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महाराष्ट्र में अगले 48 घंटे अहम; शिवसेना का राजनीतिक भविष्य दांव पर, बीजेपी की हर हाल में पौ बारह

भगवा पार्टी दूरगामी सोच अपना रही है. वह जानती है कि आने वाले सालों में उसे शिवसेना से ऐसे 'टकराव' का सामना करना ही है. ऐसे में अभी से शिवसेना को उसका स्थान दिखाने की पेशबंदी शुरू कर देनी चाहिए.

Updated on: 06 Nov 2019, 04:45 PM

highlights

  • महाराष्ट्र के 'नए सीएम' की राजनीति में अगले 48 घंटे होंगे खासे अहम.
  • एनसीपी के तेवर के बाद बीजेपी और शिवसेना में सुलझ सकता है मसला.
  • दूरगामी हितों के लिहाज से शिवसेना को करना ही होगा 'आत्मसमर्पण'

New Delhi:

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम आए 12 दिन हो गए हैं और फिलहाल 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' को लेकर खींचतान जारी है. हालांकि बदलते घटनाक्रम में शिवसेना के अरमानों पर एनसीपी ने पानी फेर दिया है. इसके बाद पर्दे के पीछे खेल तेज हो गया है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच में पड़ने से महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में इस बात के कयास तेज हो गए हैं कि अगले 48 घंटे खासे अहम साबित होने वाले हैं. इसकी एक वजह तो विशुद्ध रूप से संवैधानिक व्यवस्था है, जिसके तहत 9 नवंबर से पहले हर हाल में सूबे को उसका सीएम मिल जाना चाहिए. ऐसा न होने पर गेंद सीधे-सीधे राज्यपाल के पाले में चली जाएगी और बीजेपी दीर्घ राजनीतिक हितों को देखते हुए बेहद नपे-तुले अंदाज में अपने पत्ते खोल रही है.

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शिवसेना की दुविधा है बड़ी
एक समय था जब 'बड़े भाई-छोटे भाई' की भूमिकाएं बदली हुई थीं. नब्बे के दशक में शिवसेना चुनावों में हासिल मतों के आधार पर 'बड़े भाई', तो बीजेपी 'छोटे भाई' की भूमिका में खुशी-खुशी रहती थी. यही वजह है कि हिंदुत्व मुद्दे पर 1995 दोनों ने जब राज्य में पहली बार बहुमत हासिल किया था, तो मुख्यमंत्री शिवसेना का यानी मनोहर जोशी हुए थे. यह अलग बात है कि 2004 आते-आते 'भाइयों' की भूमिकाएं बदल गईं और अपने विस्तार और वोट शेयर के बलबूते बीजेपी 'बड़े' और शिवसेना 'छोटे भाई' की भूमिका में आ गई. अपनी जमीन खिसकने से शिवसेना भी कम चिंतित नहीं है और ऐसा कोई कठोर फैसला लेने से बचना चाहेगी, जो उसके खिसकते जनाधार को और गति दे दे.

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बीजेपी भी ढील के साथ लड़ा रही पेंच
यह बदली भूमिका एक बढ़ी वजह से बीजेपी 'चाणक्य' अमित शाह के होते हुए भी सरकार बनाने का दावा नहीं कर रही है. यहां भगवा पार्टी दूरगामी सोच अपना रही है. वह जानती है कि आने वाले सालों में उसे शिवसेना से ऐसे 'टकराव' का सामना करना ही है. ऐसे में अभी से शिवसेना को उसका स्थान दिखाने की पेशबंदी शुरू कर देनी चाहिए. गौरतलब है कि दोनों ही दल हिंदुत्व के मसले पर अपना विस्तार करने में सफल रहे हैं. हालांकि शिवसेना की तुलना में बीजेपी की बढ़त और विस्तार मजबूत नींव पर है. अब अगर शिवसेना येन-केन-प्रकारेण एनसीपी-कांग्रेस की मदद से सरकार बना भी लेती है, तो वह अपनी हिंदुत्व की छवि से हाथ धो बैठेगी. बीजेपी भी इस बात को बाखूबी समझ रही है और संभवतः इसीलिए 'फ्रंट फुट' पर नहीं खेल रही है.

