते में तीन दिन मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को होगी.
नई दिल्ली:
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट आज से रोजाना सुनवाई करेगा. मध्यस्थता के जरिए विवाद का कोई हल निकालने का प्रयास असफल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लिया है. यह सुनवाई हफ्ते में तीन दिन मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को होगी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी. इस पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं.
मध्यस्थता समिति ने 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में फाइनल रिपोर्ट पेश की थी. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि मध्यस्थता समिति के जरिए मामले का कोई हल नहीं निकाला जा सका है. उसके बाद पीठ ने तय किया कि मंगलवार यानी 6 अगस्त से मामले की रोजाना सुनवाई होगी.
अयोध्या मामले में आज की सुनवाई पूरी. कल भी निर्मोही अखाड़े की ओर से सुशील जैन दलीलें जारी रखेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि 1949 में सरकार ने जमीन पर कब्जा किया, अखाड़े ने 1959 में कोर्ट का रुख किया वक्फ बोर्ड ने 1961 में मुकदमा दायर किया, क्या ये सिविल सूट में दावे के लिए मुकदमा दायर करने की समयसीमा का उल्लंघन नहीं करता.
निर्मोही अखाड़ा की ओर से सुशील जैन ने दलील दी कि जमीन पर हमारा दावा पुराना है, ऐतिहासिक है. 1934 से हमारा कब्जा है, लिमिटेशन यहां अप्लाई नहीं होता है.
निर्मोही अखाड़ा की ओर से वकील सुशील जैन ने दावा किया कि अखाड़ा मंदिर के प्रबंधक की हैसियत से विवादित जमीन पर अपना दावा कर रहा है, जबकि बाकी हिंदू पक्षकार सिर्फ पूजा के अधिकार का हवाला देकर दावा कर रहे है. 1949 से वहां नमाज नहीं हुई, लिहाजा मुस्लिम पक्ष का कोई दावा नहीं बनता.
सुशील जैन ने कहा कि विवादित जगह पर वुज़ू (नमाज से पहले हाथ, पैर आदि धोने) की जगह मौजूद नहीं है, जो दर्शाता है कि वहां लंबे वक्त से नमाज़ अदा नही की जा रही है.
निर्मोही अखाड़े की ओर से वकील सुशील जैन ने दावा किया कि विवादित जमीन पर मुस्लिमों ने 1934 से पांचों समय नमाज पढ़ना बंद कर दिया था. 16 दिसंबर 1949 के बाद तो जुमे की नमाज पढ़ना भी बंद हो गया. 22-23 दिसंबर 1949 को वहां अंदर मूर्तियां रखी गई. निर्मोही अखाड़े ने 1931 में विवादित जमीन को लेकर दावा पेश किया, जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में इसे लेकर मुकदमा दायर किया.
सुशील जैन उन फ़ैसलों का हवाला दे रहे है, जिसके मुताबिक किसी जगह को मस्जिद करार नहीं दिया जा सकता, अगर वहां पर नियमित रूप से नमाज नहीं पढ़ी जा रही हो.
सुशील जैन ने विवादित स्थान से रिसीवर (डीएम) को हटा कर खुद को कब्ज़ा देने की मांग की कहा कि वहां आखिरी बार 16 दिसंबर 1949 को नमाज हुई थी. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इसके 12 साल बाद 1961 में मुकदमा दायर किया.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने वो ग्राउंड पूछे है, जिनकी बिनाह पर निर्मोही अखाड़े के दावों को दूसरे पक्ष ने विरोध किया है. सुशील जैन उन्ही लिखित दलीलों को अभी पढ़ रहे है.
दरअसल सुशील जैन की जिरह के बीच राजीव धवन ने कुछ बोलने की कोशिश की. चीफ जस्टिस ने उन्हें टोका और कहा- आपको जिरह का पूरा मौका मिलेगा।
इस पर राजीव धवन ने कहा- मुझे इस पर संदेह है.
चीफ जस्टिस ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उनका ये कहने का क्या मतलब है। कुछ भी ऐसा बोलते वक़्त उन्हें कोर्ट की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने रवैये पर नाराज़गी जाहिर की।चीफ जस्टिस ने कोर्टरूम की गरिमा का ख्याल रखते हुए अपनी बात रखने को कहा है.
सुशील जैन ने कहा, निर्मोही अखाड़े को ग़लत तरीक़े से मंदिर के संचालन और अधिकार से वंचित किया गया है. मेरी मांग है कि कोर्ट रिसीवर को वहाँ से हटाकर निर्मोही अखाड़े को फिर से नियंत्रण दिया जाए.
सुशील जैन ने कहा, परिसर के बाहरी हिस्से में स्थित सीता रसोई, भंडारगृह, चबूतरा भी हमारे कब्ज़े में था. गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दायर पहला केस अंदर के हिस्से में पूजा करने का अधिकार मांगने के लिए आया था.
निर्मोही अखाड़े ने कहा, राम जन्मस्थान के नाम से जाने जानी वाली जगह भी निर्मोही अखाड़े के कब्जे में थी.
निर्मोही अखाड़े की ओर से सुशील जैन ने कहा, विवादित परिसर के अंदरूनी हिस्से पर पहले हमारा कब्ज़ा था, जिसे दूसरे ने बलपूर्वक कब्ज़े में ले लिया. बाहरी पर पहले विवाद नहीं था. 1961 से उस पर विवाद शुरू हुआ.
निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा- मेरा सूट दरअसल ज़मीन के उस टुकड़े के लिए है, जो अभी कोर्ट द्वारा नियुक्त रिसीवर के नियंत्रण में है
गोविंदाचार्य के वकील ने ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग की थी, जिसे चीफ जस्टिस ने नकार दिया. अब निर्मोही अखाड़े की ओर से सुशील जैन दलीलें रख रहे हैं.
एक वकील की ओर से सुनवाई की ऑडिओ रिकॉर्डिंग की मांग की गई, इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान कोई ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं होगी.
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