Kargil War : पूर्व सेनाध्यक्ष मलिक बोले- मिलनी चाहिए थी पाकिस्तानी इलाकों पर कब्जे की इजाजत
Kargil War Memories : 1999 की गर्मियों में जब पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठिये भारतीय इलाके में आकर अड्डा जमा चुके हैं तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी कैबिनेट हक्का-बक्का रह गई.
highlights
- लाहौर समझौते के दो महीने बाद ही पाक ने करगिल पर चढ़ाई कर दी
- पाक की इस हरकत ने भारत का भरोसा हमेशा के लिए खत्म कर दिया
- तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल वीपी मलिक ने करगिल युद्ध से जुड़ी यादें की ताजा
नई दिल्ली:
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक (VP Malik) ने कहा है कि करगिल (Kargil) में चुपके से चोटियों पर आ बैठे पाकिस्तानी सेना को मार भगाने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय छेड़ा जो बहुत राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक पहलों का शानदार मिश्रण था. इसके सामने पाकिस्तान न केवल अपने मकसद में नाकाम रहा बल्कि उसे राजनीतिक और सैन्य मोर्चे पर बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा. उन्होंने कहा कि सीजफायर से पहले सुरक्षाबलों को एलओसी के पास पाकिस्तानी इलाकों को कब्जा करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी. साल 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के 22 साल बाद मलिक ने कहा कि ऑपरेशन विजय राजनीतिक, सैन्य और राजनयिक रूप से दृढ़ कार्रवाई थी, जिसने हमें खराब स्थिति को भी मजबूत सैन्य और राजनयिक जीत में बदलने में मदद की.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार मलिक ने कहा कि जब युद्ध शुरू हुआ, हम पाकिस्तान द्वारा बनाई गई 'सरप्राइज सिचुएशन' पर जवाब दे रहे थे. इंटेलीजेंस और सर्विलांस में असफल होने के कारण सरकार के भीतर घुसपैठियों की पहचान को लेकर काफी भ्रम था. हमारी फ्रंटलाइन घुसपैठ का पता लगाने में असफल रही और उनके ठिकानों के बारे में कोई सुराग नहीं था. इसलिए पर्याप्त जानकारी हासिल करना, स्थिति को स्थिर करना और फिर से पहल करना जरूरी हो गया. मुंबई हमले से जुड़े एक सवाल पर मलिक ने कहा कि जब 26/11 हुआ था तब मैं रिटायर हो गया था लेकिन तब भी मेरा मानना था कि भारत को जवाबी कार्रवाई की जरूरत है. अगर पाकिस्तान फिर से ऐसी स्थिति बनाता है तो हमें जवाबी कार्रवाई कर जोरदार जवाब देना चाहिए.
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करगिल युद्ध में भारत की चहुंओर प्रशंसा
जनरल मलिक ने कहा कि करगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय की सफलना ना सिर्फ सैन्य दृष्टिकोण से बल्कि कूटनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण रहा. भारतीय सेना को बहुत कमजोर खुफिया जानकारी और अपर्याप्त निगरानी के कारण संगठित होने और पाकिस्तानी सेना पर काउंटर ऐक्शन लेने में थोड़ी देर हुई, लेकिन रणभूमि में सैन्य सफलता और एक सफल राजनीतिक-सैन्य रणनीति के कारण भारत अपने राजनीतिक लक्ष्य को पाने में कामयाब रहा. करगिल युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की एक ऐसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक राष्ट्र की छवि मजबूत की जो अपने क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा करने को प्रतिबद्ध और पूरी तरह सक्षम है.
वाजपेयी को मानने में लगा समय
जनरल मलिक ने कहा कि जब पाकिस्तान ने करगिल में नापाक हरकत की तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यह मामने में काफी समय लगा कि हमला आतंकियों ने नहीं बल्कि पाक सेना ने किया था. भारत यह समझ गया कि पाकिस्तान कभी भी, किसी भी समझौते को आसानी से धता बता सकता है जैसा कि उसने सिर्फ दो महीने पहले साइन किए गए लाहौर घोषणापत्र के साथ किया था. पाकिस्तान की इस हरकत ने प्रधानमंत्री वाजपेयी (और उनकी कैबिनेट) को तगड़ झटका दिया जो आसानी से यह मान नहीं रहे थे कि भारतीय सीमा में घुसपैठ करने वाले आतंकी नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान थे. वाजपेयी ने नवाज शरीफ से कहा था, 'आपने पीठ में छूरा घोंपा है.'
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