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संघ के बीच में पड़ने से सुलह की उम्मीद बढ़ी
शिवसेना की ओर से जब संजय राउत ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से मुलाकात की, तो बीजेपी ने संघ को आगे कर दिया. माना जाता है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और मोहन भागवत के अच्छे संबंध हैं. इसीलिए पर्दे के पीछे से एक नई डील पर काम शुरू कर दिया गया है. खासकर बुधवार को शरद पवार के शिवसेना को 'उसका स्थान' बताने के बाद से गतिविधियां और तेज हो गई हैं. बीजेपी ने सीएम पद अपने पास रखने की सूरत में शिवसेना को मनाने के लिए दो प्रमुख मंत्रालय देने का प्रस्ताव दिया है. संजय राउत के 'बड़बोलेपन' को देखते हुए ही उद्धव ठाकरे से सीधे-सीधे 'डील' की जा रही है. इस बातचीत की कमान नितिन गड़करी और मोहन भागवत ही संभाले हुए हैं.

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शिवसेना के लिए आगे कुंआ पीछे खाई
बीजेपी दूरगामी हितों के मद्देनजर शिवसेना को अभी से 'अर्दब' में लाने की कवायद शुरू कर चुकी है. शिवसेना भी इस बात को समझती है इसीलिए वह बार-बार 'समझौते' की रट लगाए हुए हैं. शिवसेना अगर कांग्रेस और एनसीपी की मदद से किसी तरह सरकार बना लेती है, तो इतना तय है कि वह सूबे की राजनीति में 'हिंदुत्व की झंडाबरदार' वाली अपनी पुरानी पहचान हमेशा के लिए खो देगी. इस तरह से अगर देखा जाए तो शिवसेना के लिए 'आगे कुंआ पीछे खाई' वाली स्थिति है. बीजेपी इस बात को अच्छे से समझ सधे अंदाज में अपने पत्ते चल रही है.

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अगले 48 घंटे होंगे खास
हालांकि इतना तय है कि महाराष्ट्र की राजनीति में अगले 48 घंटे खासे अहम माने जा रहे हैं. पहली कोशिश तो यही है कि शिवसेना अपनी 'छोटे भाई' वाली छवि को 'नियति' मान सीएम पद बीजेपी को देने पर राजी हो जाए. हां, इसके एवज में दो महत्वपूर्ण मंत्रालयों का प्रस्ताव पहले ही शिवसेना को दिया जा चुका है. मोहन भागवत और नितिन गडकरी इसी बात पर शिवसेना को राजी करने की कोशिश करेंगे. दुरगामी हितों का नफा-नुकसान समझाया जाएगा और बताया जाएगा कि राज ठाकरे को अभी भी खारिज नहीं किया जा सकता है.

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राज्यपाल शासन भी जाएगा शिवसेना के खिलाफ
हालांकि यह भी तय है कि अगर बीजेपी और शिवसेना दोनों ही की ओर से सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया गया, तो गेंद राज्यपाल के पाले में होगी. वह सबेस बड़ा दल होने के नाते बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं. बीजेपी के इंकार के बाद शिवसेना को बुला सकते हैं. अगर वह भी इंकार कर दे तो राज्य में राज्यपाल शासन लगने का रास्ता एक हद तक साफ हो जाएगा. शिवसेना के लिए यह स्थिति भी खासी असहज ही साबित होगी. खासकर जब हर चुनाव के साथ उसका वोट बैंक लगातार सिकुड़ता जा रहा है. गौरतलब है कि हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 105 और शिवसेना के 56 विधायक जीत कर आए हैं.