गीतों से जलाई सांस्कृतिक बदलाव की मशाल, पद्मश्री मधु मंसूरी ने कहा: लोगों का प्यार है कि इस काबिल समझा
गीतों से जलाई सांस्कृतिक बदलाव की मशाल, पद्मश्री मधु मंसूरी ने कहा: लोगों का प्यार है कि इस काबिल समझा
नई दिल्ली:
झारखंड की विख्यात हस्ति नागपुरी गीतकार मधु मंसूरी हंसमुख को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। नागपुरी गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले मधु मंसूरी हंसमुख ने सम्मान मिलने के बाद खुशी जाहिर की। उन्होंने आईएएनएस से खास बातचीत करते हुए कहा, इतना बड़ा सम्मान मिला, बेहद खुश हूं। यह लोगों का आशीर्वाद और शुभकामनाएं हैं, जो मुझे इस काबिल समझा।मधु मंसूरी हंसमुख अपने गीत और मधुर आवाज के लिए देश-विदेश में बेहद मशहूर हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने गीतों द्वारा झारखंड को एक अलग पहचान दिलाने के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव में अहम भूमिका निभाई है।
दरअसल हंसमुख को यह पुरस्कार देने की घोषणा 2020 में की गयी थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण पुरस्कार समारोह आयोजित नहीं किया जा सका था।
मंसूरी हंसमुख के गीत और उनकी बुलंद आवाज झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, ओडिशा छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में गूंज चुकी है।
रांची के रातू प्रखंड अंतर्गत सिमलिया गांव निवासी मधु मंसूरी हसमुख ने आईएएनएस को बताया, एक ऊंचा सोच रखना है, हमारे पूर्वजों की जो परंपरा और भाषा है, उसको बचा कर रखना होगा। यदि नहीं रखा गया तो इंसान परेशान होगा और कभी अमन चैन से नहीं रह सकेगा। अपने पूर्वजों के संदेश को पुर्नजीवित करते रहो, वहीं संदेश को जिंदा करते रहो।
उन्होंने कहा, मैंने कोई पढ़ाई लिखाई नहीं की क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही करीब डेढ़ साल की उम्र में मेरी माँ गुजर गई। इसलिए मुझे न मां का दूध नसीब हुआ और न कोई प्रेरणा मिल सकी। मेरे पिता एक ग्रामीण मजदूर थे। मेरी शिक्षा ज्यादा नहीं हो सका, लेकिन मैंने अपने पिता से भी गीतों के बारे में बहुत कुछ सीखा।
8 वर्ष की उम्र में मैंने गाना शुरू किया था, उस उम्र में पहली बार मैं गांव से निकलकर एक मंच पर गाने आया था। तब से अब तक गा रहा हूं।
उन्होंने आगे बताया, मेरी सांस्कृतिक जिंदगी में कभी कोई उतार चढ़ाव नहीं हुआ, क्योंकि लोगों का आशीर्वाद मुझपर रहा। इसके अलावा मुझे इतना सम्मान दिया कि मेरा मनोबल हमेशा बढ़ता रहा। पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद मैं बहुत खुश हूं।
दरअसल मंसूरी हंसमुख ने झारखंड की क्षेत्रीय भाषा नागपुरी में कई गीत लिखे हैं। इसके अलावा उन्होंने सैंकड़ो कार्यक्रमों में भी गीत गाया है। उन्होंने अपने गीतों से सांस्कृतिक मशाल जलाई है।
उनका एक गीत गांव छोड़ब नाहीं लोगों की जुबान पर ऐसा जादू चलाया कि आज भी लोग उनके इस गीत को गुनगुनाते हैं। यह भी मानाा जाता है कि उनके गीतों ने झारखंड आंदोलन के दौरान लोगों में नई उर्जा भरने का काम किया। उन्होंने आदिवासी, संस्कृति, परंपरा और रीति रिवाज को जिंदा रखने का महत्वपूर्ण काम किया है।
फिलहाल वह कई संस्थाओ से जुड़े हैं और अपने गीतों को जिंदा और लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
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