उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक शख्स झाड़ू लगाकर स्वच्छता की अलख जगाने में लगे हैं। पिछले 15 वर्षों से गोरखपुर शहर की साफ-सफाई के लिए हाथ में झाड़ू थाम रखी है। इसी कारण लोग इनको झाड़ू बाबा के नाम से जानते हैं। झाड़ू लगाना इनका पैशन है। साल के 365 दिन ये सुबह कहीं न कहीं झाड़ू लगाते मिल जाएंगे। इनकी खासियत है कि यह कार से झाड़ू लगाते हैं।
गोरखपुर शहर के गोरखनाथ क्षेत्र स्थित शास्त्री नगर निवासी महेश शुक्ल पेशे से व्यापारी हैं। वह शहर के शाही मार्केट में कंप्यूटर व कैमरे की दुकान चलाते हैं। महेश 2008 से अपने मोहल्ले और आसपास के क्षेत्र को साफ कर रहे हैं। वह सुबह चार बजे से आठ बजे तक अलग-अलग मोहल्लों में साफ-सफाई करते हैं।
महेश शुक्ला ने बताया कि वह यह काम किसी नेतागिरी और प्रसिद्धि के लिए नहीं करते बल्कि यह उनकी आदत में शामिल है। उनकी जागरूकता के कारण अभी हमारे साथ तकरीबन 700 से 800 लोग जुड़े हैं। यह पूरा कार्य वो अपने पैसे से करते हैं।
उन्होंने बताया कि सभी अलग अलग स्थानों में सफाई का कार्य चलता है। सोमवार, मंगलवार और बुधवार को गोरखनाथ, राजेंद्र नगर और शास्त्री नगर में सफाई का काम चलता है। इसके बाद गुरुवार और रविवार को रामगढ़ ताल के इलाकों में सफाई करता हूं। अभी तक इस कार्य में 10 लाख रुपए तक खर्च हो चुके हैं। हर सप्ताह तकरीबन पांच झाड़ू का खर्च है। इसके अलावा किट पानी की बोतलें भी लगती है। अपने क्षेत्र के सफाई कर्मचारियों को सम्मानित करना भी हमारे रूटीन में शामिल है।
उन्होंने कहा, दरअसल मैं जिस गली में रहता हूं, उसमें करीब 30-40 और परिवार रहते हैं। मेरे घर के बाजू में एक बिजली का पोल था। पूरी गली का कूड़ा लोग वहीं डाल जाते थे। भोजन की तलाश में जानवर उसे और बिखेर देते। तब बहुत बुरा लगता था। मना करने पर लोग लड़ने लगते। चूंकि कूड़े के निस्तारण का काम अमूमन महिलाएं करती हैं। लिहाजा उनसे बहुत बहस भी नहीं की जा सकती थी।
महेश शुक्ल एक बार जयपुर जा रहे थे। बगल की सीट पर एक किताब पड़ी थी। उसमें गांधीजी एवं स्वच्छता के बारे में कुछ जिक्र था। उसे दिखाते हुए पत्नी ने कहा सफाई करनी है तो गांधीजी से सीख लो। बात जंची, पर झिझक तो थी ही।
जयपुर से लौटने पर उसी झिझक के नाते देर रात झाड़ू से एकत्र कूड़े को बटोर कर गोला बना दिया। तड़के चार बजे उठकर उसे साफ कर दिया। प्रयास रहता था कि कोई इस इस काम को देखे नहीं। धीरे धीरे कानोकान लोगों को पता चला। घरों में इस बात पर चर्चा होने लगी। हमारा कूड़ा शुक्लाजी उठाते हैं। चर्चा के साथ ही करीब 50 फीसद लोगों ने पोल के पास कूड़ा फेंकना बंद कर दिया। शुक्ल ने कहा, इससे मुझे प्रेरणा भी मिली और काम भी कम हुआ। फिर मैंने एक बड़ी झाड़ू खरीदी और पूरी गली में झाड़ू लगाने लगा। इसे मेरे घर के पोल के पास 3-4 महिलाओं के अलावा कोई और कूड़ा नहीं फेंकता था। अब वह जैसे ही वह कूड़ा फेंकती मैं उसे साफ करने लगता। उनके घर से ही विरोध होने लगा। लिहाजा उन्होंने भी कूड़ा फेंकना बंद कर दिया। इस सबमें करीब 6 से 7 महीने लगे। मेरी गली मेरे पहल और लोगों के प्रयास से चमाचम हो गई। फिर मैंने मुख्य सड़क और पार्कों का रुख किया।
इस बीच केंद्र में सरकार बदल गई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने स्वच्छता अभियान शुरू किया। प्रतीकात्मक रूप से ही सही। खुद कई जगह झाड़ू लगाते एवं सफाई करते दिखे। उनको देख औरों ने भी किया। अखबारों में मंदिर परिसर में ऐसा करते हुए योगी आदित्यनाथ की भी फोटो छपी। यह देखकर मेरा हौसला बढ़ा। झिझक बिल्कुल दूर हो गई। लोगों में मेरे काम की चर्चा भी होने लगी। मंच भी मिलने लगा। मुझे आश्चर्य हुआ कि जिस काम को झिझक से शुरू किया वह मेरी प्रतिष्ठा की वजह बन रहा है।
उन्होंने कहा, फिर मैंने कार में आ सके इस हिसाब से कुछ झाडू बनवाया। ड्रेस, गलब्स, कैप और लोगों से साथ देने की अपील के लिए एक माइक सिस्टम भी खरीदा। लगातार 6 महीने तक तय समय पर वहां झाडू लगाने पहुंच जाता था। लोगों ने न केवल सराहा बल्कि साथ भी दिया। अब वहां रविवार एवं गुरुवार को जाता हूं।
बाकी दिन भी चिन्हित जगहों पर झाड़ू लगती रहती है। कार में झाड़ू एवं बाकी किट पड़ी रहती है। जहां भी कार से जाता हूं। सुबह की दिनचर्या झाड़ू से ही शुरू होती है। सफाई के लिहाज से श्रेष्ठतम शहरों में शुमार इंदौर भी वहां की व्यवस्था को देखने जा चुका हूं।
महेश बताते हैं कि पहले वह अपने काम को एकदम खामोशी से बिना किसी प्रचार के करते थे। लेकिन, अब वह अपने काम से अन्य लोगों को भी प्रेरित करने के लिए साफ-सफाई के दौरान झाड़ू के साथ फोटो पोस्ट करते हैं। स्थानीय लोग भी महेश के काम की काफी प्रशंसा करते है। मुख्यमंत्री योगी उन्हे सम्मानित भी कर चुके हैं।
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Source : IANS