Flash Back 2019: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार तो झारखंड ने जगाई उम्मीद

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में करारी शिकस्त और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के इस्तीफे के बाद 2019 के पहले छह महीने कांग्रेस (Congress) के लिए बहुत ही मुश्किल भरे रहे.

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में करारी शिकस्त और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के इस्तीफे के बाद 2019 के पहले छह महीने कांग्रेस (Congress) के लिए बहुत ही मुश्किल भरे रहे.

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Sunil Mishra
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Flash Back 2019: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार तो झारखंड ने जगाई उम्मीद

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार तो झारखंड ने जगाई उम्मीद( Photo Credit : File Photo)

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में करारी शिकस्त और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के इस्तीफे के बाद 2019 के पहले छह महीने कांग्रेस (Congress) के लिए बहुत ही मुश्किल भरे रहे, लेकिन साल के अंत में महाराष्ट्र (Maharashtra) और झारखंड (Jharkhand) में भाजपा की सरकार नहीं बनने से देश की सबसे पुरानी पार्टी के भीतर भविष्य में बेहतर करने की एक उम्मीद जगी है. इसी साल सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली तो प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने बतौर महासचिव अपनी सक्रिय राजनीति का आगाज किया. यही नहीं, कांग्रेस ने वैचारिक रूप से बेहद अलग शिवसेना (Shiv Sena) के साथ हाथ मिलाकर साफ संकेत भी दिया कि बदले हुए राजनीतिक हालात में वह भाजपा (BJP) के खिलाफ नए नए राजनीतिक गठजोड़ करने से गुरेज नहीं करेगी.

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बीते कुछ वर्षों से अपने सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही कांग्रेस ने साल के आखिर में संशोधित नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिकता पंजी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले किए. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला कहते हैं, ‘‘2019 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की विभाजनकारी राजनीति के अंत की शुरुआत का साल रहा है. देश की जनता एक बार फिर कांग्रेस में विश्वास जता रही है. हमें उम्मीद है कि 2020 में देश का मिजाज उस बहुलवादी और उदारवादी भारत की तरफ होगा जिसकी बुनियाद हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने रखी थी."

वर्ष 2018 के आखिर में तीन राज्यों की जीत के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में पूरे जोशोखरोश के साथ उतरी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने ‘न्याय’ रूपी सामाजिक सरोकार की योजना, राफेल विमान सौदे में कथित भ्रष्टाचार, नोटबंदी एवं ‘‘जल्दबाजी में लागू’’ जीएसटी के कथित दुष्परिणाम, बेरोजगारी और कृषि संकट को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया, लेकिन पुलवामा हमले एवं बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद नरेंद्र मोदी के पक्ष में उठी लहर में मुख्य विपक्षी पार्टी की नाव पूरी तरह से डगमगा गई. नतीजा यह हुआ कि उसे महज 52 सीटें हासिल हुईं और खुद राहुल गांधी अपना गढ़ माने जाने वाले अमेठी से चुनाव हार गए. यह बात अलग है कि केरल की वायनाड लोकसभा सीट के मतदाताओं ने उनके चौथी बार संसद पहुंचने के सिलसिले को बरकरार रखा.

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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और उन्हें मनाने की सभी कोशिशें नाकाम होने के बाद सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया. सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद भी राहुल की राजनीतिक सक्रियता बनी रही और वह विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रचार अभियान की अगुवाई करते नजर आए. ऐसी अटकलें भी हैं कि निकट भविष्य में एक बार फिर से उन्हें पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद कई प्रदेश अध्यक्षों ने इस्तीफा दिया तो झारखंड के पीसीसी अध्यक्ष रहे अजय कुमार और त्रिपुरा के अध्यक्ष रहे प्रद्युत देव बर्मन ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और कुछ नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए.

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बागी तेवर अपनाए और 370 पर पार्टी के रुख की आलोचना की. हालांकि विधानसभा चुनाव में नुकसान की आशंका को भांपते हुए पार्टी आलाकमान ने हुड्डा को विधायक दल का नेता और चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष तथा कुमारी शैलजा को पीसीसी अध्यक्ष बनाया. इस बदलाव से नाराज अशोक तंवर ने चुनाव से कुछ दिन पहले बगावत कर दी और गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी. हुड्डा और शैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस हरियाणा में 31 सीटें जीतकर एक मजबूत विपक्षी दल की भूमिका में आई, हालांकि चुनाव से पहले राजनीतिक पंडितों ने कांग्रेस को लगभग खारिज कर दिया था.

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महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच खींचतान ने कांग्रेस को सत्तासीन किया. बदले राजनीतिक परिदृश्य में उसने लंबे मंथन के बाद वैचारिक रूप बहुत भिन्न नजर आने वाली शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया. वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ शामिल हुई. झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने झामुमो और राजद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा और वह भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल करने में सफल हुई. सियासी जानकार इस जीत को कांग्रेस के लिए बड़ी उम्मीद के तौर पर देख रहे हैं.

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की गिरफ्तारी, अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर कई नेताओं की पार्टी लाइन से इतर राय और कई राज्यों में नेताओं के पार्टी छोड़ने या इस्तीफा देने से भी 2019 में कांग्रेस की चुनौतियों में इजाफा हुआ. दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन के बाद डीपीसीसी कमान सुभाष चोपड़ा को सौंपी गई. कुल सात राज्यों में सत्तासीन हो चुकी कांग्रेस अब 2020 के दिल्ली एवं बिहार विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रही है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने दावा किया, ‘‘बिहार में पार्टी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. हमें विश्वास है कि अगले साल बिहार में कांग्रेस फिर से मजबूत होगी और गठबंधन की सरकार बनेगी.

Source : Bhasha

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