अवसरवादिता के आधार पर बने चुनौतियों के पुल को पार कर पाएंगे कुमारस्वामी

अवसरवादी राजनीति के जरिए एस डी कुमारस्वामी बतौर मुख्यमंत्री बुधवार को कर्नाटक की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। हालांकि उनका शर्मनाक रिकॉर्ड राज्य को राजनीतिक स्थायित्व देने के बिलकुल खिलाफ है।

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अवसरवादिता के आधार पर बने चुनौतियों के पुल को पार कर पाएंगे कुमारस्वामी

कुमारस्वामी (फाइल फोटो)

अवसरवादी राजनीति के जरिए एच डी कुमारस्वामी बतौर मुख्यमंत्री बुधवार को कर्नाटक की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। हालांकि उनका शर्मनाक रिकॉर्ड राज्य को राजनीतिक स्थायित्व देने के बिलकुल खिलाफ है। फिलहाल मौजूदा परिस्थितियां और कारक ऐसे हैं जो गठबंधन के दलों को कम से कम आगामी लोकसभा चुनावों तक एक साथ रहने को मजबूर करेंगी। 

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अगर कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के बीच चुनाव से पहले गठबंधन होता तो दोनों के बीच इस समझौते में धोखा देने का संदेह नहीं होता। लेकिन एक दूसरे की कट्टर दुश्मन रहे दोनों दल 
परिस्थितिवश और अवसर को देखते हुए एक साथ आए हैं। थोड़े समय के लिये ही सही लेकिन यही बात उन्हें एक साथ रखेगी। 

इस गठबंधन में ऐसी भी संभावना है कि कांग्रेस या जेडीएस के कुछ विधायक बीजेपी के साथ हो जाएं और कुमारस्वामी की सरकार को आने वाले कुछ ही महीनों में गिरा दें। भले ही दल-बदल कानून के तहत ऐसे विधायकों के अयोग्य घोषित होने का खतरा हो। लेकिन तीन दिनों तक सरकार में रहकर येदियुरप्पा सरकार ने अपनी साख पूरी तरह से गिरा ली है। इस दौरान सरकार बचाने के लिये खरीद-फरोख्त के आरोप लगे और बहुमत उनसे दूर ही रहा। 

अनैतिकता का दाग लगने के बाद अब बीजेपी को डर होगा कि कहीं विधायकों को प्रलोभन देते हुए उसे पकड़ न लिया जाए। ऐसे में वो कम से कम कुछ दिन तक शांत रहेगी।

कर्नाटक में बीजेपी आम चुनावों में एक ऐसे दल के तौर पर उतरेगी जो शोषित है और जिसने धोखा खाया है। वो अपनी एक ऐसी छवि पेश करेगी जिसे कांग्रेस-जेडीएस ने ठगा है। 

दूसरे पक्ष के पास बहुमत होने के बावजूद भी राज्यपाल वाजुबाई वाला का बीजेपी को सरकार बनाने का आमंत्रण देना जितना असंगत फैसला था, उतना ही गलत सुप्रीम कोर्ट भी था जिसने 
कांग्रेस-जेडीएस को कैद किये गए अपने विधायकों मुक्त करने का आदेश नहीं दिया। कम से कम विधानसभा सत्र तक जब येदियुरप्पा को बहुमत सिद्ध करना था। 

कर्नाटक में हाल ही में हुए चुनाव में प्रचार के तरीके को देखें तो बड़ी बेशर्मी से लोगों को जातियों में बांट कर प्रचार किया गया जिसमें कुछ निश्चित जातियों का पक्ष लिया गया तो कुछ जातियों के साथ सीधा भेदभाव किया गया। 

रिसॉर्टस में विधायकों को बंधक बनाकर बार-बार लोकतंत्र के विनाश की कोशिश की गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अनाचार पर कुछ नहीं कहा।

चुनावों में प्रचार के दौरान कर्नाटक में जातिवाद का खेल खेला गया और जिस तरह जातियों के बीच खाई भरी गई  वो किसी एक को फायदा पहुंचा सकता है तो कुछ को नुकसान। 

जिस वोकालिगा समुदाय से कुमारस्वामी आते हैं उसे चुनाव में इतनी तवज्जो नहीं दी गई जितना प्रेम बीजेपी और कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को लेकर जताया। अब एक खुला हुआ रहस्य सबके सामने है कि बहुमत परीक्षण से पहले बीजेपी कांग्रेस पार्टी के लिंगायत विधायकों को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश कर रही थी। 

जातिगत मतभेद कांग्रेस और जेडीएस के बीच तनाव का कारण हो सकता है। लेकिन कावेरी मुद्दे को सुलझाने में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन को मुश्किल आ सकती है। कावेरी जल बंटवारे को अगर संवेदनशीलता के साथ नहीं सुलझाया गया तो कुमारस्वामी की सरकार और तमिलनाडु के बीच विवाद बढ़ सकता है। 

ये एक भावनात्मक मुद्दा है जिसे कुमारस्वामी के लिये दरकिनार करना मुश्किल होगा। हालांकि कुमारस्वामी ने बीते दिनों दावा किया था कि दोनों राज्यों के बीच इस भावनात्मक मुद्दे को वो दो भाइयों के बीच उपजे विवाद की तरह ही सुलझा लेंगे।

बेंगलूरु में मौजूद आधारभूत सुविधाओं की जो हालत है वो भी कर्नाटक में बड़ा मुद्दा है। राजधानी के विकास के कामों में कमी को लेकर वहां की जनता कांग्रेस सीएम सिद्धारमैया से बेहद नाराज थी क्योंकि यह सीधे तौर पर सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए चर्चित उस शहर से जुड़ी हुई समस्या है।

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राज्यों के अनेक हिस्सों में कई समस्याएं हैं और ऐसे क्षेत्र हैं जो अभावग्रस्त हैं। ऐसे इलाकों की समस्या को हल करने के लिए वहां के लोग नई सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हुए हैं। सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार किसी के प्राथमिकता सूची में नहीं है।

ज्यादातर मुद्दों और समस्याओं पर कांग्रेस और जेडीएस की सोच अलग-अलग होगी क्योंकि उसके परिणाम का असर सीधे तौर पर उनके वोट बैंक पर पड़ेगा। ऐसे में उनके लिए किसी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का कोई मतलब नहीं होगा।

अब देखना यह है कि सत्ता का गोंद कितने समय तक गठबंधन के दोनों साझीदारों को एक दूसरे से चिपकाये रखता है।

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(Note - यह लेखक के निजी विचार हैं और newsstate.com लेख में लिखे गए किसी भी तथ्य और दावे के लिए जिम्मेदार नहीं है)

Source : Kamlendra Kanwar

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