अपने घरों से पलायन को मजबूर हुये कश्मीरी पंडित भले ही भयानक त्रासदी के गवाह बने और निराशा के गहरे बादलों ने उन्हें घेर लिया लेकिन उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और जीवन जीने की उत्कंठा आज कई शिविरों से उनकी सफलता की कहानी बनकर बाहर आ रही है।
हिंसा से बचकर अपना घरबार छोड़कर भागने को विवश हुये इन कश्मीरी पंडितों के मासूम बच्चे, जिनकी आंखें कश्मीर की वादियों की खुबसूरती को निहार नहीं पायीं और वे अलग-अलग तंबुओं और शिविरों में पैदा हुये, पले-बढ़े, उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। ये बच्चे अब देश के दूसरे शहरों या विदेशों में अपनी जिंदगी की नयी इबारत लिख रहे हैं।
जम्मू शहर के बाहरी इलाके में बने जगती कैम्प के लिये यह उस समय गर्व का क्षण था, जब वर्ष 2017 में कश्यप नेहा पंडिता कश्मीर प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सफल होने वाली पहली विस्थापित लड़की बनीं।
नेहा का परिवार मूल रूप से दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के एक गाँव का रहने वाला है। नेहा के परिवार को भी 1990 में कश्मीर छोड़ने के लिये मजबूर किया गया था। उसने अपना बचपन बिना बुनियादी सुविधाओं के शिविरों में बिताया। वह अपने परिवार के साथ कभी टेंट में तो कभी मिश्रीवाला में एक कमरे में रही और अब उसका मौजूदा ठिकाना है-जगती कैम्प।
साहिल पंडिता, जिनके माता-पिता को भी 1990 में घाटी से भागने के लिये मजबूर किया गया था, उनका जन्म और पालन-पोषण भी विभिन्न शिविरों में तंबू में हुआ। इसके बाद उनका परिवार जगती कैम्प में आ गया।
कश्मीर में उनके परिवार के पास दो घर और बगीचे थे लेकिन यहां उन्होंने नये सिरे से जिंदगी शुरू करनी पड़ी।
साहिल कहते हैं, दूसरों की तरह हमें भी कठिन समय से गुजरना पड़ा लेकिन हमारे माता-पिता ने हमारी शिक्षा को नहीं छोड़ा। उन्होंने उम्मीद नहीं खोई। इसी वजह से शायद मेरे अंदर भी एक सकारात्मक ²ष्टिकोण आया। मैं नौकरी के पीछे नहीं गया। मैंने एक स्पोर्ट्स एकेडमी खोली। शुरूआती दो साल बहुत कठिन थे क्योंकि कोई भी माता-पिता नहीं चाहते थे कि उनका बच्चा खेलकूद करे। लेकिन आज मेरे पास बहुत सारे बच्चे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार ने उन्हें कोई मदद नहीं दी। कैम्प में खाली जमीन थी लेकिन सरकार इसकी देखरेख नहीं करती थी।
उन्होंने कहा,आज मेरे पास जो कुछ भी है वह मुझे अपने समुदाय से मिला है। उन्होंने यहां बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद की। हमारे पास कंक्रीठ का बना बैडमिंटन कोर्ट है। सरकार ने कुछ नहीं किया है। यह मेरे समुदाय के अच्छे लोग हैं, जिन्होंने मेरी मदद की।
साहिल की एकेडमी जम्मू-कश्मीर के राइजिंग एथलीट कैम्पों में रहने वाले बच्चों को कोचिंग देती है।
उन्होंने कहा, हमने इतना दुख देखा है कि इसने कुछ करने और आगे बढ़ने की इच्छा पैदा की है। मैं चाहता हूं कि शिविरों के सभी बच्चे खेलों को अपनायें क्योंकि यह स्वस्थ तरीके से प्रतिस्पर्धा की भावना को विकसित करता है।
साहिल की अकादमी जिला चैंपियनशिप में भाग लेती रही है और शिविर से प्रतिभागियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले साल दो चैंपियनशिप हुई थी। पहले में 26 बच्चों ने भाग लिया और दूसरे में 47 बच्चों ने भाग लिया।
उन्होंने कहा, यही मेरी सफलता है।
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Source : IANS