नई दिल्ली:
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ के उस आरोप को नकार दिया है जिसमें सरकार पर सूखा ग्रस्त किसानों को महात्मा गांधी नेशनल रुरल इम्पलॉयपेंट गारंटी (मनरेगा) स्कीम के तहत देर से फंड देने का आरोप लगाया गया है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ ने याचिका लगाई थी जिसमें आरोप था कि सरकार ने मनरेगा के तहत लाभार्थियों को फंड जारी करने में बहुत ज़्यादा देर की थी। जस्टिस बी लोकुर और एनवी रमण की बेंच ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से इस मामले में 4 हफ्ते में हलफनामा पेश करने को कहा है।
बेंच ने इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 18 जनवरी तक के लिए टाल दिया है। यह याचिका एनजीओ स्वराज अभियान ने लगाई थी। याचिका में कहा गया था कि मनरेगा के तहत सूखाग्रस्त किसानों को पैसा जारी करने में केंद्र ने बहुत देरी की है।
बेंच ने इस मामले में कहा, 'केवल दो आधार (याचिकाकर्ता द्वारा दायर शपथ पत्र) और लगाए गए आरोपों के सत्यापन के उद्देश्य के लिए, हमें केंद्र सरकार के एक हलफनामे की आवश्यकता है।'
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अदालत ने इससे पहले कहा था कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के तहत अनिवार्य रूप से राज्य खाद्य आयोगों को, सूखे से प्रभावित नहीं होने वाले राज्यों में भी स्थापित किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने पहले दावा किया था कि एनएफएसए का क्रियान्वयन अब भी एक बड़ी चुनौती बना रहा है और मनरेगा के तहत पर्याप्त काम राज्य सरकारों द्वारा नहीं दिया जा रहा है।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि 12 राज्यों- उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में सूखा से प्रभावित थे और अधिकारियों ने पर्याप्त राहत नहीं दी थी।
इस याचिका में देश में सूखा प्रभावित राज्यों में राहत उपायों की मांग की गई है।
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