logo-image

भारी बारिश से मोर्चों पर भरा पानी इसके बाद भी किसानों के हौंसले बुलंद

मुख्य स्टेज व किसान मजदूर एकता हॉस्पिटल भी तूफान की चपेट में आने से क्षतिग्रस्त हुए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने किसानों के प्रति अड़ियल रवैया अपनाया हुआ है व किसान सड़को पर रहने को मजबूर है.

Updated on: 13 May 2021, 07:00 PM

highlights

  • बारिश की वजह से किसानों के टेंट व ट्रॉलियां में अंदर तक पानी आ गया
  • सरकार का किसान आंदोलन की माँगों को न मानना कहीं भी जायज नहीं है

नई दिल्ली:

कल रात भारी बारिश की वजह से सिंघु बॉर्डर व टिकरी बॉर्डर पर किसानों के टेंट व ट्रॉलियां में अंदर तक पानी आ गया. ढलान वाली जगह पर जो टेंट व ट्रॉली लगी थी वहां पर किसानों को ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ा. मुख्य स्टेज व किसान मजदूर एकता हॉस्पिटल भी तूफान की चपेट में आने से क्षतिग्रस्त हुए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने किसानों के प्रति अड़ियल रवैया अपनाया हुआ है व किसान सड़को पर रहने को मजबूर है. इसी दौरान किसानों ने भी मजबूती दिखाई है व उन्होंने हर मौसम में खुद को मजबूत रखा है. बारिश व तूफान से अव्यवस्थित टेंट आज किसानो द्वारा फिर से सेट कर लिए गए. किसान हर मौसम में अपना जीवन यापन करते है. फसल बीजने के पहले से लेकर कटाई व फसल बेचने तक के सफर में अनेक विपदाओं का सामना करना पड़ता है. किसान इनसे घबराते नहीं व सबर रखते हुए जोश से लड़ते है. मोदी सरकार के कृषि कानून किसी भी प्राकृतिक आपदा से कहीं बड़े है पर किसान इसके खिलाफ भी मजबूती से लड़ रहे है. सरकार किसानों के सबर की परीक्षा लेनी बंद करे. इतना लंबा आंदोलन चलने के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि सरकार को किसानों की चिंता नहीं है व उनका ओर शोषण करना चाहती है. नवम्बर 2020 में जब दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चे लगे थे तब किसानों के पास कम से कम 6 महीने की तैयारी थी.सरकार के घमंड के खिलाफ लड़ाई अब लंबी होती जा रही है. इसलिए किसानों ने लंगर व रहने के साथ साथ अन्य जरूरी व्यवस्था भी कर रहे है. सिंघु बॉर्डर पर किसानों ने आटा चक्की भी स्थापित की है. किसान संगठनों ने पीने के पानी के बड़े पैकेट्स के स्टॉक भी रख लिए है. किसानों के यह सारे प्रयास मोदी सरकार को एक प्रत्यक्ष संदेश है कि इस आंदोलन की मांगे जब तक पूरी नहीं होती, टैब तक किसान पूरी मजबूती से लड़ते रहेंगे.

सरकार का किसान आंदोलन की माँगों को न मानना कहीं भी जायज नहीं है. कल जारी एक बयान में, 12 राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी यह मांग की है कि भारत सरकार को कृषि कानूनों को रद्द करना चाहिए, ताकि मौजूदा महामारी में अन्नदाताओं के जीवन की रक्षा की जा सके, और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. हाल ही में राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडा को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था. वहां, मतदाताओं के दिमाग में कृषि कानूनों की बड़े पैमाने पर अस्वीकृति को सीएसडीएस द्वारा एक स्वतंत्र सर्वेक्षण द्वारा भी सामने लाया गया है. यह ऐसा कुछ है जिसे भाजपा को गहराई से विचारना चाहिए. 

जब एक तरफ बीजेपी सरकार ने किसानों को सांप्रदायिक रूप देकर विभाजित करने की कोशिश की, वहीं रमजान का महीना एक बार फिर किसानों के बीच एकता लाया है. अलग अलग धर्मो के बावजूद इफ्तार कार्यक्रम किसानों में बंधुत्व का गवाह है. सिंघु बॉर्डर पर भी इफ्तार कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है. किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए व सरकार के खिलाफ रोष प्रकट करने के लिए पंजाब के अमृतसर का एक युवा गुरविंदर सिंह अमृतसर से सिंघु बॉर्डर पैदल दौड़कर आया है.  सयुंक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने इस युवा के हौसले को सलाम करते हुए मंच से सम्मानित भी किया.  कल पंजाब के रोपड़ में किसानो की सभा हुई जिसमें बाबा बंदा सिंह बहादुर को याद किया गया. किसानों के हको के लिए लड़ने वाले बाबा बंदा बहादुर से प्रेरणा लेते हुए किसानों ने इस आंदोलन को सफल बनाने का प्रण लिया.