गिलानी के मौत के बाद कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन हाशिये पर
गिलानी के मौत के बाद कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन हाशिये पर
श्रीनगर:
वरिष्ठ कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का 91 साल की उम्र में निधन हो गया। उनकी मृत्यु से अलगाववादी खेमे में मायूसी के साथ खालीपन भी हो गया है, जिसका प्रभाव भविष्य में देखने को मिल सकता है।गिलानी ने 2008 में जमात-ए-इस्लामी से नाता तोड़ लिया था, उसके बाद उन्होंने तहरीक-ए-
हुर्रियत नाम से अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी।
उस समय अशरफ सहराई तहरीक-ए- हुर्रियत में उनके डिप्टी थे और गिलानी के ज्यादातर समर्थक सहराई को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखते थे।
5, मई 2021 को जेल में रहने के दौरान सहराई की कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मौत हो गई।
उनकी मृत्यु के बाद साफ हो गया कि गिलानी के अलावा अलगाववादी आंदोलन का उत्तराधिकारी कोई और नहीं बन सकता, क्योंकि कोई और बड़ा चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन, उनके पार्टी से अलग होने के बाद संगठन के किसी वरिष्ठ नेता को गिलानी के उत्तराधिकारी होने की संभावनाएं खत्म हो गई थीं।
दिलचस्प बात यह है कि जब वह जमात से अलग हुए थे तो, गिलानी अपने जैसे कई कट्टरपंथी नेताओं को तहरीक-ए-हुर्रियत में ले गए थे, लेकिन उनमें से कोई भी सहराई को छोड़कर पार्टी का उत्तराधिकारी बनने का दावा नहीं कर सकता था।
सैयद अली शाह गिलानी ने साल 2003, में ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को उनके नेतृत्व वाले कट्टरपंथी गुट और मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले उदारवादी धड़े में बांट दिया था।
गिलानी ने अन्य अलगाववादी नेताओं जैसे जेकेएलएफ के यासीन मलिक, अवामी एक्शन कमेटी के मीरवाइज उमर फारूक, मुस्लिम लीग के प्रोफेसर अब्दुल गनी भट, जम्मू-कश्मीर इत्तिहादुल मुस्लिमीन के मौलवी अब्बास अंसारी और ऑल पार्टी हुर्रियत के साथ अपने सहयोग के दौरान पीपल्स कॉन्फ्रेंस के बिलाल गनी लोन के साथ काम किया।
शाह गिलानी के दो बेटे हैं। जिनमें नईम गिलानी एक डॉक्टर हैं और नसीम गिलानी स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
उनके दोनों बेटों ने ही साफ कर दिया है कि वे अलगाववादी खेमे में अपने पिता की जगह लेने की दौड़ में शामिल नहीं हैं।
उनके दामाद, मौहम्मद अल्ताफ शाह, वर्तमान में तिहाड़ जेल में बंद हैं। उन पर एनआईए द्वारा आतंकियों की फंडिंग के लिए धन इकट्ठा करने का आरोप लगाया गया था।
बता दें कि अल्ताफ ने काफी समय तक गिलानी के प्रवक्ता के रूप में काम किया हुआ है बावजूद इसके वह इस काबिल नहीं कि वह अपने ससुर की जगह ले सकें।
सवाल ये है कि क्या गिलानी की मौत से अलगाववादियों के हौंसले पस्त होंगे या उनकी मौत कश्मीर में अलगाववादी भावना को एक और नया जीवन देगी? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गिलानी ने जिस तरह से पार्टी के लिए जज्बे के साथ काम किया, उसकी बराबरी अलगाववादी खेमे में कोई भी प्रतिद्वंद्वी नहीं कर सकता।
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