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भारत में कभी भी आ सकती है बड़ी तबाही, वैज्ञानिकों ने दी इस विनाशकारी खतरे की चेतावनी

दिल्ली/एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में बड़ी तबाही हो सकती है. जहां रहने वालों के लिए आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने बड़ी चेतावनी जारी की है.

Updated on: 02 Mar 2020, 04:15 PM

कानपुर:

देश के जाने माने इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी चेतावनी दी है. यहां के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के बाद ये चौंकाने वाला खुलासा किया है कि आने वाले समय में देश का एक बड़ा हिस्सा भयानक भूकंप (Earthquake) की चपेट में आ सकता है. दिल्ली/एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में बड़ी तबाही हो सकती है. जहां रहने वालों के लिए आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने बड़ी चेतावनी जारी की है.

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दरअसल, आईआईटी कानपुर ने अपनी नई रिसर्च के बाद खतरे का ये आकलन किया है कि दिल्ली से बिहार के बीच आने वाले समय में कभी भी विनाशकारी भूकंप आ सकता है. रिसर्च के मुताबिक, ये भूकंप कोई छोटे मोटे स्तर का नहीं, बल्कि इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.5 से 8.5 के बीच होने की प्रबल आशंका है. संस्थान के सिविल इंजिनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और खुद इस रिसर्च के सर्वेसर्वा जावेद एन मलिक के अनुसार, इस दावे के पुख्ता आधार हैं और समय रहते इससे बचने के उपाय कर लेना ही बेहतर है.

प्रोफेसर मलिक और उनकी टीम ने कुछ समय पहले उत्तराखंड के रामनगर में जमीन में गहरे गढ्ढा कर अध्यन किया. वैज्ञानिकों ने जमीन से पहाड़ की ओर 200 मीटर की जगह को चिन्हित किया और बाद में जेसीबी की मदद से खुदाई शुरू की. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से 5-6 किमी की रेंज में हुए इस अध्ययन में 1505 और 1803 में आए भूकंप के प्रमाण मिले हैं. यहां 8 मीटर तक नीचे खुदाई करने पर मिट्टी की सतह एक दूसरे पर चढ़ी मिली.

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वैज्ञानिकों को इस बात के संकेत भी मिले कि यहां धरती के नीचे टेक्टोनिक प्लेट्स की सक्रियता भी बढ़ी है. प्रोफेसर जावेद ने बताया कि 1885 से 2015 के बीच देश में सात बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं. इनमें तीन भूकंपों की तीव्रता 7.5 से 8.5 के बीच थी. 2001 में भुज में आए भूकंप ने करीब 300 किमी दूर अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर तबाई मचाई थी.

प्रोफेसर मलिक कहते हैं कि मध्य हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आया तो दिल्ली-एनसीआर, आगरा, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और पटना तक का इलाका प्रभावित हो सकता है. किसी भी बड़े भूकंप का 300-400 किमी की परिधि में असर दिखना आम बात है. इसकी दूसरी बड़ी वजह है कि भूकंप की कम तीव्रता की तरंगें दूर तक असर कर बिल्डिंगों में कंपन पैदा कर देती हैं. गंगा के मैदानी क्षेत्रों की मुलायम मिट्टी इस कंपन के चलते धसक जाती है.

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प्रोफेसर जावेद मलिक के मुताबिक, बिल्डरों और आम लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार के आदेश पर डिजिटल ऐक्टिव फॉल्ट मैप ऐटलस तैयार किया जा रहा है. इसमें सक्रिय फॉल्टलाइन की पहचान के अलावा पुराने भूकंपों का रिकॉर्ड भी तैयार हो रहा है. ऐटलस से लोगों को पता चलेगा कि वे भूकंप की फॉल्ट लाइन के कितना करीब हैं और नए निर्माण में सावधानियां बरती जाए.

फिलहाल आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की ये रिपोर्ट मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस को भेज दी गई है. वहीं जिन क्षेत्रों में भूकंप आ चुके हैं, वहां बिल्डरों और आम लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार के आदेश पर ये वैज्ञानिक डिजिटल ऐक्टिव फॉल्ट मैप ऐटलस तैयार कर रहे हैं, जिससे लोगों को पता चलेगा कि वे भूकंप की फॉल्ट लाइन के कितना करीब हैं और नए निर्माण में सावधानियां बरती जा सकेंगी.

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