दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के रिक्त पदों को भरने के निर्देश की मांग वाली याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार और अन्य से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने प्रतिवादियों - स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, एनसीटी दिल्ली सरकार, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सफदरजंग अस्पताल और राम मनोहर लोहिया अस्पताल - को नोटिस जारी किया। इसके साथ ही अदालत ने मामले को 12 जनवरी, 2022 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
याचिकाकर्ता डॉ. नंद किशोर गर्ग ने कहा कि डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी के कारण निर्दोष और गरीब मरीजों को इलाज से वंचित किया जा रहा है। उन्होंेने प्रासंगिक बुनियादी ढांचे और विशेष डॉक्टरों की उपलब्धता के बारे में गलत जानकारी का मुद्दा भी उठाया है।
अधिवक्ता शशांक देव सुधी के माध्यम से दायर याचिका में, यह प्रस्तुत किया गया है कि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार ने भी चूक के क्षेत्रों में पहलुओं को देखने के लिए कोई समिति या आयोग का गठन नहीं किया है, जिसके कारण दिल्ली एनसीटी के निर्दोष नागरिकों की मौत हो जाती है।
याचिका में आरोप लगाया गया है, निजी अस्पताल असहाय मरीजों की दुर्दशा का अवैध तरीके से फायदा उठा रहे हैं। ऐसे कई मामले हैं जहां सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में बुनियादी ढांचे की कमी का हवाला देकर मरीज को निजी अस्पतालों में रेफर कर रहे हैं।
याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि सरकारी अस्पताल कोरोनावायरस की हालिया महामारी से निपटने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित नहीं हैं, जो पूरी आबादी को अपनी चपेट में ले रहा है।
याचिका में कहा गया है, दिल्ली शहर में सुरक्षात्मक मास्क और सैनिटाइजर की भी कालाबाजारी की जा रही है और इन्हें अत्यधिक कीमतों पर उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाओं की बढ़ती आवश्यकता के प्रति पूरी तरह से असंवेदनशील है, जो कि आरटीआई उत्तर से परिलक्षित हो सकती है।
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Source : IANS