पूर्वोत्तर राज्यों से देशद्रोह के ज्यादा मामले सामने नहीं आए हैं, लेकिन क्षेत्र के वकीलों और विशेषज्ञों का मानना है कि कानून को समाप्त कर दिया जाना चाहिए ताकि सत्ता में मौजूद पार्टी विरोध की आवाजों को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल न कर सके।
नवंबर 2021 में बंगाली बहुल दक्षिणी असम के कछार जिले में तीन युवकों को कथित रूप से असमिया में एक सरकारी होडिर्ंग को विरूपित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
असम पुलिस ने नवंबर 2021 में पत्रकार अनिर्बन रॉय चौधरी और बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट (बीडीएफ) के मुख्य संयोजक और वकील प्रदीप दत्ता रॉय को तब गिरफ्तार किया जब उन्होंने सरकारी होडिर्ंग्स में बंगाली की बजाय असमिया भाषा का इस्तेमाल करने के लिए पुलिस कार्रवाई और असम सरकार की आलोचना की थी।
चौधरी और दत्ता रॉय पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए (देशद्रोह), 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और अन्य कठोर धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।
चौधरी ने अपने समाचार पोर्टल बराक बुलेटिन में असमिया भाषा के उपयोग की आलोचना करते हुए एक संपादकीय लिखा था और दत्ता रॉय ने जल जीवन मिशन के बारे में सरकारी होडिर्ंग्स में केवल असमिया भाषा के उपयोग पर आपत्ति जताई थी।
चौधरी को गिरफ्तारी के दिन कुछ ही घंटों में अदालत से जमानत मिल गई थी लेकिन जमानत मिलने से पहले दत्ता रॉय 11 दिनों तक जेल में रहे थे।
चौधरी और दत्ता रॉय दोनों ने तर्क दिया कि असम आधिकारिक भाषा (संशोधन) अधिनियम 1961 को कमजोर करते हुए सरकारी होडिर्ंग्स में असमिया भाषा का इस्तेमाल किया गया था।
चौधरी ने अपने संपादकीय में सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और बराक घाटी के नागरिक समाज की इस क्षेत्र में कथित रूप से असमिया थोपने के खिलाफ खड़े नहीं होने के लिए आलोचना की।
भाषा अधिनियम बंगाली-बहुसंख्यक बराक घाटी या दक्षिणी असम में प्रशासनिक और विभिन्न आधिकारिक उद्देश्यों के लिए बंगाली के उपयोग को निर्धारित करता है, जिसमें कछार, करीमगंज और हैलाकांडी के तीन जिले शामिल हैं।
गौहाटी उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ वकील दत्ता रॉय ने आईएएनएस को बताया कि 1961 के ऐतिहासिक भाषा आंदोलन के बाद जिसमें पुलिस की गोलीबारी में 11 लोगों की जान चली गई थी, असम के भाषा अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे बंगाली को बराक घाटी की आधिकारिक भाषा बना दिया गया जहां 40 लाख से अधिक लोग रहते हैं जिनमें ज्यादातर बंगाली बोलते हैं।
दत्ता रॉय ने कहा, असमिया में लिखे सरकारी होडिर्ंग को लगाना भाषा अधिनियम का उल्लंघन है। बंगाली बहुल बराक घाटी क्षेत्र में असमिया भाषा थोपने की साजिश के खिलाफ 1972 और 1986 में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए थे जिनमें तीन और लोग शहीद हो गए थे।
राजद्रोह कानून को तत्काल समाप्त करने की मांग करते हुए दत्ता रॉय ने कहा कि सत्ता में मौजूद पार्टी द्वारा अपने विरोधियों और आलोचकों के खिलाफ इसका दुरुपयोग किया गया है।
त्रिपुरा हाई कोर्ट के एक अन्य वरिष्ठ वकील पुरुषोत्तम रॉय बर्मन ने कहा कि आईपीसी के तहत औपनिवेशिक कानून 1870 में अंग्रेजों ने बनाया था और 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस कानून को फिलहाल के लिए निलंबित करने को कहा था।
उन्होंने कहा कि हाल ही में विधि आयोग ने अपनी 279वीं रिपोर्ट में आईपीसी की धारा 124ए को बरकरार रखने की सिफारिश की है, जिसमें देशद्रोह का कानून शामिल है।
रॉय बर्मन ने, जो त्रिपुरा मानवाधिकार संगठन के संस्थापक सचिव भी हैं, आईएएनएस को बताया, आयोग ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ऐसे अपराधों के लिए सजा बढ़ाने की सिफारिश की है। विधि आयोग ने सात साल के आजीवन कारावास की सिफारिश की है।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में कई लोगों को हिरासत में लिए जाने के साथ ही सरकार ने अलग-अलग आवाजों को दबाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया।
त्रिपुरा हाईकोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष रॉय बर्मन ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अनुसार, सरकार की नीतियों और निर्णयों की आलोचना करने या असहमति व्यक्त करने की हमेशा अनुमति है। भाषण की स्वतंत्रता संविधान में निहित प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।
कानून को तत्काल निरस्त करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना राष्ट्र विरोधी कार्य नहीं है।
उन्होंने कहा कि बोलने की आजादी को कम करने से लोकतंत्र कभी मजबूत नहीं होगा।
अगरतला में कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि भाजपा सरकार कानून को और अधिक कठोर बनाने की योजना बना रही है और अगले आम चुनाव से पहले यह संदेश देना चाहती है कि इसका इस्तेमाल विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया जाएगा।
सीपीआई-एम पोलितब्यूरो आईपीसी के देशद्रोह खंड को संशोधित करने के लिए विधि आयोग की सिफारिशों को सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों से असंगत और उसे नकारने जैसा मानता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने देशद्रोह अधिनियम के संचालन पर तब तक रोक लगा दी थी जब तक कि केंद्र सरकार ने कानून की किताबों से इस प्रासंगिकता खो चुके कानून को समाप्त के लिए उचित विधायी कदम नहीं उठाए।
सीपीआई-एम पोलित ब्यूरो के एक बयान में कहा गया है, हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि विधि आयोग ने जेल की न्यूनतम अवधि को तीन साल से बढ़ाकर सात साल करके देशद्रोह कानून के प्रावधानों को और मजबूत किया है, ये सिफारिशें अशुभ हैं क्योंकि वे उस तरीके की पृष्ठभूमि में आती हैं जिसमें विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाने के लिए ईडी और सीबीआई का बेशर्मी से दुरुपयोग किया जा रहा है।
वाम दल ने प्रासंगिकता खो चुके राजद्रोह कानून को समाप्त करने की मांग की है।
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Source : IANS