गांधी जयंती: कितना प्रासंगिक है 'गांधीगिरी'?
आज उनकी 148वीं जयंती पर देश ही नहीं दुनिया उन्हें याद कर रहा है। 'अहिंसा दिवस' मना रहा है। उनके पथ 'गांधीगिरी' पर चल कर मंजिल पाने को प्रयासरत है। कोई प्रदर्शन हो या मांग मनवाना 'गांधीगिरी' सबसे बेहतर तरीका माना जाता है।
नई दिल्ली:
मोहनदास करमचन्द गांधी यानि एक दर्शन, विचारधारा। एक ऐसी शख्सियत जो शांति, अहिंसा और सद्भाव के पथ पर चलकर न सिर्फ अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया बल्कि सामाजिक रूढ़ीवाद को खत्म करने के लिए मुहीम चलाई। यही वजह है कि उनकी हत्या के करीब 69 साल बाद भी 'गांधीवाद' जिंदा है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हमेशा अहिंसा का रास्ता चुना। कहते हैं कि जब बैरिस्टर की पढ़ाई करने गांधी इंग्लैंड गए थे, तभी एक दिन तांगे में बैठने की जगह को लेकर एक अंग्रेज ने उनसे हाथापाई की। उन्होंने हाथ तो नहीं उठाया, लेकिन चुप रहकर विरोध प्रदर्शित किया। यहीं से नौजवान गांधी को 'मूक विरोध' करने या कहें कि अहिंसा का अस्त्र मिला। उस अस्त्र का दुनिया इस्तेमाल कर रहा है।
आज उनकी 148वीं जयंती पर देश ही नहीं दुनिया उन्हें याद कर रहा है। 'अहिंसा दिवस' मना रहा है। उनके पथ 'गांधीगिरी' पर चल कर मंजिल पाने को प्रयासरत है। कोई प्रदर्शन हो या मांग मनवाना 'गांधीगिरी' सबसे बेहतर तरीका माना जाता है।
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संसद के बाहर लगे गांधी प्रतिमा के नीचे काले पट्टी बांधी नेताओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शन, नर्मदा बचाओ आंदोलन हो या बैंकों के कर्ज वसूली के तरीके गांधीगिरी के ही उदाहरण हैं।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिले उस्मानाबाद के एक बैंक ने किसानों को दिए कर्जे की वसूली के लिए 'गांधीगिरी' का रास्ता चुना। इसके लिए बैंक ने तीन तरह के कदम उठाए- 1. किसानों के घर के सामने टेंट डाले, विरोध करने के लिए, 2. एक बैंड का इस्तेमाल किया 3. उनके घर की घंटी बजाए।
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इसी तरह की अक्सर आती है कि गांधीगिरी का रास्ता अपना कर लोगों ने संस्था, सरकार से अपनी मांगें मनवाई। कन्नौज के जिला प्रशासन ने भी स्वच्छता के लिए गांधीगिरी का सहारा लिया।
जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने बताया कि सुबह पांच बजे से शाम 8.30 बजे तक जो खुले में शौच करता पाया गया, उन्हें फूल भेंट किया जाएगा, इसका मकसद विनम्रतापूर्वक उन्हें खुले में शौच से रोकना है।
'गांधीगिरी' पर कई फिल्में भी बनी है। मुख्य तौर पर राजकुमार हिरानी की फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' और 'गांधीगिरी' इसपर केंद्रित थी।
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