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सरकार व किसानों के बीच बातचीत आज, नए कानून वापस लेने की मांग पर अड़े

केंद्र और आंदोलन कर रहे किसान संगठनों के बीच ठहरी हुयी बातचीत बुधवार को होगी वहीं प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने कहा कि चर्चा केवल तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीकों एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने पर ही होगी.

Updated on: 30 Dec 2020, 06:18 AM

दिल्ली:

केंद्र और आंदोलन कर रहे किसान संगठनों के बीच ठहरी हुयी बातचीत बुधवार को होगी वहीं प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने कहा कि चर्चा केवल तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीकों एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने पर ही होगी. इस बीच केंद्र और किसानों के बीच छठे दौर की वार्ता से एक दिन पहले केंद्रीय मंत्रियों नरेन्द्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने वरिष्ठ भाजपा नेता एवं गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की.

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सूत्रों ने बताया कि मंत्रियों ने इस बैठक में इस बारे में चर्चा की कि बुधवार को किसानों के साथ होने वाली वार्ता में सरकार का क्या रुख रहेगा. कृषि मंत्री तोमर, खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश किसानों के साथ वार्ता में केंद्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. तोमर ने सोमवार को कहा था कि उन्हें गतिरोध के जल्द दूर होने की उम्मीद है.

केंद्र ने सोमवार को आंदोलन कर रहे 40 किसान संगठनों को सभी प्रासंगिक मुद्दों का "तार्किक हल’’ खोजने के लिए 30 दिसंबर को अगले दौर की बातचीत के लिए आमंत्रित किया. लेकिन किसान यूनियनों का प्रतिनिधित्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार को केंद्र को लिखे पत्र में कहा कि तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीकों एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने का मुद्दा वार्ता के एजेंडे का हिस्सा होना ही चाहिए.

मोर्चा ने आगे कहा कि बैठक के एजेंडे में एनसीआर एवं इससे सटे इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के संबंध में जारी अध्यादेश में संशोधन को शामिल किया जाना चाहिये ताकि किसानों को दंडात्मक प्रावधानों से बाहर रखा जा सके. पत्र के जरिए मोर्चा ने वार्ता के लिए सरकार के आमंत्रण को औपचारिक रूप से स्वीकार किया है. पत्र में यह भी कहा गया कि किसानों के हितों की रक्षा के लिए बिजली संशोधन विधेयक 2020 को वापस लिए जाने का मुद्दा भी वार्ता के एजेंडे में शामिल होना चाहिए. अब तक हुई पांच दौर की बातचीत में पिछले दौर की वार्ता पांच दिसंबर को हुई थी.

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छठे दौर की वार्ता नौ दिसंबर को होनी थी, लेकिन इससे पहले गृह मंत्री शाह और किसान संगठनों के कुछ नेताओं के बीच अनौपचारिक बैठक में कोई सफलता न मिलने पर इसे रद्द कर दिया गया था. कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने सोमवार को किसान संगठनों को लिखे पत्र में, उन्हें राष्ट्रीय राजधानी के विज्ञान भवन में बुधवार दोपहर दो बजे बातचीत के लिए आमंत्रित किया. किसानों ने इससे पहले 26 दिसंबर को भी वार्ता की एजेंडा सूची के संबंध में सरकार को पत्र लिखा था. हालिया पत्र में मोर्चा ने 26 दिसंबर के पत्र का हवाला देते हुए कहा कि तब उसने भूलवश ''वापसी'' के बजाय बिजली संशोधन विधेयक में ''बदलाव'' का जिक्र किया था.

इस बीच, केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों ने बुधवार को सरकार के साथ होने वाली बातचीत के मद्देनजर अपना प्रस्तावित ट्रैक्टर मार्च बृहस्पतिवार तक के लिए स्थगित कर दिया है. पंजाब, हरियाणा और देश के कुछ अन्य हिस्सों से आए हजारों किसान दिल्ली के निकट सिंघू बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले 31 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दी जाए.

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इस बीच कांग्रेस ने कहा कि सरकार को मौखिक आश्वासन देने की बजाय संसद के जरिए कानून बनाकर किसानों की मांगों को पूरा करना चाहिए. पार्टी के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला ने यह आरोप भी लगाया कि तीनों कृषि कानून लाना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म करने की साजिश है. शुक्ला ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘किसानों के आंदोलन को राजनीतिक दलों का आंदोलन बताना गलत है. यह किसानों को बदनाम करने का प्रयास है. यह आंदोलन पूरी तरह से किसानों का आंदोलन है. सरकार को किसानों को बदनाम करने का प्रयास नहीं करना चाहिए.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी मांग है कि सरकार किसानों को सुनें और उनकी मांगों को स्वीकार करे. ये मांगें संसद से पारित कानून का हिस्सा होनी चाहिए.’’ राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, ‘‘जब किसी किसान संगठन ने इन कानूनों को बनाने की मांग नहीं की तो फिर किसके कहने पर ये काले कानून बनाए गए?’’ सच्चाई यह है कि एमएसपी को खत्म करने और खेती पर उद्योगपतियों का कब्जा कराने का षड्यंत्र है.’’

वहीं राकांपा प्रमुख और पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने राज्यों से विचार विमर्श किये बिना ही कृषि संबंधी तीन कानूनों को थोप दिया . उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठकर खेती के मामलों से नहीं निपटा जा सकता क्योंकि इससे सुदूर गांव में रहने वाले किसान जुड़े होते हैं . शरद पवार ने किसान संगठनों के साथ बातचीत के लिये गठित तीन सदस्यीय मंत्री समूह के ढांचे पर सवाल उठाया और कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को ऐसे नेताओं को आगे करना चाहिए जिन्हें कृषि और किसानों के मुद्दों के बारे में गहराई से समझ हो.

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शरद पवार ने पीटीआई से साक्षात्कार में कहा कि सरकार को विरोध प्रदर्शनों को गंभीरता से लेने की जरूरत है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों के आंदोलन का दोष विपक्षी दलों पर डालना उचित नहीं है . उन्होंने कहा कि अगर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ अगली बैठक में सरकार किसानों के मुद्दों का समाधान निकालने में विफल रहती है तब विपक्षी दल बुधवार को भविष्य के कदम के बारे में फैसला करेंगे.