RSS के मंच से प्रणब मुखर्जी ने स्वयंसेवकों को पढ़ाया 'राष्ट्रवाद' का पाठ, बताया क्या है असल देशभक्ति
करीब 5 दशक से कांग्रेस की राजनीति करने वाले पूर्व राष्ट्रपति का संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लेना अप्रत्याशित माना जा रहा है।
नई दिल्ली:
देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) के कार्यक्रम को संबोधित किया। कांग्रेस के नेताओं के विरोध को नजरअंदाज करते हुए बुधवार नागपुर पहुंचे, जहां संघ के पदाधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
इसके बाद गुरुवार को प्रणब मुखर्जी नागपुर में संघ मुख्यालय पहुंचे, जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उनकी आगवानी की। दोनों ने साथ मिलकर संघ के संस्थापक केशवराम बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि दी।
संघ संस्थापक हेडगेवार को श्रंद्धांजलि देने के बाद मुखर्जी ने उन्हें भारत का 'महान' सपूत बताया। उन्होंने विजिटर बुक पर लिखा, 'मैं आज यहां भारत माता के एक महान सपूत के प्रति अपना सम्मान जाहिर करने और श्रद्धांजलि देने आया हूं।'
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इसके बाद उन्होंने संघ शिक्षा वर्ग तृतीय कार्यक्रम को संबोधित किया।
1. प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'मैं यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर बोलने आया हूं। देश के प्रति समर्पण ही असली देश भक्ति है। भारत के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं। यह विविधताओं से भरा देश है और इसके प्रति निष्ठा ही देशभक्ति है, लेकिन असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीय पहचान धूमिल होती है। नफरत और भेदभाव से हमारी पहचान को खतरा है।'
2. इतिहास का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा, 'भारतीय राज्य के उदभव की जड़ें छठीं शताब्दी से निकलती हैं। 600 सालों तक भारत पर मुस्लिमों का शासन रहा और इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी आई। पहली आजादी की लड़ाई के बाद भारत की कमान महारानी के हाथों में चली गई, लेकिन एक बात को ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि कई शासकों के बाद भी 5000 साल पुरानी सभ्यता की निरंतरता बनी रही।'
3. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रवाद किसी भाषा, रंग, धर्म, जाति आदि से प्रभावित नहीं होता। भारत की आत्मा बहुलवाद में बसती है।
4. मुखर्जी ने कहा कि आधुनिक भारत का विचार किसी नस्ल और धर्म विशेष के दायरे से नहीं बंधा है। आधुनिक भारत का विचार कई भारतीय नेताओं की देन है, जिनकी पहचान किसी नस्ल या धर्म विशेष की मोहताज नहीं रही।
5. प्रणब मुखर्जी ने कहा कि बाल गंगाधर तिलक ने 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' का नारा दिया। हमें लोकतंत्र गिफ्ट के रूप में नहीं मिला है।
6. मुखर्जी ने कहा कि हमारे समाज को हर तरह की हिंसा से बचने की जरूरत है। फिर चाहे वह मौखिक हो या शारीरिक। विभिन्न विचारधारा के लोगों की समस्या का समाधान बातचीत से निकल सकता है।
7. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में लोगों के नज़रिए के लिए जगह होनी चाहिए, भले ही आप उनकी बातों से सहमत हो या न हों। जनता की खुशी में ही राजा की खुशी होनी चाहिए।
8. प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आज लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है, हर दिन हिंसा की खबर आ रही है। युवाओं को हिंसा और गुस्सा छोड़कर शांति के रास्ते पर चलना चाहिए। ये मातृभूमि की मांग है।
9. मुखर्जी ने कहा, 'हम बहुलतावाद का सम्मान करते हैं और विविधता का जश्न मनाते हैं। हमारी राष्ट्रीय पहचान मेल-मिलाप और समत्व की लंबी प्रक्रिया से बनी है। कई संस्कृतियों और मान्यताओं ने हमें विशेष और सहिष्णु बनाया है।'
10. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी राष्ट्रीयता को धर्म, क्षेत्र, नफरत और असहिष्णुता के जरिए पारिभाषित करने की कोशिश हमारी पहचान को कमजोर करेगी।
प्रणब मुखर्जी ने संबोधन के आखिर में सरसंघचालक मोहन भागवत से ज्यादा समय तक बोलने के लिए माफी मांगी और भाषण समाप्त किया।
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