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ज्ञानवापी केस: पक्षकारों को सौंपते ही सर्वे रिपोर्ट लीक, वीडियो वायरल

Gyanvapi case: वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मामले को 4 जुलाई को सुनवाई के लिए निर्धारित किया है। अदालत काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर के भीतर श्रृंगार गौरी स्थल की दैनिक पूजा की अनुमति मांगने वाली पांच हिंदू महिलाओं की याचिका पर आगे की सुनवाई करेगी

Updated on: 30 May 2022, 11:14 PM

नई दिल्ली:

Gyanvapi case: वाराणसी में ज्ञानवापी मामले पर  शपथपत्र देने के साथ ही बंद लिफाफे में सर्वेक्षण की रिपोर्ट और वीडियो की सीडी पक्षकारों को सौंप दी गई। रिपोर्ट सौंपने के कुछ देर बाद ही रिपोर्ट लीक हो गई और सर्वे के वीडियो वायरल हो गए। । दावा किया कि सर्वे के वीडियो को किसी ने वायरल कर दिया है। उन्होंने अपने चारों लिफाफे भी मीडिया को दिखाए। दावा किया कि हमारे लिफाफे अभी तक सील बंद हैं। हमने अभी तक इसे खोला ही नहीं है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि वीडियो कैसे लीक हो गया।अब महिला वादिया  कह रही है कि अब हम लोग अपने सभी लिफाफे कल कोर्ट में सरेंडर कर देंगे ये विडियो लीक कर एक साजिश हो रही है विडियो सामने आने के बाद महिला वादियों से बात की न्यूज स्टेट / न्यूज नेशन संवादाता सुशांत मुखर्जी ने।

वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मामले को 4 जुलाई को सुनवाई के लिए निर्धारित किया है। अदालत काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर के भीतर श्रृंगार गौरी स्थल की दैनिक पूजा की अनुमति मांगने वाली पांच हिंदू महिलाओं की याचिका पर आगे की सुनवाई करेगी। ज्ञानवापी मामले पर सोमवार को शपथपत्र देने के साथ ही बंद लिफाफे में सर्वेक्षण की रिपोर्ट और वीडियो की सीडी पक्षकारों को सौंप दी गई। रिपोर्ट सौंपने के कुछ देर बाद ही रिपोर्ट लीक हो गई और सर्वे के वीडियो वायरल हो गए। लिफाफे फिलहाल हिन्दू पक्ष को ही मिले हैं ऐसे में एक चैनल पर वीडियो चलता देख उसने पल्ला झाड़ लिया।

दावा किया कि सर्वे के वीडियो को किसी ने वायरल कर दिया है। उन्होंने अपने चारों लिफाफे भी मीडिया को दिखाए। दावा किया कि हमारे लिफाफे अभी तक सील बंद हैं। हमने अभी तक इसे खोला ही नहीं है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि वीडियो कैसे लीक हो गया। कहा कि अब हम लोग अपने सभी लिफाफे कल कोर्ट में सरेंडर कर देंगे। मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया है कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का आदेश देता है, क्योंकि यह 15 अगस्त, 1947 से ही अस्तित्व में है।