40 वर्ष नि:स्वार्थ सेवा के लिए गीता प्रेस के राधेश्याम खेमका को मरणोपरांत पद्मविभूषण
40 वर्ष नि:स्वार्थ सेवा के लिए गीता प्रेस के राधेश्याम खेमका को मरणोपरांत पद्मविभूषण
नई दिल्ली:
गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर पद्मपुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। इस बार पद्म पुरस्कारों की सूची में गीता प्रेस गोरखपुर के अध्यक्ष रहे दिवंगत राधेश्याम खेमका को भी सम्मानित किया गया है। राधेश्याम खेमका परिवार के साथ वाराणसी में रहते थे और बीते वर्ष वाराणसी में ही उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है।गीता प्रेस से जुड़े राधेश्याम खेमका को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया है। उन्होंने 40 वर्षों तक गीता प्रेस गोरखपुर के माध्यम से धार्मिक पुस्तकों का संपादन किया। राधेश्याम खेमका ने अनेक धार्मिक पत्रिकाओं का भी संपादन किया। इन धार्मिक पत्रिकाओं में कल्याण पत्रिका प्रमुख है। लंबे समय तक कई महत्वपूर्ण पुस्तकों एवं महत्वपूर्ण धार्मिक साहित्य से जुड़े रहे राधेश्याम खेमका अपनी मृदुल वाणी के लिए भी काफी प्रसिद्ध थे।
बीते वर्ष अप्रैल माह के दौरान वाराणसी स्थित अपने आवास पर 87 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनको पद्म विभूषण से सम्मानित किए जाने पर केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे ने कहा, गीता प्रेस गोरखपुर के अध्यक्ष रहे और सनातन धर्म की प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण के संपादक करने वाले प्रसिद्ध पत्रकार स्व. श्री राधेश्याम खेमका जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद्मविभूषण से सम्मानित करके उत्तर प्रदेश के साहित्य को सम्मान दिया है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत देश के कई नेताओं ने खेमका को पद्मविभूषण से सम्मानित किए जाने पर खुशी जाहिर की है।
गौरतलब है कि राधेश्याम खेमका वाराणसी की प्रसिद्ध संस्थाओं मारवाड़ी सेवा संघ, मुमुक्षु भवन, श्रीराम लक्ष्मी मारवाड़ी अस्पताल गोदौलिया, बिड़ला अस्पताल मछोदरी, काशी गोशाला ट्रस्ट से जुड़े रहे थे।
राधेश्यामज खेमका ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए (संस्कृत) किया और साहित्यरत्न की उपाधि भी प्राप्त की थी। अपने जीवन के अंतिम 38 वर्षों तक खेमका गीता प्रेस और कल्याण की अवैतनिक सेवा करते रहे। वह इस संस्था से कोई आर्थिक लाभ नहीं लेते थे।
खेमका ने काशी में 2002 में एक वेद विद्यालय की स्थापना की थी, इसमें आठ से बारह वर्ष आयु के बच्चों को छह वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया जाता है।
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